रविवार, 13 जनवरी 2019

ज्ञानेंद्र और कृष्णा बनाएंगे संगी संगवारी

कवर्धा में हुआ फिल्म का मुहूर्त
छत्तीसगढ़ी फिल्म का भविष्य बेहतर है क्योंकि छालीवुड में नए नए निर्माता कदम रख रहे हैं. ज्ञानेंद्र  सिंह ठाकुर, एवं कृष्णा चौहान पहली बार इस दुनिया में अपना पाँव जमाने  है... 

वे फिल्म संगी संगवारी बनाने जा रहे हैं जिसका मुहूर्त कवर्धा में सुन्दरानी विडियो वल्र्ड के निर्देशक फि़ल्म  निर्माता श्री मोहन सुन्दरानी के मुख्य आतिथ्य, पत्रकार छालीवुड स्टारडम के अरुण कुमार बंछोर, हमर छालीवुड पत्रिका की संपादक श्रीमती केशर सोनकर , छत्तीसगढ़ फिल्म इंडस्ट्री एसोसिएशन के कवर्धा जिला अध्यक्ष राजू पांडे के विशेष आतिथ्य में सपन्न हुआ.इस फिल्म के हीरो भुनेश साहू और नायिका हेमा शुक्ला होंगी।
इस अवसर पर ने कलाकारों से अपील की कि अपने निर्माता को हर प्रकार से सहयोग करें क्योकि इस इंडस्ट्री में फ़ायदा कम नुक्सान ज्यादा है. कार्यक्रम को अरुण बंछोर और राजू पांडे ने भी सम्बोधित किया। कार्यक्रम में निर्देशक नीरज श्रीवास्तव जी, देवेंद्र साहू , तेजस गोहेल विजेता मिश्रा उपस्थित रहे ।
इस फि़ल्म में  कास्टिंग डायरेक्टर हैं महावीर सिंह चौहान। फिल्म का डायरेक्शन सुनील सागर करेंगे। वही हीरो में सुंदर मोर छत्तीसगढ़ फेम भुनेश साहू,  सोल्जर छत्तीसगढिय़ा फेम हेमा शुक्ला, के साथ साथ, रजनीश झांझी, उपासना वैष्णव, उर्वशी साहू, हेमलाल कौशल, राजू पांडेय,  रज्जु चंद्रवंशी, करन सिंह,  के नाम अनाउंस किये। उफि़ल्म के हीरो भुनेश साहू और फेमस कलाकार राजू पांडेय के बीच मुहूर्त शार्ट किया गया जिससे ताली की गडग़ड़ाहट से भवन गूंज उठा।
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नटराज बंछोर बनाएंगे अब '' प्रेम रंग ÓÓ

-श्रीमती केशर सोनकर
छत्तीसगढ़ी फिल्म दबंग दरोगा के निर्माता नटराज बंछोर अब अपनी दूसरी फिल्म  'प्रेम रंगÓ बनाने जा रहे हैं। इसकी तैयारी शुरू कर दी गयी है. इस फिल्म के हीरो जीत शर्मा भिलाईनगर होंगे वहीं हीरोइन की तलाश अभी जारी है. हरजिंदरसिंह इस फिल्म को निर्देशित करेंगे। नायक जीत शर्मा एक अच्छे अभिनेता है उन्होंने कई फिल्मों में अभिनय का लोहा मनवाया है. दबंग दरोगा में वे अनुज शर्मा के साथ दूसरे नायक की भूमिका में थे औरअपनी बेहतरीन अदा के चलते काफी वाहवाही बटोरे थे.तुलसी एंटरटेनमेंट के बैनर तले निर्मित नटराज बंछोर की छत्तीसगढ़ी फिचर फिल्म 'दबंग दरोगाÓ को दर्शक खूब पसंद किया था। बात दबंग दरोगा की कहानी की करें तो समाज में कुछ उपद्रवी लोग जो अपने दबंगाई से जनता का जीना हराम कर देते है उनके खिलाफ लड़ते एक इमानदार दरोगा की स्टोरी है। जिसमे जीत शर्मा ने दरोगा की भूमिका बेहतर ढंग से निभाया था. फिलहाल मूवी काफी अच्छी रही।  रीमा सिंह, रजनीश झांझी, हरजिंदर सिंह मोटिया, उपासना वैष्णव, अनिल शर्मा, नेहा शर्मा और माहिरा खान के अलावा अन्य सभी कलाकारों ने बहुत ही अच्छा अभिनय किया था लेकिन प्रेम रंग में नए कलाकारों को मौका दिया जाएगा।

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फिल्मों और लोक मंच के जरिये छत्तीसगढ़ का नाम रोशन कर रही है अभिनेत्री उर्वशी साहू

छालीवुड की जानी मानी चरित्र अभिनेत्री उर्वशी साहू फिल्मों के साथ साथ लोक कलामंच के जरिये अपने प्रदेश छत्तीसगढ़ का नाम देश भर में रोशन कर रही है. वे जितनी अच्छी अदाकारा है उतनी ही अच्छी लोक कलामंच की संचालक भी है.उनके साथ कलाकारों की एक अच्छी टीम भी है. लोक मंच के जरिये छत्तीसगढ़ के लोक गीतों और संस्कृति को देश प्रदेश में भी जाकर प्रस्तुत कर रही है। उर्वशी साहू छत्तीसगढ़ में बंनाने वाली लगभग सभी फिल्मों में काम कर रही है अभी सबसे ज्यादा चर्चित सुंदरानी वीडियो वल्र्ड की सुपर डुपर हिट फिल्म आइ लव यू से उर्वशी साहू को एक अलग ही पहचान मिली है.इस फि़ल्म में दर्शकों ने कचरा - बोदरा के रूप में उर्वशी साहू और उपासना वैषणव की जोड़ी को खूब पसंद किए। इससे पहले भी उर्वशी उपासना ने ऑटो वाले भाटो,राजा छत्तीसगढिय़ा में काम कर अपने अभिनय से खूब तारीफ  बटोरी थी।
आज उर्वशी साहू और उपासना हर डायरेक्टर,प्रोड्यूसर की पहली पसंद बन चुके है इसको देखकर कहानी लिखते है उर्वशी फि़ल्म के साथ साथ स्टेज प्रोग्राम भी करती है उनकी खुद की लोक मंच की टीम है मया के संदेश जिसमे लगभग 30 कलाकार है उर्वशी इस टीम की संचालिका व निर्देशिका है। उर्वशी के निर्देशन में ये टीम देश के साथ साथ अन्य प्रदेश में भी अपनी लोक गीतों की प्रस्तुति करती है. उर्वशी अपनी टीम मया के संदेश को लेकर देहरादून,उत्तरप्रदेश, लखनऊ,हरिद्वार, अंडमान निकोबार,केरल कोच्चि,दिल्ली,असम गई थी। अभी 4 जनवरी से 12 जनवरी तक उर्वशी अपनी टीम के साथ दिल्ली और 17 से 22 जनवरी तक को इलाहाबाद कुम्भ में कर्मा गीत नित्र्य की प्रस्तूति देंगी।

