- अरुण बंछोर
देेश विदेश में अपनी मॉडलिंग का जौहर दिखा चुके छत्तीसगढ़ के सुपर मॉडल सुनील तिवारी ने फिल्मो में भी अपनी कला से सबका दिल जीता है. कारी जैसी सुपर हिट फिल्म से छालीवुड में कदम रखने वाले सुनील ने इस इंडस्ट्री की कई हिट फिल्मो में काम कर अभिनय में अपना लोहा मनवाया है और अब राजू दिलवाला में जलवा दिखाने के लिए तैयार है. इस फिल्म से उन्हें बहुत ही उम्मीद है.
राजू दिलवाला में अपनी भूमिका को बेहतर मानते हैं.उनका कहना है कि यह फिल्म बहुत ही शानदार बनी है.सब कुछ है इस फिल्म में. दर्शको का भरपूर मनोरंजन करेगी, यह तय है. सुनील तिवारी ने हीरों नंबर वन, तोला ले जाहूं उड़रिया जैसी फिल्मो में बेहतरीन अभिनय किया है. 2000 से ज्यादा मॉडलिंग करने वाले सुनील इवेंट के क्षेत्र में माहिर खिलाड़ी हैं.वे कहते हैं की एक्टिंग में बचपन से ही रुचि रही है और र्मैं छालीवुड में कुछ करके दिखाना चाहता हूँ। अब लगातार फिल्मों में ही काम करते रहने की तमन्ना है। हर कला मुझे पसंद है। समय के साथ साथ सब अच्छा है। मैं हर भूमिका को पसंद करता हूँ। उनका कहना है कि नॉन प्रोफेशनल लोगो के छालीवुड में आने से फिल्मो का स्तर गिरा है जिससे छत्तीसगढ़ी फिल्मो की गुणवत्ता पर दर्शकों को भरोसा नहीं हैं. सुपर मॉडल सुनील तिवारी को संजय बत्रा ने फिल्म कारी में मौका दिया जिसमे उनकी अदाकारी को सबने सराहा। उसके बाद सुनील तिवारी ने पीछे मुइड्कर नहीं देखा और आज सबके सामने है. राजू दिलवाला में उन्हें अपनी भूमिका बेहद कारगर लगी है.
उनका कहना है की यह फिल्म सुन्दर हसीनवादियों में फिल्माई गयी है और प्रकाश अवस्थी ने बेहतर निर्देशन किया है. वे बताते हैं की शूटिंट्ग के दौरान प्रकाश अवस्थी की मेहनत और लगन देखकर मुझे भी बहुत कुछ सीखने को मिला। काम ही सर्वोपरि है यह प्रकाश जी सबको सीखा दिया। दिन भर थके होने के बावजूद प्रकाश अवस्थी सबसे पहले उठते थे और सबको उठाते थे. सबका ख्याल उन्होंने एक मुखिया की तरह रखा, ये सबसे बड़ी बात थी. यही कारण है की सबने इस फिल्म में मन लगाकर काम किया और फिल्म अच्छी बनी.प्रकाश अवस्थी का निर्देशन इसलिए बेहतर है कि जब तक किसी शॉट से वे संतुष्ट नहीं हो जाते थे शूट करते थे. अभिनेता तो वो बेस्ट है ही ,निर्देशक भी बेस्ट हैं. बतौर सुनील तिवारी बचपन से ही एक्टिंग में उनकी रुचि रही है। स्कूलों में ड्रामा, नौटंकी देखकर इस क्षेत्र में कदम बढ़ाया ऑर्डर आज वे सफल एक्टर है. एक प्रश्न के उत्तर में वे कहते हैं कि छत्तीसगढ़ी फिल्मो में मौलिकता और छत्तीसगढ़ी संस्कृति की कमी झलकती है। यही नहीं कलाकारों का चयन भी पात्रों के अनुसार नहीं होता इसलिए फिल्मो को दरसहाक़ नकारते हैं.दूसरी ओर छत्तीसगढ़ी सिनेमा में शौकिया तौर पर फिल्म बनाने वाले लोग बड़ी संख्या में आ रहे है। जिससे भी फिल्म का स्तर गिरा है. कई भाषाओं में क्षेत्रीय फिल्म निर्माण से छत्तीसगढ़ी फिल्मों की आउट सोर्सिंग हुई है भोजपुरी, और उडिय़ा से नया बाजार मिला है इसी तरह और भी तरीके ईजाद करने से इंडस्ट्रीज के सभी लोगों का भला होगा। यहां कलाकारों की कतई कमी नहीं है। छत्तीसगढ़ फिल्मों को थियेटरों की कमी से जूझना पड़ रहा है अगर सरकार सहूलियत दे और कारपोरेट सेक्टर प्रदेश में सौ-डेढ़ सौ नए सिनेमाघर बना दे तो छत्तीसगढ़ी फिल्मों का रंग ही बदल जायेगा। उद्योगों की तरह रियायती दर में जमीन और उस पर कामर्शियल काम्प्लेक्स के निर्माण की अनुमति से नहीं कंपनियां सिनेमाघरों के निर्माण के लिए आकर्षित हो सकती है। छालीवुड की क्या सम्भावनाये दिखती है? के उत्तर है कि बेहतर है। आने वाले समय में यहां की फिल्मे बॉलीवुड की तरह ही चलेंगी।यहां फिलहाल दर्शकों की कमी है। लोगो में अपनी भाषा के प्रति वो रूचि नहीं है जो होनी चाहिए और जो दर्शक है उनकी रुझान हिन्दी फिल्मो की ओर है। सुनील तिवारी की तमन्ना है कि मेहनत और लगन से छालीवुड में कुछ करके दिखायें। हर कला उन्हें पसंद है। चाहे नायक हो या फिर और पात्र। समय के साथ साथ सब अच्छा है। वे हर भूमिका को पसंद करते हैं।
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