नई सरकार, नई उम्मीदें
छालीवुड का सफर यूं तो 53 साल का है लेकिन सही मायने में छालीवुड का उम्र महज 18 साल ही है.1965 में पहली छत्तीसगढ़ी फिल्म 'कहि देबे संदेसÓ का निर्माण हुआ। इस फिल्म को उस समय काफी सराहा गया। इसके बाद, 1971 में स्थानीय बोली में फिल्म बनी, 'घर द्वारÓ जिसमें कई बॉलीवुड के कई नामचीन कलाकारों ने भूमिकाएं अदा कीं। इस फिल्म का संगीत भी काफी लोकप्रिय हुआ। फिल्म 'घर द्वारÓ के बाद, लंबे समय तक छत्तीसगढ़ी फिल्म का निर्माण नहीं हुआ। लेकिन राज्य बनने के बाद सन् 2000 में निर्देशक सतीश जैन और स्थानीय फिल्मों के वर्तमान सुपर स्टार अनुज शर्मा अभिनीत फिल्म 'छइंया भुइंयाÓ बनी। तब से लेकर अब तक छत्तीसगढ़ी फिल्म इंडस्ट्री सरकार से उपेक्षित ही रही है. 'छइंया भुइंयाÓ ने प्रदेश में इस उद्योग की एक बार फिर नींव रख दी। इसके बाद, फिल्म निर्माण में जैसे बाढ़ सी आ गई। लेकिन 'छइंया भुइंयाÓ ने जो कीर्तिमान हासिल किया था, उसके नजदीक गिनी-चुनी फिल्में ही पहुंच सकीं। ज्यादातर फिल्मों में निर्माताओं को नुकसान उठाना पड़ा, जिसके बाद यह मांग उठने लगी कि प्रदेश में फिल्म विकास निगम बनाया जाए। इसके लिए इंडस्ट्री से जुड़े लोगों ने एकजुट होकर आंदोलन भी किया। यही वजह रही कि पिछले चुनाव के पहले भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों ने अपने घोषणा-पत्र में निगम का निर्माण करने का वायदा किया। पूर्व की सरकार ने फिल्म विकास निगम का गठन भी किया लेकिन वे मात्र कलाकारों को लुभाने मात्र के लिए था. अब गठन हो गया है तो इसे सरकार की कृपा की जरुरत है.
जरूरी है फिल्म विकास निगम
फिल्म विकास निगम एक ऐसी संस्था है जो न सिर्फ इस उद्योग से जुड़े लोगों की बातें सुनती है, बल्कि उनकी सहुलियत के लिए योजनाएं भी बनाती है। निगम के ही निर्देशन पर स्थानीय फिल्मों को अनुदान भी दिया जाता है, जिसकी वजह से निर्माताओं की आर्थिक नुकसान की संभावनाएं कम हो जाती हैं। महाराष्ट्र में इसी संस्था ने सुनिश्चित किया है कि सभी सिनेमाघरों में मराठी फिल्मों को प्रमुखता से दिखाया जाए। लेकिन छत्तीसगढ़ में निगम न होने की वजह से सिनेमाघरों के होने के बावजूद, स्थानीय फिल्मों को चलाने के लिए बहुत कम ही सेंटर मिल पाते हैं। वर्तमान में प्रदेश के सिनेमाघरों में सीधा दखल महाराष्ट्र के अमरावती के वितरकों का है, जिसकी वजह से थियेटर मालिक भी स्थानीय फिल्मों को प्रदर्शित करने में हिचकते हैं। पूरे प्रदेश में करीब 35 सेंटर हैं, जहां स्थानीय फिल्मों का प्रदर्शन हो सकता है, लेकिन औद्योगिक दबाव के चलते ये सेंटर भी छत्तीसगढ़ी फिल्मों को रिलीज करने से बचते हैं।
छत्तीसगढ़ी कलाकारों में है असुरक्षाबोध
छत्तीसगढ़ी फिल्म के सुपरस्टार और पद्मश्री अनुज शर्मा ने बताया कि वर्तमान में छत्तीसगढ़ी फिल्म उद्योग से जुड़े लोग अपने आप को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। निगम सही दिशा में काम करने लगे तो कम-से-कम इनकी समस्याओं के निराकरण के लिए कोई ठोस पहल तो की जा सकेगी, इसलिए लगातार यह मांग उठाई जा रही है।
बड़ी संख्या में जुड़े लोग