उर्वशी स्टेज के साथ हो साथ बड़ी संख्या में फि़ल्म भी कर रही है जिसमे मोहन के बिहाव, संगी संगवारी,और  ढ्ढ द्यश1द्ग 4शह्व 2 में भी नजर आएगी। उर्वशी की बहुत से फि़ल्म रिलीज होने वाली है ,जिसमे सउत सउत के झगरा,राजाभैया,टुरा चाय वाला ,संगी रे,अतरंगी,सॉरी लव यू,बड़ी फिल्मे है उर्वशी संगीत को साधना मानती है कहती है छत्तीसगढ़ को यहां की कला संस्कृति से जानी जाती है पर कलाकारों को अब तक अपने ही देश मे अच्छे से सम्मान नई मिला कुछ कलाकारों की रोजी रोटी का साधन ही कलाकारी है पर गाव के कलाकारों को कोई अच्छा पहचान नई मिलता उर्वशी फि़ल्म लोक मंच के साथ साथ समाज सेवा भी करती है जिससे उनको 2017 में कौशिल्या माता सम्मान मिला है उर्वशी कहती है मुझे बहुत बड़े बड़े सम्मान मिले पर देशको ताली और आशीर्वाद सबसे बड़ा सम्मान है. उर्वशी हर किरदार बड़ी बखूबी निभाती है चाहे वो माँ का हो दादी का हो,मौसी का हो चाहे खलनायिका का हो। कॉमेडियन के रूप में भी उर्वशी की एक्टिंग को काफी सराहा गया है जिसके लिए बेस्ट कॉमेडियन का अवार्ड भी मिला है। बेस्ट एक्ट्रेस,बेस्ट खलनायिका अब तक बहुत सारे एवार्ड उर्वशी के नाम है उर्वशी कहती है मेरा पूरा परिवार कलाकार थे नाना चरणदास चोर के गीतकार और राइटर थे पापा तबला वादक और गीतकार थे गोदना गोदा ले गीत पापा के लिखे हुए थे मम्मी राजभारती आर्केष्ट्रा की सिंगर थी पर परिवार में कोई नही है उर्वशी कहती है संगीत ही मेरा जीवन है संगीत नही तो मैं नही क्योकि मेरा नाम ही उर्वशी है जो इंद्र देव की नर्तकी थी एक्टिंग और डान्सिंग मेरा शौक है.
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अनुज शर्मा के अपोजिट काम करना चाहता है

हमर पारा तुंहर पारा फेम सुनील मानिकपुरी

     हमर पारा तुंहर पारा गीत से रातोरात प्रसिद्धि पाने वाले गायक सुनील मानिकपुरी छालीवुड सुपर स्टार अनुज शर्मा के बहुत बड़े फैन है.वे पहली बार फिल्म आई लव यू से बड़े परदे पर आये और छा गए. इस फिल्म मेंउन्होंने विलेन का किरदार निभाया है और साबित कर दिया कि वो एक अच्छे सिंगर के साथ साथ बहुत ही अच्छे एक्टर भी है.
      सुनील मूलत: चिरमिरी के रहने वाले है। सुनील ने अपनी कला यात्रा सन 2011 से शुरु की उसने अपनी खुद की एक देवी जागरण की एक टीम बनाई जिसमे हिंदी छत्तीशगढ़ी गीतों के माध्यम से प्रस्तुति देने लगे सुनील जहां देवी जागरण करते है वही लोक गीत कर्मा गीतों के मास्टर है सुनील सिंगर के साथ साथ एक अच्छे गीतकार भी है। अपने लिए गीतों की रचना वे खुद करते है हमर पारा तुंहर पारा उनकी खुद की रचना है जब सुनील के गीत छत्तीसगढ़ की फेमस कैसेट कंपनी सुंदरानी विडिवो वल्र्ड से निकली तो धूम मच गई। इसी के साथ सुनील का एक और नया रूप सामने आया जब सुंदरानी विडिवो वल्र्ड से इस साल की सबसे सुपर डुपर हिट फिल्म ढ्ढ द्यश1द्ग 4शह्व.में बतौर मेन खयनायक काम करने का मौका मिला तो इस फि़ल्म में सुनील ने राकेश के किरदार में जान डाल दी। उनके पास अभी लगभग 4 फिल्मे है जिसमे वेएक्टिंग करेंगे।सुनील कहते है उनका सपना है अनुज शर्मा के अपोजिट काम करने की है.सुनील ये भी कहते है मैं फि़ल्म करने में जल्दबाजी नई करता अच्छे डायरेक्टर,प्रोड्यूसर,और अच्छी कहानी हो और दमदार कैरेक्टर हो तो ही करना चाहूँगा।
 सुनील फि़ल्म के साथ साथ स्टेज शो भी करना चाहते है क्योकि दर्शको से सीधा स्टेज के माध्यम से जुड़कर प्यार आशीर्वाद मिलता है और लोक गीतों का एक अलग मजा है जो स्टेज शो में आता है।
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छालीवुड में एक बड़ा नाम है डॉ पुनीत सोनकर

बीता साल उनके लिए  रहा सुनहरा
       छत्तीसगढ़ी फिल्म इंडस्ट्री में डॉ पुनीत सोनकर एक बड़ा नाम है. कैमरामेन से अपनी फि़ल्मी यात्रा की शुरुआत करने वाले डॉ पुनीत फिल्म लफंटूस में हीरो बनकर आ रहे हैं. यह फिल्म 2019 में रिलीज होगी। वे एक अच्छे लेखक है, कैमरामेन हैं, एडिटर है, तो उतने ही अच्छे अभिनेता भी हैं. वे कई फिल्मो में अपने अभिनय का जलवा दिखा चुके हैं.     छत्तीसगढ़ी भाषा में बनी फिल्म लफंटूस एक ऐसे चार दोस्तों की कहानी है जिसमे डॉ पुनीत सोनकर हीरो की भूमिका में है. साक्षी यादव उनकी नायिका है. 2018 उनके अभिनय यात्रा के लिए सबसे बेहतर साल रहा है तो 2019 रिलीजिंग के लिए उनके लिए लक्की साबित होगा। हरिओम फिल्मस के बेनर तले बनी फिल्म कहर प्रदर्शन के लिए तैयार है.उसके बाद उनके प्रोडक्शन की फिल्म हीरो हीरालाल टाकीजों में आएगी।  डॉ पुनीत सोनकर की दगा और एक अनाम फिल्म भी कतार में है. 2020 में डॉ पुनीत सोनकर अपने प्रोडक्शन हाउस से ही फिल्म बनाएंगे। विभिन्न निर्देशकों को अनुबंध कर वे फिल्म निर्माण में किस्मत आजमाएंगे। इसके लिए उनका आधुनिक फिल्म्स स्टूडियो बनकर तैयार है जिसका शुभारम्भ वे 14 जनवरी को मकर संक्रांति के पर्व पर करने जा रहे हैं. डॉ पुनीत सोनकर ने बताया की इस स्टूडियो में वे सब सुविधाएं उपलब्ध होंगे जो एक फिल्म निर्माण से लेकर रिलीजिंग तक के लिए जरूरी होता है.रिकार्डिंह, एडिटिंग,शूटिंग की सुविधाएं अत्याधुनिक होंगे।

तेजस गोहेल की छॉलीवुड में एंट्री


' जानू आई लव यू Ó होगी उनकी डेव्यू फिल्म

- अरूण बंछोर
 तेजस गोहेल छत्तीसगढ़ फि़ल्म इंडस्ट्री में अपने अभिनय के दम से , एक नया मुकाम कायम करना चाहते है। 

वो एक अछे कलाकार के साथ ही, एक लेखक भी है। ये फि़ल्म जानू आई लव यू  एक रोमांटिक कॉमेडी है। ओर इसकी कहानी पूर्ण रूप से आजकल के युवाओं के ऊपर है, जोकि किस तरह से आजकल अपने मोबाइल और अपने परिचय के दम पर हर तरह का काम करते है, वैसे ही दिखाया गया है। तेजस ने इस फि़ल्म के पहले कुछ शार्ट फि़ल्म ओर कॉमेडी वीडियो बनाये है, यूट्यूब पे। जिससे कि उनको बहोत प्रोत्साहन मिला है और वो अब फि़ल्म बना रहे है। और इस फि़ल्म में उनकी हिरोइन विजेता मिश्रा है। जो छत्तीसगढ़ फि़ल्म इंडस्ट्री में अपना जलवा दिखा रही है, ओर भोजपुरी मूवी में भी नजऱ आ चुकी है। तेजस का कहना है कि, विजेता के साथ काम करना उनके लिए अच्छा अनुभव है। बहुत कुछ जानने ओर सीखने मिला। जैसे ही उनके मन मे फि़ल्म बनाने का विचार आया तो राजू पांडे छत्तीसगढ़ फि़ल्म इंडस्ट्री , कवर्धा के अध्यक्ष है के मार्गदर्शन हमें मिला और हम फि़ल्म बना रहे है, राजू पांडे हमारे फि़ल्म में मुख्य विलन में नजऱ आएंगे।और इस फि़ल्म के प्रोड्यूसर शैलेश मिश्रा  है, ओर डायरेक्टर बीरबल पाणिग्रही है।तेजस कहते है कि इस फि़ल्म का टॉपिक कुछ अलग है जिसमे रोमांस ओर एक्शन आपको थोड़ा अलग नजऱ आएगा। ओर इस फि़ल्म से उनको बोहोत आशाएं है कि यह फि़ल्म दर्शको को बोहोत पसंद आएगी और इस फि़ल्म से वो छोलीवुड में वो अपनी एक नई पहचान बनाना चाहते है। इस मूवी के हीरो तेजस गोहेल का कहना है कि वो इस मूवी को करने से पहले कुछ शार्ट फिल्मे ओर कॉमेडी वीडियोस भी बना चुके है। ओर फि़ल्म में काम करना उनकी एक बड़ी महत्वाकांक्षा है, ओर फि़ल्म की स्क्रिप्ट भी उन्होंने ही लिखी है,ओर ये एक रोमांटिक कॉमेडी फिल्म है, जिसको बॉलीवुड पैटर्न में बनाया जा रहा है, ओर डायरेक्शन दिया है।

