आने वाला समय छॉलीवुड के लिए बेहतर होगा, इससे इंकार नहीं किया जा सकता। राज्य में इन दिनों अच्छी अच्छी फि़ल्में बन रही है.एकाध फिल्मो को छोड़ दें तो छत्तीसगढ़ फिल्म इंडस्ट्री का भविष्य अच्छा है. कुछ ऐसे लोगों का फिल्म इंडस्ट्री में प्रवेश हो चुका है जिसका फिल्मो से दूर दूर तक नाता नहीं है वे शौकिया तौर पर फिल्म में आ रहे है.जिसके चलते कभी कभी फिल्म इंडस्ट्री को नुकसान उठाना पड़ता है. सच बात कहो तो ऐसे लोग पत्रकारों पर अनर्गल आरोप लगाने से भी नहीं चूकते। खैर बुरे दिन आते है तो अच्छे दिन भी आते हैं. 2018 में राजू दिलवाला एक बेहतरीन फिल्म आई जो इस इंडस्ट्री के लिए आक्सीजन का काम किया। इसके ठीक पहले जो फिल्म आई वह छालीवुड को नुकसान देने वाली थी इस साल कई अच्छी फिल्मे आने वाली है जिसमे प्रेम के बंधना, दबंग दरोगा, बंधन प्रीत के, तोर मोर यारी, फेमिली नंबर वन, आई लव यूं, सारी लव यूं (शूटिंग जारी), प्रमुख है.ये फिल्मे बॉलीवुड को टक्कर देती नजर आएगी।गीत-संगीत की दृष्टि से छत्तीसगढ़ी फिल्में हिन्दी फिल्मों को बहुत कुछ प्रदान कर सकती है। दिल्ली-6 और पीपली लाइव के छत्तीसगढ़ी गानों ने देश को आकर्षित किया। छत्तीसगढ़ी फिल्म का सर्वश्रेष्ठ अभी आना बाकी है।
दरअसल छत्तीसगढ़ी सिनेमा परिवर्तन के दौर में है। इसमें तेजी से बदलाव हो रहे है। अब यहां के निर्माता- निर्देशकों को यह अहसास हो रहा है कि हिन्दी फिल्मों की तरह यहां गांव में क्रूर जमींदार और ठाकुर नहीं होते। शांतिप्रिय छत्तीसगढ़ में प्रेम का बड़ा महत्व है और यहां लोगों के बीच मेलजोल भी बहुत है। इसलिए छत्तीसगढ़ फिल्मों की कथावस्तु भी अब बदल रही है और लोग फार्मूलों से हटकर फिल्में बना रहे है। सिंधु घाटी की सभ्यता के अनुरुप हम रहते नहीं है लेकिन चाहते हैं कि उस सभ्यता के अनुरूप फिल्म बनाए। दरअसल कुछ लोगों को आदत ही होती है मीन मेख निकालने की और आलोचना करने में उन्हें सुख मिलता है भले ही व तार्किक और समयानुकूल ना हो। आज गांव-गांव में मोबाइल व कम्प्यूटर का चलन है और लोगों के रहन-सहन में आधुनिकता झलकती हो वहां फिल्मों में पुरातनपंथी की हिमायत करना कहां तक उचित हो सकता है। छॉलीवुड में बहुत सी असफल हो जाती है इसका सबसे बड़ा कारण छत्तीसगढ़ी फिल्में दर्शकों के दिलों तक नहीं पहुंच पा रही है। उन्हें अपनेपन का अहसास नहीं करवा पा रही है। यहां के लोगों की बात उनका जीवन उनकी समस्या उनके तौर-तरीके फिल्म में हो तो बात कुछ बने। निश्चित ही समय बदल रहा है सोच परिवर्तित हो रही है तो फिल्मी ढर्रा भी बदलेगा। छत्तीसगढ़ी फिल्मों में गीत-संगीत गुणवत्ता परक होनी चाहिए नकल नहीं हो तो बेहतर होगा। परंपराओं के नाम पर इतिहास ढोना बुद्घिमानी नहीं होती अत: बदलाव हो लेकिन सकारात्मक और मौलिक तरीके से.
- श्रीमती केशर सोनकर
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