पिछले 18 सालों में स्थानीय फिल्म निर्माण एक उद्योग का रूप ले चुका है, जिसमें हजारों की संख्या में लोग जुड़े हुए हैं। शुरुआती दौर में स्थानीय फिल्मों का प्री-प्रोडक्शन और पोस्ट प्रोडक्शन दोनों ही मुंबई या उड़ीसा के दक्ष तकनीशियनों की मदद से पूरा किया जाता था। लेकिन वर्तमान में सभी कार्य स्थानीय कलाकारों व तकनीशियनों के जरिए ही हो रहा है। इन कार्यों को हजारों की संख्या में लोगों ने अपने रोजगार के रूप में अपना लिया है। लेकिन निगम प्रभावी ना होने की वजह से जिस तरह से यह उद्योग नुकसान झेल रहा है, उससे संदेह है कि आने वाले दिनों में फिल्मों का निर्माण कम हो जाएगा और लोग बेरोजगार हो जाएंगे।
कलाकार करेंगे आंदोलन
फिल्म विकास निगम बनाने की मांग को लेकर हाल में संस्कृति विभाग के गढ़हटरी में छत्तीसगढ़ी फिल्म कलाकार एकजुट हुए थे। छत्तीसगढ़ फिल्म विकास संघर्ष समिति के बैनर तले इन्होंने चिंता जताई कि सरकार की घोषणा के बावजूद, छालीवुड के विकास के लिए कोई ठोस पहल नहीं की गई है।
उद्योग का दर्जा
छत्तीसगढ़ी सिनेमा को उद्योग का दर्जा तो हासिल है, लेकिन सुविधाएं अब तक उस तरह की नहीं मिल पाई हैं। हालांकि सोशल मीडिया छत्तीसगढ़ी सिनेमा के लिए नया बाजार बनकर उभरा है। यूृ- ट्यूब पर छत्तीसगढ़ी फिल्मों का बड़ा वर्ग तैयार हुआ है। हर राज्य में क्षेत्रीय भाषा की फिल्मों को बढ़ावा देने की अपनी नीति है। जिसमें रीजनल फिल्मों के लिए सब्सिडी भी है। ऐसे में उस प्रदेश के सिनेमाघर में वहां की क्षेत्रीय फिल्में करीब 90 दिन दिखाना अनिवार्य भी की गईं हैं, लेकिन यहां इस तरह की नीतियों की कमी है।
फिल्म सिटी
बीते 18 सालों में रायपुर में फिल्म सिटी बनाने को लेकर शासन की ओर से कई घोषणाएं हुई। लेकिन जमीनी स्तर पर कोई भी पहल अब तक नहीं हो पाई है। प्रदेश में करीब 35 स्क्रीन है। इसके मद्देनजर इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ाने का भी ऐलान हुआ था, जिसके तहत तमाम कस्बों और छोटे शहरों में सिनेमाघर बनाए जाने थे। लेकिन ये काम भी अब तक शुरु नहीं हो पाया है। इस साल करीब 15 से ज्यादा फिल्मों का निर्माण चल रहा है। यही नहीं 500 म्यूजिक एलबम यानी करीब 5 हजार गाने भी रिलीज हो रहे हैं। छग के अलावा ये फिल्में जम्मू-कश्मीर और महाराष्ट्र के सिनेमाघरों में भी लगती है। मल्टीप्लेक्स में छत्तीसगढ़ी फिल्में न के बराबर ही लगती है। केवल सिंगल स्क्रीन थिएटर के भरोसे ये पूरी इंडस्ट्री चल रही है। कुछ बड़े मेलों में घूमते- फिरते सिनेमाघरों के जरिए फिल्में दिखाई जा रही हैं। बताया जाता है कि इनसे भी फिल्मों को कमाई हो जाती है। मोटे तौर पर एक फिल्म जब बनती है तो करीब 200 से 250 लोग रोजगार पाते हैं। हालांकि असंगठित रूप से इस उद्योग में रोजी रोटी कमाते हैं। छत्तीसगढ़ में सिनेमाघरों की कमी के चलते भी यहां फिल्म उद्योग रफ्तार नहीं पकड़ पा रहा है। ऐसे में लंबे समय तक इस इंडस्ट्री से जुड़े लोगों के सामने नियमित रूप से अपनी जीविका चलाने को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं।
भोजपुरी फिल्मों की तरफ रुख कर रहे हैं अधिकतर