छत्तीसगढ़ी फिल्मों को प्रमोट करें सरकार

- तपेश जैन

देश-दुनिया में छत्तीसगढ़ की अलग पहचान है। छत्तीसगढ़ी की विशिष्ट कला-संस्कृति, मीठी बोली भाषा और सबसे बड़ी विशेषता यहां के रहवासियों का भोलापन छत्तीसगढ़ की खासियत है। इन सबको संरक्षित करने में छत्तीसगढ़ी फिल्में अहम भूमिका अदा करती है और छत्तीसगढ़ की पहचान को नया आयाम प्रदान करने में महत्वपूर्ण योगदान है। अत: राज्य सरकार को छत्तीसगढ़ी फिल्मों को प्रमोट करना चाहिए और जो समस्याएं है उसका समय रहते निराकरण करना चाहिए। यह कहना है फिल्मकार तपेश जैन का।
अब तक चालीस से भी ज्यादा डाक्युमेंट्री फिल्म, टेली फिल्म और शार्ट फिल्में बना चुके श्री जैन पेशे से पत्रकार है और सामाजिक सरोकार से जुड़ी फिल्म निर्माण से उन्हें जाना जाता है। इतना ही नहीं श्री जैन अब तक पंाच पुस्तक लिख चुके है और कई इवेंट भी आर्गेनाइज कर चुके है। बहुमुखी प्रतिभा के धनी तपेश जैन छत्तीसगढ़ी कला-संस्कृति, भाषा बोली और पर्यटन से जुड़े विषय के जानकार है। फिल्मकार श्री जैन का कहना है कि छत्तीसगढ़ राज्य गठन सन् 2000 के बाद छत्तीसगढिय़ों को बहुत उम्मीदें थी कि अलग राज्य के दर्जे से उनकी विशिष्ट पहचान को संरक्षण मिलेगा लेकिन सत्रह साल बाद भी छत्तीसगढ़ी फिल्म उद्योग को निराशा ही हाथ लगी। कई बार मांग-ज्ञापन, धरना-प्रदर्शन के बाद भी राज्य सरकार में अफसरशाही हावी है और बाहरी अधिकारी रोड़ा बने हुए है। क्षेत्रवाद के किसी भी प्रयास को वे पनपने नहीं देना चाहते है इसलिए अच्छे काम में भी बाधा बने हुए है।ये छत्तीसगढिय़ों का भोलापन भी है कि इतनी उपेक्षा के बाद भी अन्य प्रदेशों की तरह उग्र आंदोलन और प्रदर्शन यहां नहीं हुआ। राजनेताओं की मजबूरी ही कहा जाएगा कि कई मंचों पर घोषणा के बाद भी सरकारी अमला उन घोषणाओं को अमलीजामा पहनाने में आनाकानी कर रहा है और वे धैर्य रखे हुए है। चुनावी वायदों को पांच साल में पूरा करने का समय और फिर जनता को फिर छलावा देने में माहिर राजनैतिक दल छत्तीसगढ़ी फिल्म जगत से जुड़े लोगों को आश्वासन की घुट्टी पिलाना अच्छे से जानते है इसका सबूत है छत्तीसगढ़ फिल्म विकास निगम का अब तक गठन नहीं हो पाना।

छालीवुड की बेहतरीन अदाकारा अंजना दास

- अरुण कुमार बंछोर

  1. अंजना दास होम प्रोडक्शन की फिल्म बिन बिहाव गवना में दोहरी भूमिका में भी नजर आएंगी । यह फिल्म जल्द ही रिलीज होने जा रही है। इस फिल्म की डायरेक्टर उनकी मम्मी है। अंजना कहती है की यह फिल्म भी बहुत ही अच्छी बनी है। यह दो बहनों की कहानी है और दोनों बहनों की भूमिका में अंजना दास ही नजर आएंगी। अंजना ने इस फिल्म के लिए बहित ही मेहनत की है। उनके मम्मी पापा ने बेटी को लेकर बिन बिहाव गौना बनाई है जो एक पारिवारिक फिल्म है जिसमे अंजना की भूमिका भी प्रभावशाली है।
छालीवुड की बेहतरीन अदाकारा अंजना दास इन दिनों अपनी नई फिल्म लफंटूस की शूटिंग में व्यस्त हैं.छत्तीसगढ़ के दर्शक उन्हें नई नई भूमिका में देखना पसंद करते हैं. अंजना इसके पहले सउत - सउत के झगरा फिल्म की शूटिंग पूरी की थी.एजाज वारसी के निर्देशन में बन रही फिल्म लफंटूस में वे अभिनेता किस कुमार के साथ मुख्य भूमिका में है. अंजना मेरी बेटी की तरह है जब मै काफी दिनों बाद उनसे फिल्म लफंटूस के सेट पर मिला तो वह भावुक हो उठी थी. उन्होंने कहा कि लफंटूस एक बेहतरीन फिल्म है अच्छी कहानी पर शूट की जा रही है.इससे मुझे काफी उम्मीद हैं.एजाज वारसी जी ने मुझ पर जो भरोसा जताया है, उस पर खरा उतरने की पूरी कोशिश करूंगी।
अंजना की एक ही तमन्ना है कि वे छालीवुड फिल्मों में अपनी अदाकारी से नाम कमाकर अपनी माता पिता का सपना पूरी कर सके. उनमे खूबियों का खजाना है। वे एक अच्छी कलाकार है। उन्हें अपने काम के प्रति जूनून है। उनका सपना छालीवुड के साथ बंगाली फिल्मों की स्टार बनने की भी है।  छत्तीसगढ़ी फिल्मों के साथ साथ अंजना अभी हिन्दी और भोजपुरी फिल्मों में भी अपनी कला का लोहा मनवा रही हैं। उन्होंने सात फिल्में और 150 से ज्यादा एल्बम किया है। अंजना को एक्टिंग का शौक नहीं था, पर मम्मी डॉ काजुल दास की जिद्द और मेहनत ने उसे छालीवुड की एक अच्छी अदाकारा बना दी है. मम्मी -पापा ही अंजना के लिए सब कुछ है यही कारण है कि अब अंजना के लिए एक्टिंग शौक नहीं , पागलपन बन गया है। वे कहती है कि़ शौक तो ख़त्म हो जाता है पर पागंलपन हमेशा बना रहता है। ये मेरा जूनून है जो कभी ख़त्म नहीं होगा। अब यही उनका करियर है। अंजना की फिल्मों में एंट्री भी दिलचस्प है.  मनोजदीप के एक एल्बम में उनकी एक्टिंग से प्रभावित होकर फिल्म असली संगवारी के डायरेक्टर ने उन्हें अपने फिल्म में ले लिया। उसके बाद वे  मुड़कर नहीं देखी।

