- तपेश जैन
देश-दुनिया में छत्तीसगढ़ की अलग पहचान है। छत्तीसगढ़ी की विशिष्ट कला-संस्कृति, मीठी बोली भाषा और सबसे बड़ी विशेषता यहां के रहवासियों का भोलापन छत्तीसगढ़ की खासियत है। इन सबको संरक्षित करने में छत्तीसगढ़ी फिल्में अहम भूमिका अदा करती है और छत्तीसगढ़ की पहचान को नया आयाम प्रदान करने में महत्वपूर्ण योगदान है। अत: राज्य सरकार को छत्तीसगढ़ी फिल्मों को प्रमोट करना चाहिए और जो समस्याएं है उसका समय रहते निराकरण करना चाहिए। यह कहना है फिल्मकार तपेश जैन का।
अब तक चालीस से भी ज्यादा डाक्युमेंट्री फिल्म, टेली फिल्म और शार्ट फिल्में बना चुके श्री जैन पेशे से पत्रकार है और सामाजिक सरोकार से जुड़ी फिल्म निर्माण से उन्हें जाना जाता है। इतना ही नहीं श्री जैन अब तक पंाच पुस्तक लिख चुके है और कई इवेंट भी आर्गेनाइज कर चुके है। बहुमुखी प्रतिभा के धनी तपेश जैन छत्तीसगढ़ी कला-संस्कृति, भाषा बोली और पर्यटन से जुड़े विषय के जानकार है। फिल्मकार श्री जैन का कहना है कि छत्तीसगढ़ राज्य गठन सन् 2000 के बाद छत्तीसगढिय़ों को बहुत उम्मीदें थी कि अलग राज्य के दर्जे से उनकी विशिष्ट पहचान को संरक्षण मिलेगा लेकिन सत्रह साल बाद भी छत्तीसगढ़ी फिल्म उद्योग को निराशा ही हाथ लगी। कई बार मांग-ज्ञापन, धरना-प्रदर्शन के बाद भी राज्य सरकार में अफसरशाही हावी है और बाहरी अधिकारी रोड़ा बने हुए है। क्षेत्रवाद के किसी भी प्रयास को वे पनपने नहीं देना चाहते है इसलिए अच्छे काम में भी बाधा बने हुए है।ये छत्तीसगढिय़ों का भोलापन भी है कि इतनी उपेक्षा के बाद भी अन्य प्रदेशों की तरह उग्र आंदोलन और प्रदर्शन यहां नहीं हुआ। राजनेताओं की मजबूरी ही कहा जाएगा कि कई मंचों पर घोषणा के बाद भी सरकारी अमला उन घोषणाओं को अमलीजामा पहनाने में आनाकानी कर रहा है और वे धैर्य रखे हुए है। चुनावी वायदों को पांच साल में पूरा करने का समय और फिर जनता को फिर छलावा देने में माहिर राजनैतिक दल छत्तीसगढ़ी फिल्म जगत से जुड़े लोगों को आश्वासन की घुट्टी पिलाना अच्छे से जानते है इसका सबूत है छत्तीसगढ़ फिल्म विकास निगम का अब तक गठन नहीं हो पाना।
देश-दुनिया में छत्तीसगढ़ की अलग पहचान है। छत्तीसगढ़ी की विशिष्ट कला-संस्कृति, मीठी बोली भाषा और सबसे बड़ी विशेषता यहां के रहवासियों का भोलापन छत्तीसगढ़ की खासियत है। इन सबको संरक्षित करने में छत्तीसगढ़ी फिल्में अहम भूमिका अदा करती है और छत्तीसगढ़ की पहचान को नया आयाम प्रदान करने में महत्वपूर्ण योगदान है। अत: राज्य सरकार को छत्तीसगढ़ी फिल्मों को प्रमोट करना चाहिए और जो समस्याएं है उसका समय रहते निराकरण करना चाहिए। यह कहना है फिल्मकार तपेश जैन का।
अब तक चालीस से भी ज्यादा डाक्युमेंट्री फिल्म, टेली फिल्म और शार्ट फिल्में बना चुके श्री जैन पेशे से पत्रकार है और सामाजिक सरोकार से जुड़ी फिल्म निर्माण से उन्हें जाना जाता है। इतना ही नहीं श्री जैन अब तक पंाच पुस्तक लिख चुके है और कई इवेंट भी आर्गेनाइज कर चुके है। बहुमुखी प्रतिभा के धनी तपेश जैन छत्तीसगढ़ी कला-संस्कृति, भाषा बोली और पर्यटन से जुड़े विषय के जानकार है। फिल्मकार श्री जैन का कहना है कि छत्तीसगढ़ राज्य गठन सन् 2000 के बाद छत्तीसगढिय़ों को बहुत उम्मीदें थी कि अलग राज्य के दर्जे से उनकी विशिष्ट पहचान को संरक्षण मिलेगा लेकिन सत्रह साल बाद भी छत्तीसगढ़ी फिल्म उद्योग को निराशा ही हाथ लगी। कई बार मांग-ज्ञापन, धरना-प्रदर्शन के बाद भी राज्य सरकार में अफसरशाही हावी है और बाहरी अधिकारी रोड़ा बने हुए है। क्षेत्रवाद के किसी भी प्रयास को वे पनपने नहीं देना चाहते है इसलिए अच्छे काम में भी बाधा बने हुए है।ये छत्तीसगढिय़ों का भोलापन भी है कि इतनी उपेक्षा के बाद भी अन्य प्रदेशों की तरह उग्र आंदोलन और प्रदर्शन यहां नहीं हुआ। राजनेताओं की मजबूरी ही कहा जाएगा कि कई मंचों पर घोषणा के बाद भी सरकारी अमला उन घोषणाओं को अमलीजामा पहनाने में आनाकानी कर रहा है और वे धैर्य रखे हुए है। चुनावी वायदों को पांच साल में पूरा करने का समय और फिर जनता को फिर छलावा देने में माहिर राजनैतिक दल छत्तीसगढ़ी फिल्म जगत से जुड़े लोगों को आश्वासन की घुट्टी पिलाना अच्छे से जानते है इसका सबूत है छत्तीसगढ़ फिल्म विकास निगम का अब तक गठन नहीं हो पाना।
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