रविवार, 21 जनवरी 2018

पीरा

(अरपा अउ बिलासा दाई के गोठ)
बिलासा हां चिल्लईस - कहाहस् हो बहिनी अरपा का करत हस, आज बड़े बहिनी महिमा(महानदी) आने वाला रहिस हे आइस हे का।
घर के भीतरी आये के बाद अरपा ल देख के फेर बिलासा कईथे।
कईसे ओ बहिनी अरपा तोर तबियत तो बने हे ना कईसे दिखत हस बने खावत पियस नई का अतका काबर सुखा गे हस।
 बिलासा के बात ल सुन के अरपा हा कहिथे।
का बताओ ओ बहिनी तोला मैं हा
मोर लइका मन अब मोला मया नई करये।
पहली बने खुशाली म लहर-लहर बोहात रहेव अब तो दिनों दिन सुखात जात हौ।
सबो मैला कचरा ल मोरे म डाल देथे देख ले मोर हाल ल देख तो मोर अंग मन ल कईसन गन्दा दिखत हे।
अउ मैं तो महतारी हौ भले सुखा जाव फेर मोर लईका मन के प्यास ल देख के कल्लासि लागथे ओ बहिनी। कतका समझाबे लईका मन ला अपन गलती ल समझबे नई करय।
सब्बो कचरा-गन्दगी ल लाके मोरे मुढ़ी म पटक देथे।
लईका मन ला घलोक नई दिखय ओखर दाई कतका मैली होंगे हे अउ दिनों दिन प्यास म सुखात जात हे।
वहा दे देख ले अपन कचरा ल ला के मोर ऊपर कुडहात हे मैं खुदे ईहा बेसुधहा पड़े हौ फेर येला कहा बोहा के ले जाहु।
तै बता बहिनी तोर का हाल हे।
बिलासा- काला बताबे तहु देखत तो हस बने सुग्घर दिखत हौ बस ऊपरे ऊपर ले, अंदर ले तो अतका पीड़ा हवाए काला देखाबे मोरो सब्बो लईका मन मोर हाल ला देखत हे तभो ले अपन दाई के तकलीफ ल दुरिया नई कर सकत हे। देखत तो हस तै हा जहा देखबे उहा कोडाये हेद्य
मोर हिरदे ल कईसन चानी-चानी कर(ख़ोद)डाले हे। का बताओ ओ बहनी अपन तकलीफ ल।
लईका मन कहिथे दाई तोर बिकास करबो तोला सुग्घर चमकाओ।
मेहा कैहिथौ बिकास जब होही तब होही अभी अतका तकलीफ सहत हौ तेन मोर लईका मन ला नई दिखत हे। जल्दी अपन दाई के पीरा ल कम करतीं ता अउ समय समय म नया नया दु:ख ल देथे अइसने तो हाल हे। जइसने बेरा हा बढ़त हे तइसने मोर दु:ख तकलीफ ह बढ़त हे।
दुनो बहिनी मन के गोठ होवत रहिथे तभे महानदी हा अरपा मेर मिले ला पहुचथे।
महानदी- कइसन दुबरा गए हस ओ बहिनी अरपा तोला देख के महू ला अब्बड़ दु:ख होथे ओ बहनी। अतका दिन बाद तोर ले मिले बर आये हौ अउ तोर ये हाल हे।
अरपा - बने हंव बहिनी।

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