लफंटूस की तीन बेहतरीन अदाकारा

ज्योति, माही और साक्षी दिखाएंगी जलवा

एजाज वारसी के निर्देशन में बन रही फिल्म लफंटूस में एक दो नहीं बल्कि चार चार नायिका हैं जिनमे से एक अंजना दास से हमने आपको रूबरू करा दिया है आज हम तीन नायिका ज्योति वैष्णव, माही अहीर और साक्षी यादव की बात करेंगे। तीनों ही बेहतरीन अदाकारा है फिल्म में इनके अभिनय ने चार चाँद लगा दिए हैं. निर्देशक एजाज वारसी कहते हैं कि ये नायिकाएं अभिनय के क्षेत्र  बॉलीवुड कलाकारों से कम नहीं है. हमने लफंटूस की शूटिंग में इन्हे फाइट करते देखा है. गजब की अदाकारी दिखी।

ज्योति वैषणव -  एक्टिंग मैंने खुद से सीखा है


छालीवुड को ज्योति वैष्णव के रूप में अब एक नई नायिका मिल गयी है। ज्योति ने अंधियार फिल्म से फि़ल्मी दुनिया में कदम रखा था और इस समय लफंटूस की शूटिंग में व्यस्त है। उनकी एक्टिंग में दम है. ज्योति एक अच्छी कलाकार है तो उतने ही अच्छी डांसर भी है। वे कहती है कि छालीवुड में अपने दम पर कुछ करके दिखाना चाहती है। उनकी तमन्ना एक अच्छी फिल्म अभिनेत्री बनने की है।  ज्योति कहती है कि एक्टिंग मैंने खुद से सीखा है । एल्बम में डायरेक्टर मनोज् दीप  ने मेरा काम देखा और मौका दिया है।बस एक ही तमन्ना है कि छालीवुड में अपनी मेहनत से एक अच्छी एक्ट्रेस बनना चाहती हूँ।
छत्तीसगढ़ में नायिकाओं की कमी है पेशेवर नायिका नहीं होने के कारण यहाँ के निर्माताओं को बाहर से नायिका बुलानी पड़ती है। उम्मीद है ज्योति इस कमी को पूरा करेगी। ज्योति का कहना है कि जब मैं कोई भूमिका निभाती हूँ तो पहले गंभीरता से मनन करती हूँ। यही कारण है कि ज्योति एक बेहतर अदाकारा साबित हुई हैं.
माही अहीर- बहुत उम्मीद है

माही अहीर का कहना है कि छालीवुड ही मेरी जिन्दगी है और मै यहाँ काम करती रहूंगी। फिल्म लफंटूस से मुझे काफी उम्मीद है। कई फिल्मो में अपने अभिनय का जलवा  माही कहती है कि काम नहीं मिलने पर मै निराश भी नहीं होती। छालीवुड में काम करने वाली सभी एक्ट्रेस उनके आदर्श है। क्योकि सबसे मुझे कुछ ना कुछ सीखने को ही मिलता ही है। मै अपने कामो से पूरी तरह से संतुष्ट हूँ।  उनकी आने वाली फिल्म है-  अंधियार। लफंटूस को लेकर माही अहीर बहुत ही उत्साहित है क्योकि इस फिल्म में उन्होंने नायिका की भूमिका अदा की है। वे कहती है कि वे नक़ल नहीं करना चाहते और अपने बलबूते पर ही आगे बढऩा चाहते हैं।
 
साक्षी यादव - आइटम डांस मेरी पहली पसंद
 
छालीवुड के चर्चित आइटम गर्ल साक्षी यादव एजाज वारसी निर्देशित फिल्म लफंटूस में पहली बार नायिका की भूमिका में है. वे कई फिल्मों में आइटम डांस कर चुकी है. उनकी अपनी कला में खुद की पहचान है.फिल्म लफंटूस के सेट पर हमने उनसे मुलाक़ात की.उन्होंने कहा कि इस फिल्म में नायिका की भूमिका करना उनके लिए बहुत बड़ी उप्लब्द्धी है. वैसे मेरी पहली पसंद आइटम डांस ही है और मै हीरोइन के बजाय आगे आइटम डांस करना की पसंद करूंगी। साक्षी यादव का कहना है कि फिल्म लफंटूस मेरे लिए एक बड़ी कामयाबी है मैं आभारी हूँ एजाज सर का जिन्होंने मुझे इस लायक समझा। यह एक बहुत ही अच्छी फिल्म है और मुझे इस फिल्म से बहुत ही उम्मीद है. +

डिफरेंट रोल है महूं कुंवारा तहूं कुंवारी में अनुराधा दुबे का

- अरूण बंछोर
     मैनपाट में मुहूर्त शॉट फिल्माने के बाद निर्माता रॉकी दासवानी,मनोज वर्मा,और नीरज विक्रम की आगामी फिल्म महुं कुंवारा तहुं कुंवारी की शूटिंग रॉकी के निवास रायपुर में 18.12.18 से शुरू हुई है। विशुद्ध पारिवारिक मनोरंजक फिल्म जो की हास्य की प्रधानता लिए हुए है जिसे दर्शक अपने पूरे परिवार के साथ देखना पसंद करेंगे।छत्तीसगढ़ी फिल्मों में अपनी निर्देशकीय क्षमता की छाप छोड़ चुके मनोज वर्मा इस फिल्म के निर्देशक है,जिनके प्रोडक्शन और निर्देशन में बनी  अंतरराषट्रीय और राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त कर चुकी फिल्म भूलन दी मेज़ का दर्शकों को बेसब्री से इंतजार है। राइटर नीरज विक्रम जी ( मुंबई) हैं।इस फिल्म की हीरोइन हैं एल्सा घोष( कोलकाता) मयारू गंगा, सोरी लव यू,जैसी सफल फिल्म कर चुकी हैं ये इनकी तीसरी फिल्म है।हीरो हैं मन कुरैशी और आकाश ।हीरोइन की माता के रोल में हैं छत्तीसगढ़ी फिल्मों की प्रतिष्ठित अभिनेत्री,कथक कलाकार,एंकर और मिसेज इंडिया 2018 की टाइटल विनर अनुराधा दुबे,जिन्होंने हाल ही में छत्तीसगढ़ के नए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जी के शपथ ग्रहण समारोह का शानदार मंच संचालन करके वाहवाही पाई है। अनुराधा के अपोजिट हैं पुष्पेन्द्र सिंह,जो हीरोइन के पिता के रोल में हैं।  महूं कुंवारा तहूं कुंवारी में अनुराधा दुबे का डिफरेंट रोल है। गंभीर भूमिका से हटकर उनका रोल दर्शकों को  एक अलग अंदाज में दिखाई देगा। यह फिल्म 10 मई 2019 को रिलीज होगी।

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एक बार फिर नए लुक में डॉ अजय सहाय


छालीवुड के सर्वश्रेष्ठ खलनायक ,लेखक ,निर्देशक साहित्यकार, कवि, रंगकर्मी, पटकथा कहानीकार, चरित्र अभिनेता डॉ अजय मोहन सहाय आज किसी परिचय के मोहताज नहीं है.फिल्मों में सभी प्रकार की भूमिका निभाने में वे माँहिर है. पागल, जादूगर, कॉमेडियन, डाक्टर, विलेन, इंस्पेक्टर, पिता, भाई, गरीब, किसान ना जाने किस किस किरदार
में आप उन्हें देखे होंगे। अब उन्हें फिर एक नए किरदार में देखेंगे। इस बार वे फिल्म लफंटूस में पंडित जी की भूमिका में सबका मनोरंजन करते नजर आएंगे। एजाज वारसी के निर्देशन में बन रही फिल्म लफंटूस एक कॉमेडी फिल्म है जिसमे एक्शन, रोमांस ,मारपीट, हंसीमजाक सब कुछ आपको मिलेंगे। इस फिल्म की शूटिंग रायपुर के कई लोकेशन में चल रही है. चार हीरो और चार हीरोइन वाली इस फिल्म में डॉ अजय सहाय की भूमिका महत्वपूर्ण है. निर्देशक एजाज वारसी ने जब पंडित के रोल के लिये डॉ अजय सहाय को ऑफर दिया तो वे इंकार नहीं कर पाए. क्योकि डॉ सहाय का स्वभाव ही सहयोग और मिलनसार का है.हालांकि वे कई फिल्मो के अभी तक रिलीज नहीं होने से वे आहत हैं.आहत होना भी स्वाभाविक है क्योकि वे छत्तीसगढ़ी फिल्मो का वे एक आधार स्तम्भ है.