यूपी सरकार की फिल्म नीति के चलते छत्तीसगढ़ी फिल्मों के ज्यादातर निर्माता और कलाकार अब भोजपुरी फिल्मों का रुख कर रहे हैं। इसकी वजह है कि यहां फिल्में बनाने पर सब्सिडी भी मिल रही है। वहीं फिल्म के प्रदर्शन के लिए थिएटरों की तादाद भी ज्यादा है। कुछ कलाकार मराठी और हिंदी फिल्मों में भी काम कर रहे हैं। हाल ही में छत्तीसगढ़ी फिल्म निर्माता संतोष जैन ने भोजपुरी फिल्म भी बनाई जो रिलीज हो गई है। हालांकि यहां के निर्माता अब हिंदी सिनेमा के लिए फिल्में भी बना रहे हैं।
नई प्रतिभाओं को मौका मिले
प्रदेश में छोटे छोटे कस्बों में सिनेमाघर बनाए जाने चाहिए। इससे प्रदेश में हमारी फिल्मों का एक बड़ा दर्शक वर्ग भी तैयार होगा। सिनेमाघर ज्यादा होंगे तो फिल्में भी ज्यादा बनेंगी। नए कलाकारों प्रतिभाओं को मौका मिलेगा। - मोहन सुंदरानी छत्तीसगढ़ी अभिनेता व निर्माता-निर्देशक
एक से बढ़कर एक लोकेशन
हिंदी फिल्मों के कई निर्माता- निर्देशक छत्तीसगढ़ में फिल्मों की शूटिंग करना चाहते हैं। क्योंकि यहां एक से बढ़कर एक सुंदर लोकेशन है। अगर हमारा क्षेत्रीय सिनेमा मजबूत होता है तो इसके जरिए भी कई लोगों को रोजगार के अच्छे अवसर मिल पाएंगे।
- संतोष जैन, छत्तीसगढ़ी-भोजपुरी फिल्म निर्माता
सोशल मीडिया से बढ़ी पहुंच
फिल्म पॉलिसी नहीं बनने की वजह से कलाकारों को बड़ा नुकसान हो रहा है। छॉलीवुड फिल्मों को सब्सिडी भी नहीं मिल रही है। पॉलिसी बनने से दूसरी फिल्म इंडस्ट्रीज को बड़ी टक्कर दे सकता है।
-योगेश अग्रवाल, अध्यक्ष छग फिल्म इंडस्ट्री एसोसिएशन
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छालीवुड का सफर यूं तो 53 साल का है लेकिन सही मायने में छालीवुड का उम्र महज 18 साल ही है.1965 में पहली छत्तीसगढ़ी फिल्म 'कहि देबे संदेसÓ का निर्माण हुआ। इस फिल्म को उस समय काफी सराहा गया। इसके बाद, 1971 में स्थानीय बोली में फिल्म बनी, 'घर द्वारÓ जिसमें कई बॉलीवुड के कई नामचीन कलाकारों ने भूमिकाएं अदा कीं। इस फिल्म का संगीत भी काफी लोकप्रिय हुआ। फिल्म 'घर द्वारÓ के बाद, लंबे समय तक छत्तीसगढ़ी फिल्म का निर्माण नहीं हुआ। लेकिन राज्य बनने के बाद सन् 2000 में निर्देशक सतीश जैन और स्थानीय फिल्मों के वर्तमान सुपर स्टार अनुज शर्मा अभिनीत फिल्म 'छइंया भुइंयाÓ बनी। तब से लेकर अब तक छत्तीसगढ़ी फिल्म इंडस्ट्री सरकार से उपेक्षित ही रही है. 'छइंया भुइंयाÓ ने प्रदेश में इस उद्योग की एक बार फिर नींव रख दी। इसके बाद, फिल्म निर्माण में जैसे बाढ़ सी आ गई। लेकिन 'छइंया भुइंयाÓ ने जो कीर्तिमान हासिल किया था, उसके नजदीक गिनी-चुनी फिल्में ही पहुंच सकीं। ज्यादातर फिल्मों में निर्माताओं को नुकसान उठाना पड़ा, जिसके बाद यह मांग उठने लगी कि प्रदेश में फिल्म विकास निगम बनाया जाए। इसके लिए इंडस्ट्री से जुड़े लोगों ने एकजुट होकर आंदोलन भी किया। यही वजह रही कि पिछले चुनाव के पहले भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों ने अपने घोषणा-पत्र में निगम का निर्माण करने का वायदा किया। पूर्व की सरकार ने फिल्म विकास निगम का गठन भी किया लेकिन वे मात्र कलाकारों को लुभाने मात्र के लिए था. अब गठन हो गया है तो इसे सरकार की कृपा की जरुरत है.