... तो छा जाएगी छत्तीसगढ़ी फिल्म

यहां के कलाकारों की प्रतिभा बेजोड़ है- रजनीश झांझी

  •      थिएटर की मशहूर शख्सियत और छत्तीसगढ़ी एवं भोजपुरी फिल्मों के स्टार कलाकार रजनीश झांझी का मानना है कि यदि शासन का थोड़ा सा सहयोग मिले तो छत्तीसगढ़ी बोली की मिठास और यहां की फिल्मों की ताजगी पूरे देश में अपनी पहचान बना सकती है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ को बने 18 वर्ष हो चुके हैं। छत्तीसगढ़ी फिल्म उद्योग का इतिहास भी इतना ही पुराना है। हमने कुछ अच्छी फिल्में भी दीं किन्तु दर्शक कम होने और शासन को किसी भी तरह का सहयोग नहीं मिलने के कारण लोग अपना मकान-खेत बेचकर फिल्मों में पैसा लगा रहे हैं।
  •      वर्ष बाद भी छत्तीसगढ़ फिल्म से जुड़े लोग इसे अपनी आजीविका नहीं बना पाए हैं। देश विदेश के अनेक मशहूर निर्देशकों के साथ काम कर चुके रजनीश बताते हैं कि अन्य राज्यों में क्षेत्रीय भाषा की फिल्मों को शासन अनुदान देता है। इतना ही नहीं क्षेत्रीय फिल्मों के प्रदर्शन के लिए वहां के टाकीजों पर भी शासन का दबाव रहता है। क्षेत्रीय भाषाओं की फिल्मों के दर्शक आम तौर पर उसी राज्य में सिमटे होते हैं, इसलिए ऐसा करना जरूरी भी है। छत्तीसगढ़ी फिल्मों की स्थिति की चर्चा करते हुए रजनीश बताते हैं कि देखते देखते छालीवुड में दूसरी पीढ़ी आ गई है पर हालात नहीं बदले हैं। बालीवुड की करोड़ों की बजट वाली फिल्मों की तुलना में यहां 40-50 लाख की फिल्मों में तकनीकी अंतर साफ दिखाई देता है। दोनों ही फिल्मों को एक समान दर की टिकटों पर देखना अधिकांश लोगों को गवारा नहीं होता। यदि शासन छत्तीसगढ़ी फिल्मों को मनोरंजन कर से मुक्त कर दे तो बात बन सकती है। रायपुर को छोड़ दें तो भिलाई और धमतरी में ही छत्तीसगढ़ फिल्मों का प्रदर्शन हो पाता है। हमारे पास कुल 23-24 टाकीज ही हैं जहां काफी चिरौरी विनती कर हम अपनी फिल्म लगा पाते हैं। उसपर भी यह टाकीज मालिक पर निर्भर करता है कि वह हमारी फिल्म को चलने दे या फिर उसे उतार दे। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ी फिल्मों के लिए लागत निकालना इसलिए भी  मुश्किल हो जाता है कि हमारे ऑडियो या वीडियो राइट्स खरीदने के लिए भी कोई आगे नहीं आता। फिल्म के प्रमोशन और डिस्ट्रीब्यूशन के लिए भी हमें ही अपने स्तर पर प्रयास करना होता है। रजनीश अपने परिवार में रंगमंच से जुड़ी तीसरी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं। अपने अनुभव के आधार पर वे कहते हैं कि छत्तीसगढ़ बोली की मिठास, छत्तीसगढ़ी गीतों की खनक और यहां के कलाकारों की प्रतिभा बेजोड़ है। एक दिन आएगा जब छत्तीसगढ़ी फिल्मों का जादू सिर चढ़ कर बोलेगा। फिलहाल तो मेहनत और कुर्बानियों का ही दौर है।

पहली छत्तीसगढ़ी फिल्म के साथ ऐसा विवाद हुआ कि

इंदिरा गांधी को देखनी पड़ी थी फिल्म

- अरुण कुमार बंछोर






भारत में फिल्म उद्योग सबसे प्रसिद्ध, व्यापक और प्रशंसित आकर्षणों में से एक है. हालांकि, यह मानना एक गंभीर गलती है कि मुंबई आधारित बॉलीवुड ही ऐसा केंद्र है जहां पर सभी फिल्में रिलीज होती हैं. क्षेत्रीय फिल्में भी अब आगे बढ़ रही हैं तथा देश और दुनिया भर में अपने प्रदर्शन के दम पर दर्शकों के दिलों पर कब्जा कर रही हैं. सैराट (मराठी), चौथी कूट (पंजाबी), रॉन्ग साइड राजू (गुजराती), क्षणम (तेलगु) आदि क्षेत्रीय फिल्मों ने यह सिद्ध कर दिया है कि सिनेमा लाइन में क्षेत्रीय फिल्मों का भी वर्चस्व है.
       1962 में निर्मित भोजपुरी फिल्म 'गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबोÓ देखकर मनु नायक ने सोच लिया था कि उन्हें अपनी छत्तीसगढ़ी भाषा में फि़ल्म बनानी है, और एक दिन अचानक 'सिने एडवांसÓ नामक मशहूर पत्रिका में घोषणा कर दी कि वह छत्तीसगढ़ी में एक फि़ल्म बनाने वाले हैं. फि़ल्मी पृष्ठ पर यह खबर क्या चली मनु नायक के करीबियों ने उन पर सवालों की बौछार कर दी, क्यों, कब और कैसे? लेकिन काफी सवालों का जवाब स्वयं मनु नायक के पास भी नहीं था, बस मन में यह ठान बैठे थे कि अपनी भूमि को कुछ लौटाना है. सारे सवालों की भीड़ में पहला जवाब मनु नायक को मिला म्यूजि़क डायरेक्टर मलय चक्रवर्ती. उन्होंने हामी भरी कि इस एक्सपेरिमेंट में वह उनके साथी होंगे. अमर गायक मु. रफी की आवाज में गाने की रिकार्डिंग की गयी और गीत लिखा डॉ. हनुमंत नायडू ने जिन्होंने छत्तीसगढ़ी गीतों पर डाक्टरेट किया था और संगीत दिया मलय चक्रवती ने.     तब तक फिल्म का नाम तय नहीं हुआ था, इसके पश्चात छत्तीसगढ़ी गीतों में संदेश होने की वजह से नाम रखा गया 'कहि देबे भइया ला संदेशÓ. इस फिल्म की कहानी प्रेम- प्रसंग पर आधारित रखने का विचार हुआ लेकिन कालांतर में छूआछूत के खिलाफ स्टोरी लिखी गई तो नाम में 'भइया लाÓ हटाकर 'कहि देबे संदेशÓ रखा गया. नवंबर 1964 में फिल्म की शूटिंग छत्तीसगढ़ के रायपुर जिला स्थित पलारी ग्राम में हुई.16 अप्रैल 1965 को रायपुर, भाटापारा, बिलासपुर में प्रदर्शित इस फिल्म ने इतिहास रचने के साथ ही सुर्खियां भी बहुत बटोरी. उस दौर में फिल्म को लेकर भारी विवाद हुआ, ब्राह्मण और दलित की प्रेम कथा से लोग उद्वेलित हो गए और विरोध प्रदर्शन करने की धमकियां भी दी.
   इसी वजह से तत्कालीन मनोहर टॉकिज कें मालिक पं. शारदा चरण तिवारी ने फिल्म के पोस्टर उतरवा दिए और फिल्म का प्रदर्शन रोक दिया. तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण मंत्री इंदिरा गांधी ने विवाद के चलते फिल्म देखी और समाज में भेदभाव समाप्त करने के संदेश को सराहते हुए अखबारों में बयान दिया जिसके कारण सारे विवाद भी खत्म हो गए. इसके बाद मध्यप्र देश राज्य सरकार ने फिल्म को टैक्स फ्री कर दिया तो सिनेमा घरों के संचालक इसे प्रदर्शित करने के लिए टूट पड़े. फिल्म ने सफलता पूर्वक प्रदर्शन कर इतिहास रचने के साथ ही छत्तीसगढ़ी सिनेमा में मनु नायक का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिख दिया गया. छत्तीसगढ़ की अस्मिता के लिए संघर्ष करने वाले और फिल्मों के जबरदस्त शौक़ीन स्व.विजय कुमार पाण्डेय ने छत्तीसगढ़ के टूटते परिवार की कहानी को लेकर सन् 1965 में 'घर द्वारÓ बनाने का संकल्प लिया था.
स्व. विजय पाण्डेय 'घर द्वारÓ बनाने मुम्बई (उस समय बम्बई हुआ करती थी) से पूरी टीम लेकर छत्तीसगढ़ आए. मुम्बई के नामचीन कलाकार कानन मोहन, रंजीता ठाकुर एवं दुलारी ने 'घर द्वारÓ में महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई थी. हिंदी फिल्मों के जाने-माने गायक मु. रफी एवं गायिका सुमन कल्याणपुर ने 'घर द्वारÓ के गीतों के लिए अपनी आवाजें दीं . 'घर द्वारÓ के गीत 'सुन-सुन मोर मया पीरा के संगवारी रेÓ, 'गोंदा फुलगे मोर राजाÓ एवं 'झन मारो गुलेलÓ आज भी लोगों की जुबान पर चढ़े हुए हैं.'घर द्वारÓ फिल्म के बाद छत्तीसगढ़ी फिल्मों का निर्माण मानो थम सा गया लेकिन सन 2000 में छत्तीसगढ़ एक नया राज्य बन गया और एक बार फिर से फिल्म बनाने का दौर शुरू हुआ. सन 2000 में रिलीज़ हुई 'मोर छईहा भुईयाÓ ने सिनेमा घरों में धूम मचा दी. 20 -30 लाख के बजट में बनी इस फिल्म ने करोड़ों का व्यवसाय किया और लगभग 6 महीने तक यह फिल्म सिनेमा घरों में लगी रही.
   
छॉलीवुड की समस्याएं

अधिकांश छत्तीसगढ़ी फिल्म बुरी तरह पिटती हैं जिसके बहुत सारे कारण हैं जैसे कि फिल्मों में रचनात्मकता की कमी, सरकार से किसी प्रकार की सब्सिडी या सहयोग नहीं मिलना, छत्तीसगढ़ी फिल्मों को बढ़ावा देने हेतु किसी भी प्रकार का कोई आयोग या फिल्म विकास निगम का गठन नहीं होना जिसकी वर्षो से मांग बनी हुई है. छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ बोलने वाले लोगो को 'देहातीÓ अर्थात गांव वाला माना जाता है इसलिए छॉलीवुड अब तक एक यंग जनरेशन के दिल और दिमाग में नहीं उतर पा रहा है. अगर इन फिल्मों को बेहतर तरीके से बनाया जाये तो बेशक आने वाली पीढ़ी छत्तीसगढ़ी फिल्मो में जरूर दिलसचस्पी लेगी.छत्तीसगढ़ में सिनेमा घरों की कमी भी एक बड़ी समस्या है, प्रदेश सरकर ने तहसील स्तर पर सिनेमा घर बनाने का वादा किया था लेकिन अब तक उस वादे पर अमल नहीं हो सका, पीवीआर एवं मॉल में छत्तीसगढ़ी फिल्मों को लगाया नहीं जाता जिसके कारण अब तक छत्तीसगढ़ी फिल्में छोटे परदे पर ही प्रदर्शित हो रही हैं .
बॉलीवुड का नक़ल करने का आरोप

भारतीय सिनेमा का इतिहास 100 वर्ष पूर्ण कर चुका है तो छत्तीसगढ़ी सिनेमा ने भी 50 वर्ष पार कर लिए है. छत्तीसगढ़ी फिल्मों ने अपनी एक अलग पहचान बनाई है. लेकिन छत्तीसगढ़ी फिल्मों पर हमेशा बॉलीवुड की नकल करने का आरोप लगता रहता है. अधिकांश छत्तीसगढ़ी फिल्मो में नयापन नहीं होता, इन छत्तीसगढ़ी फिल्मो में महज कट, कॉपी, पेस्ट कर दिया जाता है. छत्तीसगढ़ी फिल्म 'हीरो नंबर 1Ó राजेश खन्ना एवं गोविंदा की बॉलीवुड फिल्म स्वर्ग की कार्बन कॉपी है. छत्तीसगढ़ी सिनेमा की विफलता का एक मुख्य कारण लोगो की मानिसकता भी मानी जा सकती हैं, शहर के लोगों को छत्तीसगढ़ी ना समझ आती हैं और ना ही बोलनी, ऐसे में यह भ्रम बन गया है कि छत्तीसगढ़ी सिर्फ गांव के लोग (देहाती ) लोग ही बोलते हैं, शहर के लोग भी इस भाषा को सीखना और समझना चाहते हैं बशर्ते कोई सही और बेहतर तरीके से बताए. शहर के लोगों को कहना हैं कि वे छत्तीसगढ़ी मूवी देखना तो चाहते हैं लेकिन उन्हें छत्तीसगढ़ी समझ नहीं आती तथा इन फिल्मो में रचनात्मकता कि बहुत कमी होती हैं.
मजेदार होते हैं नाम
छत्तीसगढ़ी फिल्मों के नाम बेहद मजेदार होते है जैसे कि टूरि नंबर 1 (टुरी मतलब लड़की ) , लेडग़ा नंबर 1 (लेडग़ा मतलब मंदबुद्धि ),झन भूलो मां – बाप ला (अपने माता -पिता को मत भूलना) , राजा छत्तीसगढिय़ा, महू दीवाना – तहू दीवानी , (मैं दीवाना -तू दीवानी ) आधा पागल, डिफाल्टर नंबर एक , लैला टीप टॉप, गोलमाल आदि .यह देखा जाना बाकी है कि क्या हम प्रतिभा और विशेषज्ञता के खजाने की निधि को पहचानना शुरू करेंगे और क्षेत्रीय फिल्मों को प्रोत्साहित करेंगे और स्वयं की उपलब्धि को बढ़ावा देंगे. छत्तीसगढ़ी सिनेमा को अगर बेहतर ढंग से प्रस्तुत किया जाये तो बेशक यह कला, साहित्य क्षेत्रीय सिनेमा और लोक कलाकारों के लिए सुनहरा अवसर होगा.