जरूरी है फिल्म विकास निगम
फिल्म विकास निगम एक ऐसी संस्था है जो न सिर्फ इस उद्योग से जुड़े लोगों की बातें सुनती है, बल्कि उनकी सहुलियत के लिए योजनाएं भी बनाती है। निगम के ही निर्देशन पर स्थानीय फिल्मों को अनुदान भी दिया जाता है, जिसकी वजह से निर्माताओं की आर्थिक नुकसान की संभावनाएं कम हो जाती हैं। महाराष्ट्र में इसी संस्था ने सुनिश्चित किया है कि सभी सिनेमाघरों में मराठी फिल्मों को प्रमुखता से दिखाया जाए। लेकिन छत्तीसगढ़ में निगम न होने की वजह से सिनेमाघरों के होने के बावजूद, स्थानीय फिल्मों को चलाने के लिए बहुत कम ही सेंटर मिल पाते हैं। वर्तमान में प्रदेश के सिनेमाघरों में सीधा दखल महाराष्ट्र के अमरावती के वितरकों का है, जिसकी वजह से थियेटर मालिक भी स्थानीय फिल्मों को प्रदर्शित करने में हिचकते हैं। पूरे प्रदेश में करीब 35 सेंटर हैं, जहां स्थानीय फिल्मों का प्रदर्शन हो सकता है, लेकिन औद्योगिक दबाव के चलते ये सेंटर भी छत्तीसगढ़ी फिल्मों को रिलीज करने से बचते हैं।
छत्तीसगढ़ी कलाकारों में है असुरक्षाबोध
छत्तीसगढ़ी फिल्म के सुपरस्टार और पद्मश्री अनुज शर्मा ने बताया कि वर्तमान में छत्तीसगढ़ी फिल्म उद्योग से जुड़े लोग अपने आप को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। निगम सही दिशा में काम करने लगे तो कम-से-कम इनकी समस्याओं के निराकरण के लिए कोई ठोस पहल तो की जा सकेगी, इसलिए लगातार यह मांग उठाई जा रही है।
बड़ी संख्या में जुड़े लोग
पिछले 18 सालों में स्थानीय फिल्म निर्माण एक उद्योग का रूप ले चुका है, जिसमें हजारों की संख्या में लोग जुड़े हुए हैं। शुरुआती दौर में स्थानीय फिल्मों का प्री-प्रोडक्शन और पोस्ट प्रोडक्शन दोनों ही मुंबई या उड़ीसा के दक्ष तकनीशियनों की मदद से पूरा किया जाता था। लेकिन वर्तमान में सभी कार्य स्थानीय कलाकारों व तकनीशियनों के जरिए ही हो रहा है। इन कार्यों को हजारों की संख्या में लोगों ने अपने रोजगार के रूप में अपना लिया है। लेकिन निगम प्रभावी ना होने की वजह से जिस तरह से यह उद्योग नुकसान झेल रहा है, उससे संदेह है कि आने वाले दिनों में फिल्मों का निर्माण कम हो जाएगा और लोग बेरोजगार हो जाएंगे।
कलाकार करेंगे आंदोलन
फिल्म विकास निगम बनाने की मांग को लेकर हाल में संस्कृति विभाग के गढ़हटरी में छत्तीसगढ़ी फिल्म कलाकार एकजुट हुए थे। छत्तीसगढ़ फिल्म विकास संघर्ष समिति के बैनर तले इन्होंने चिंता जताई कि सरकार की घोषणा के बावजूद, छालीवुड के विकास के लिए कोई ठोस पहल नहीं की गई है।
उद्योग का दर्जा
छत्तीसगढ़ी सिनेमा को उद्योग का दर्जा तो हासिल है, लेकिन सुविधाएं अब तक उस तरह की नहीं मिल पाई हैं। हालांकि सोशल मीडिया छत्तीसगढ़ी सिनेमा के लिए नया बाजार बनकर उभरा है। यूृ- ट्यूब पर छत्तीसगढ़ी फिल्मों का बड़ा वर्ग तैयार हुआ है। हर राज्य में क्षेत्रीय भाषा की फिल्मों को बढ़ावा देने की अपनी नीति है। जिसमें रीजनल फिल्मों के लिए सब्सिडी भी है। ऐसे में उस प्रदेश के सिनेमाघर में वहां की क्षेत्रीय फिल्में करीब 90 दिन दिखाना अनिवार्य भी की गईं हैं, लेकिन यहां इस तरह की नीतियों की कमी है।