    आधुनिकता की दौड़ में गुम हो
रही छत्तीसगढ़ी फिल्में

छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण की परिकल्पना के आकार लेने के पूर्व ही छत्तीसगढ़़ी भाषा में बनी फिल्में काफी मशहूर हुई थी, लेकिन मल्टीप्लेक्स के मौजूदा दौर में इनके दर्शकों की संख्या कम होती जा रही है। छत्तीसगढ़ी फिल्मों के शुरुआती दौर में लोकप्रियता का आलम यह था कि हॉलीवुड और बॉलीवुड की तर्ज पर छत्तीसगढ़़ी फिल्मों के लिए छॉलीवुड नाम चल पड़ा था। क्षेत्रीयता के दृष्टिकोण से टॉलीवुड कहे जाने वाले दक्षिण भारत की तेलुगू , तमिल या मलयालम भाषा में बनी फिल्में हो या कॉलीवुड के नाम से प्रचलित पश्चिम बंगाल की बंगलाभाषी फिल्मों की तरह छत्तीसगढ़़ी फिल्में अपने इस दौर को कायम नहीं रख सकीं । वर्ष 1964 में पहली छत्तीसगढ़़ी फिल्म ' कहि देबे संदेशÓ बनी थी । सवर्ण वर्ग की नायिका और अनुसूचित जाति के युवक के प्रेम एवं विवाह के ताने-बाने से बुनी इस फिल्म ने तत्कालीन दौर में काफी लोकप्रियता हासिल की थी, हालांकि इसे समाज के एक धड़े का विरोध भी झेलना पड़ा था । कुछ साल के अंतराल के बाद 1970 में दूसरी छत्तीसगढ़़ी फिल्म 'घरद्वारÓ रिलीज हुई । पारिवारिक पृष्ठभूमि पर आधारित यह फिल्म भी सफल रही ।
छत्तीसगढ़़ी फिल्मों के इतिहास में सर्वाधिक सफल फिल्म लेखक , निर्देशक सतीश जैन की 'मोर छंईहा भूंईयाÓ रही । इस फिल्म ने बॉलीवुड के राजश्री प्रोडक्शन द्वारा ग्रामीण परिवेश पर बनी फिल्म 'नदिया के पारÓ का रिकॉर्ड तोड़ते हुए बिलासपुर सहित कई शहरों में सिल्वर जुबली मनाई । छत्तीसगढ़ सरकार ने इसे सर्वश्रेष्ठ फिल्म के पुरस्कार से नवाजा । एक नवंबर 2000 को अलग राज्य बनने के बाद क्षेत्रीय फिल्म निर्माताओं में छत्तीसगढ़़ी फिल्मों की पृथक पहचान स्थापित करने की प्रेरणा बलवती हुई । उस समय 'मोर छंईहा भूंईयाÓ फिल्म की सफलता का नशा यहां के फिल्म निर्माताओं और कलाकारों पर छाया हुआ था। फिल्मकार प्रेम चंद्राकर ने छत्तीसगढ़़ी फिल्मों के लोकप्रिय अभिनेता अनुज शर्मा और उडिय़ा फिल्म अभिनेत्री प्रीति मिश्रा को लेकर 'मया देदे मया लेलेÓ बनाई । फिल्म की शूटिंग पुरी के मनोरम समुद्र तट और छत्तीसगढ़ में भिलाई एवं गरियाबंद जैसे स्थानों पर की गयी। हिन्दी फिल्मों की प्रेम कहानियों की कथावस्तु पर आधारित यह फिल्म अपने गीत-संगीत , हास्य एवं खूबसूरत लोकेशन की बदौलत दर्शकों की भीड़ खींचने में कामयाब रही। फिल्म को सर्वश्रेष्ठ नायिका एवं सर्वश्रेष्ठ हास्य के लिए छत्तीसगढ़ सरकार से अवार्ड भी मिला। 'मोर छंईहा भूंईयाÓ और 'मया देदे मया लेलेÓ की सफलता को देखकर छत्तीसगढ़़ी फिल्में बनाने की होड़ शुरू हो गयी । एक एक करके प्रीत की जंग, तुलसी चौरा, मयारू भौजी, जय महामाया, तोर मया के मारे , लेडग़ा नंबर वन, मोर धरती मैय्या और परदेसी के मया जैसी कई फिल्में आईं। इनमें से एकाध फिल्में ही कुछ स्थानों पर एक माह बमुश्किल चल पाई । कई तो इससे भी कम समय में पर्दे से उतर गईं।

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भूपेश बनेंगे छॉलीवुड के तारणहार ?

नई सरकार, नई उम्मीदें

       छालीवुड का सफर यूं तो 53 साल का है लेकिन सही मायने में छालीवुड का उम्र महज 18 साल ही है.1965 में पहली छत्तीसगढ़ी फिल्म 'कहि देबे संदेसÓ का निर्माण हुआ। इस फिल्म को उस समय काफी सराहा गया। इसके बाद, 1971 में स्थानीय बोली में फिल्म बनी, 'घर द्वारÓ जिसमें कई बॉलीवुड के कई नामचीन कलाकारों ने भूमिकाएं अदा कीं। इस फिल्म का संगीत भी काफी लोकप्रिय हुआ। फिल्म 'घर द्वारÓ के बाद, लंबे समय तक छत्तीसगढ़ी फिल्म का निर्माण नहीं हुआ। लेकिन राज्य बनने के बाद सन् 2000 में निर्देशक सतीश जैन और स्थानीय फिल्मों के वर्तमान सुपर स्टार अनुज शर्मा अभिनीत फिल्म 'छइंया भुइंयाÓ बनी। तब से लेकर अब तक छत्तीसगढ़ी फिल्म इंडस्ट्री सरकार से उपेक्षित ही रही है. 'छइंया भुइंयाÓ ने प्रदेश में इस उद्योग की एक बार फिर नींव रख दी। इसके बाद, फिल्म निर्माण में जैसे बाढ़ सी आ गई। लेकिन 'छइंया भुइंयाÓ ने जो कीर्तिमान हासिल किया था, उसके नजदीक गिनी-चुनी फिल्में ही पहुंच सकीं। ज्यादातर फिल्मों में निर्माताओं को नुकसान उठाना पड़ा, जिसके बाद यह मांग उठने लगी कि प्रदेश में फिल्म विकास निगम बनाया जाए। इसके लिए इंडस्ट्री से जुड़े लोगों ने एकजुट होकर आंदोलन भी किया। यही वजह रही कि पिछले चुनाव के पहले भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों ने अपने घोषणा-पत्र में निगम का निर्माण करने का वायदा किया। पूर्व की सरकार ने फिल्म विकास निगम का गठन भी किया लेकिन वे मात्र कलाकारों को लुभाने मात्र के लिए था. अब गठन हो गया है तो इसे सरकार की कृपा की जरुरत है.

जरूरी है फिल्म विकास निगम

फिल्म विकास निगम एक ऐसी संस्था है जो न सिर्फ  इस उद्योग से जुड़े लोगों की बातें सुनती है, बल्कि उनकी सहुलियत के लिए योजनाएं भी बनाती है। निगम के ही निर्देशन पर स्थानीय फिल्मों को अनुदान भी दिया जाता है, जिसकी वजह से निर्माताओं की आर्थिक नुकसान की संभावनाएं कम हो जाती हैं। महाराष्ट्र में इसी संस्था ने सुनिश्चित किया है कि सभी सिनेमाघरों में मराठी फिल्मों को प्रमुखता से दिखाया जाए। लेकिन छत्तीसगढ़ में निगम न होने की वजह से सिनेमाघरों के होने के बावजूद, स्थानीय फिल्मों को चलाने के लिए बहुत कम ही सेंटर मिल पाते हैं। वर्तमान में प्रदेश के सिनेमाघरों में सीधा दखल महाराष्ट्र के अमरावती के वितरकों का है, जिसकी वजह से थियेटर मालिक भी स्थानीय फिल्मों को प्रदर्शित करने में हिचकते हैं। पूरे प्रदेश में करीब 35  सेंटर हैं, जहां स्थानीय फिल्मों का प्रदर्शन हो सकता है, लेकिन औद्योगिक दबाव के चलते ये सेंटर भी छत्तीसगढ़ी फिल्मों को रिलीज करने से बचते हैं।
 
छत्तीसगढ़ी कलाकारों में है असुरक्षाबोध

छत्तीसगढ़ी फिल्म के सुपरस्टार और पद्मश्री अनुज शर्मा ने बताया कि वर्तमान में छत्तीसगढ़ी फिल्म उद्योग से जुड़े लोग अपने आप को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। निगम सही दिशा में काम करने लगे तो कम-से-कम इनकी समस्याओं के निराकरण के लिए कोई ठोस पहल तो की जा सकेगी, इसलिए लगातार यह मांग उठाई जा रही है।
 बड़ी संख्या में जुड़े लोग

पिछले 18 सालों में स्थानीय फिल्म निर्माण एक उद्योग का रूप ले चुका है, जिसमें हजारों की संख्या में लोग जुड़े हुए हैं। शुरुआती दौर में स्थानीय फिल्मों का प्री-प्रोडक्शन और पोस्ट प्रोडक्शन दोनों ही मुंबई या उड़ीसा के दक्ष तकनीशियनों की मदद से पूरा किया जाता था। लेकिन वर्तमान में सभी कार्य स्थानीय कलाकारों व तकनीशियनों के जरिए ही हो रहा है। इन कार्यों को हजारों की संख्या में लोगों ने अपने रोजगार के रूप में अपना लिया है। लेकिन निगम प्रभावी ना होने की वजह से जिस तरह से यह उद्योग नुकसान झेल रहा है, उससे संदेह है कि आने वाले दिनों में फिल्मों का निर्माण कम हो जाएगा और लोग बेरोजगार हो जाएंगे।
कलाकार करेंगे आंदोलन

फिल्म विकास निगम बनाने की मांग को लेकर हाल में संस्कृति विभाग के गढ़हटरी में छत्तीसगढ़ी फिल्म कलाकार एकजुट हुए थे। छत्तीसगढ़ फिल्म विकास संघर्ष समिति के बैनर तले इन्होंने चिंता जताई कि सरकार की घोषणा के बावजूद, छालीवुड के विकास के लिए कोई ठोस पहल नहीं की गई है।

उद्योग का दर्जा

छत्तीसगढ़ी सिनेमा को उद्योग का दर्जा तो हासिल है, लेकिन सुविधाएं अब तक उस तरह की नहीं मिल पाई हैं। हालांकि सोशल मीडिया छत्तीसगढ़ी सिनेमा के लिए नया बाजार बनकर उभरा है। यूृ- ट्यूब पर छत्तीसगढ़ी फिल्मों का बड़ा वर्ग तैयार हुआ है। हर राज्य में क्षेत्रीय भाषा की फिल्मों को बढ़ावा देने की अपनी नीति है। जिसमें रीजनल फिल्मों के लिए सब्सिडी भी है। ऐसे में उस प्रदेश के सिनेमाघर में वहां की क्षेत्रीय फिल्में करीब 90 दिन दिखाना अनिवार्य भी की गईं हैं, लेकिन यहां इस तरह की नीतियों की कमी है।
 फिल्म सिटी

बीते 18 सालों में रायपुर में फिल्म सिटी बनाने को लेकर शासन की ओर से कई घोषणाएं हुई। लेकिन जमीनी स्तर पर कोई भी पहल अब तक नहीं हो पाई है। प्रदेश में करीब 35 स्क्रीन है। इसके मद्देनजर इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ाने का भी ऐलान हुआ था, जिसके तहत तमाम कस्बों और छोटे शहरों में सिनेमाघर बनाए जाने थे। लेकिन ये काम भी अब तक शुरु नहीं हो पाया है। इस साल करीब 15 से ज्यादा फिल्मों का निर्माण चल रहा है। यही नहीं 500 म्यूजिक एलबम यानी करीब 5 हजार गाने भी रिलीज हो रहे हैं। छग के अलावा ये फिल्में जम्मू-कश्मीर और महाराष्ट्र के सिनेमाघरों में भी लगती है। मल्टीप्लेक्स में छत्तीसगढ़ी फिल्में न के बराबर ही लगती है। केवल सिंगल स्क्रीन थिएटर के भरोसे ये पूरी इंडस्ट्री चल रही है। कुछ बड़े मेलों में घूमते- फिरते सिनेमाघरों के जरिए फिल्में दिखाई जा रही हैं। बताया जाता है कि इनसे भी फिल्मों को कमाई हो जाती है। मोटे तौर पर एक फिल्म जब बनती है तो करीब 200 से 250 लोग रोजगार पाते हैं। हालांकि असंगठित रूप से इस उद्योग में रोजी रोटी कमाते हैं। छत्तीसगढ़ में सिनेमाघरों की कमी के चलते भी यहां फिल्म उद्योग रफ्तार नहीं पकड़ पा रहा है। ऐसे में लंबे समय तक इस इंडस्ट्री से जुड़े लोगों के सामने नियमित रूप से अपनी जीविका चलाने को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं।
भोजपुरी फिल्मों की तरफ  रुख कर रहे हैं अधिकतर
यूपी सरकार की फिल्म नीति के चलते छत्तीसगढ़ी फिल्मों के ज्यादातर निर्माता और कलाकार अब भोजपुरी फिल्मों का रुख कर रहे हैं। इसकी वजह है कि यहां फिल्में बनाने पर सब्सिडी भी मिल रही है। वहीं फिल्म के प्रदर्शन के लिए थिएटरों की तादाद भी ज्यादा है। कुछ कलाकार मराठी और हिंदी फिल्मों में भी काम कर रहे हैं। हाल ही में छत्तीसगढ़ी फिल्म निर्माता संतोष जैन ने भोजपुरी फिल्म भी बनाई जो रिलीज हो गई है। हालांकि यहां के निर्माता अब हिंदी सिनेमा के लिए फिल्में भी बना रहे हैं।

नई प्रतिभाओं को मौका मिले

प्रदेश में छोटे छोटे कस्बों में सिनेमाघर बनाए जाने चाहिए। इससे प्रदेश में हमारी फिल्मों का एक बड़ा दर्शक वर्ग भी तैयार होगा। सिनेमाघर ज्यादा होंगे तो फिल्में भी ज्यादा बनेंगी। नए कलाकारों प्रतिभाओं को मौका मिलेगा। - मोहन सुंदरानी छत्तीसगढ़ी अभिनेता व  निर्माता-निर्देशक

एक से बढ़कर एक लोकेशन
हिंदी फिल्मों के कई निर्माता- निर्देशक छत्तीसगढ़ में फिल्मों की शूटिंग करना चाहते हैं। क्योंकि यहां एक से बढ़कर एक सुंदर लोकेशन है। अगर हमारा क्षेत्रीय सिनेमा मजबूत होता है तो इसके जरिए भी कई लोगों को रोजगार के अच्छे अवसर मिल पाएंगे।
- संतोष जैन, छत्तीसगढ़ी-भोजपुरी फिल्म निर्माता

सोशल मीडिया से बढ़ी पहुंच

फिल्म पॉलिसी नहीं बनने की वजह से कलाकारों को बड़ा नुकसान हो रहा है। छॉलीवुड फिल्मों को सब्सिडी भी नहीं मिल रही है। पॉलिसी बनने से दूसरी फिल्म इंडस्ट्रीज को बड़ी टक्कर दे सकता है।
-योगेश अग्रवाल, अध्यक्ष छग फिल्म इंडस्ट्री एसोसिएशन
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शनिवार, 12 जनवरी 2019

छॉलीवुड को उम्मीद आपके करिश्मे की

- श्रीमती केशर सोनकर
  •       साल बाद छत्तीसगढ़ में सत्ता परिवर्तन। भूपेश बघेल के हाथों में कांग्रेस सरकार की बागडोर। वह भी करिश्माई जीत के साथ। पर यह जीत जितनी बड़ी है, उतनी ही कठिन चुनौतियां भी साथ लाई हैं। राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक तीनों। जनता की अपेक्षाओं के साथ 6 महीने बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ से एकतरफा बढ़त की उम्मीद अब पार्टी उनसे करेगी। साथ ही छॉलीवुड भी बड़ी ही उम्मीदों के साथ आपकी ओर निहार रही है. छॉलीवुड का सफर 53 सालों का है लेकिन ये फिल्म उद्योग सही मायने में 53 कदम भी आगे नहीं बढ़ पाई है. क्योंकि इस ओर ध्यान देने वाला अब तक कोई मसीहा छॉलीवुड को मिला ही नहीं। छॉलीवुड के नाम से मशहूर छत्तीसगढ़ी फिल्म निर्माण का इतिहास वैसे तो काफी पुराना है, लेकिन अलग राज्य बनने के बाद, इस उद्योग ने प्रदेश में नई पहचान बनाई है। शुरुआती दौर में कुछ फिल्मों ने रिकॉर्ड भी बनाए, जिसके बाद अब तक करीब ढाई सौ फिल्मों का निर्माण हुआ, जिसमें से महज 10 प्रतिशत ने ही मुनाफा कमाया। जानकार इसकी वजह प्रदेश में अब तक फिल्म विकास निगम का न होना मानते रहे हैं। निगम न होने की वजह से उनकी सुनने वाला अभी कोई नहीं था। विधानसभा चुनाव के ठीक पहले फिल्म विकास निगम बनाया जो कुछ कदम आगे बढ़ाते उसके पहले ही आचार संहिता लागू हो गया. सही मायने में पूर्व सरकार ने चुनाव में कलाकारों को अपने पक्ष में करने के लिए ही निगम बनाया। अगर नियत साफ़ होता तो 15 सालों में कब का बना दिए होते। खैर जो भी होता है अच्छा ही होता है. अब छॉलीवुड को उम्मीद आपके करिश्मे की है.
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