फिल्म सिटी
बीते 18 सालों में रायपुर में फिल्म सिटी बनाने को लेकर शासन की ओर से कई घोषणाएं हुई। लेकिन जमीनी स्तर पर कोई भी पहल अब तक नहीं हो पाई है। प्रदेश में करीब 35 स्क्रीन है। इसके मद्देनजर इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ाने का भी ऐलान हुआ था, जिसके तहत तमाम कस्बों और छोटे शहरों में सिनेमाघर बनाए जाने थे। लेकिन ये काम भी अब तक शुरु नहीं हो पाया है। इस साल करीब 15 से ज्यादा फिल्मों का निर्माण चल रहा है। यही नहीं 500 म्यूजिक एलबम यानी करीब 5 हजार गाने भी रिलीज हो रहे हैं। छग के अलावा ये फिल्में जम्मू-कश्मीर और महाराष्ट्र के सिनेमाघरों में भी लगती है। मल्टीप्लेक्स में छत्तीसगढ़ी फिल्में न के बराबर ही लगती है। केवल सिंगल स्क्रीन थिएटर के भरोसे ये पूरी इंडस्ट्री चल रही है। कुछ बड़े मेलों में घूमते- फिरते सिनेमाघरों के जरिए फिल्में दिखाई जा रही हैं। बताया जाता है कि इनसे भी फिल्मों को कमाई हो जाती है। मोटे तौर पर एक फिल्म जब बनती है तो करीब 200 से 250 लोग रोजगार पाते हैं। हालांकि असंगठित रूप से इस उद्योग में रोजी रोटी कमाते हैं। छत्तीसगढ़ में सिनेमाघरों की कमी के चलते भी यहां फिल्म उद्योग रफ्तार नहीं पकड़ पा रहा है। ऐसे में लंबे समय तक इस इंडस्ट्री से जुड़े लोगों के सामने नियमित रूप से अपनी जीविका चलाने को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं।
भोजपुरी फिल्मों की तरफ रुख कर रहे हैं अधिकतर
यूपी सरकार की फिल्म नीति के चलते छत्तीसगढ़ी फिल्मों के ज्यादातर निर्माता और कलाकार अब भोजपुरी फिल्मों का रुख कर रहे हैं। इसकी वजह है कि यहां फिल्में बनाने पर सब्सिडी भी मिल रही है। वहीं फिल्म के प्रदर्शन के लिए थिएटरों की तादाद भी ज्यादा है। कुछ कलाकार मराठी और हिंदी फिल्मों में भी काम कर रहे हैं। हाल ही में छत्तीसगढ़ी फिल्म निर्माता संतोष जैन ने भोजपुरी फिल्म भी बनाई जो रिलीज हो गई है। हालांकि यहां के निर्माता अब हिंदी सिनेमा के लिए फिल्में भी बना रहे हैं।
नई प्रतिभाओं को मौका मिले
प्रदेश में छोटे छोटे कस्बों में सिनेमाघर बनाए जाने चाहिए। इससे प्रदेश में हमारी फिल्मों का एक बड़ा दर्शक वर्ग भी तैयार होगा। सिनेमाघर ज्यादा होंगे तो फिल्में भी ज्यादा बनेंगी। नए कलाकारों प्रतिभाओं को मौका मिलेगा। - मोहन सुंदरानी छत्तीसगढ़ी अभिनेता व निर्माता-निर्देशक
एक से बढ़कर एक लोकेशन
हिंदी फिल्मों के कई निर्माता- निर्देशक छत्तीसगढ़ में फिल्मों की शूटिंग करना चाहते हैं। क्योंकि यहां एक से बढ़कर एक सुंदर लोकेशन है। अगर हमारा क्षेत्रीय सिनेमा मजबूत होता है तो इसके जरिए भी कई लोगों को रोजगार के अच्छे अवसर मिल पाएंगे।
- संतोष जैन, छत्तीसगढ़ी-भोजपुरी फिल्म निर्माता
सोशल मीडिया से बढ़ी पहुंच
फिल्म पॉलिसी नहीं बनने की वजह से कलाकारों को बड़ा नुकसान हो रहा है। छॉलीवुड फिल्मों को सब्सिडी भी नहीं मिल रही है। पॉलिसी बनने से दूसरी फिल्म इंडस्ट्रीज को बड़ी टक्कर दे सकता है।
-योगेश अग्रवाल, अध्यक्ष छग फिल्म इंडस्ट्री एसोसिएशन
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