मंगलवार, 22 मई 2018
राजू दिलवाला में दिखेगा सुनील तिवारी का जलवा
- अरुण बंछोर
देेश विदेश में अपनी मॉडलिंग का जौहर दिखा चुके छत्तीसगढ़ के सुपर मॉडल सुनील तिवारी ने फिल्मो में भी अपनी कला से सबका दिल जीता है. कारी जैसी सुपर हिट फिल्म से छालीवुड में कदम रखने वाले सुनील ने इस इंडस्ट्री की कई हिट फिल्मो में काम कर अभिनय में अपना लोहा मनवाया है और अब राजू दिलवाला में जलवा दिखाने के लिए तैयार है. इस फिल्म से उन्हें बहुत ही उम्मीद है.
राजू दिलवाला में अपनी भूमिका को बेहतर मानते हैं.उनका कहना है कि यह फिल्म बहुत ही शानदार बनी है.सब कुछ है इस फिल्म में. दर्शको का भरपूर मनोरंजन करेगी, यह तय है. सुनील तिवारी ने हीरों नंबर वन, तोला ले जाहूं उड़रिया जैसी फिल्मो में बेहतरीन अभिनय किया है. 2000 से ज्यादा मॉडलिंग करने वाले सुनील इवेंट के क्षेत्र में माहिर खिलाड़ी हैं.वे कहते हैं की एक्टिंग में बचपन से ही रुचि रही है और र्मैं छालीवुड में कुछ करके दिखाना चाहता हूँ। अब लगातार फिल्मों में ही काम करते रहने की तमन्ना है। हर कला मुझे पसंद है। समय के साथ साथ सब अच्छा है। मैं हर भूमिका को पसंद करता हूँ। उनका कहना है कि नॉन प्रोफेशनल लोगो के छालीवुड में आने से फिल्मो का स्तर गिरा है जिससे छत्तीसगढ़ी फिल्मो की गुणवत्ता पर दर्शकों को भरोसा नहीं हैं. सुपर मॉडल सुनील तिवारी को संजय बत्रा ने फिल्म कारी में मौका दिया जिसमे उनकी अदाकारी को सबने सराहा। उसके बाद सुनील तिवारी ने पीछे मुइड्कर नहीं देखा और आज सबके सामने है. राजू दिलवाला में उन्हें अपनी भूमिका बेहद कारगर लगी है.
उनका कहना है की यह फिल्म सुन्दर हसीनवादियों में फिल्माई गयी है और प्रकाश अवस्थी ने बेहतर निर्देशन किया है. वे बताते हैं की शूटिंट्ग के दौरान प्रकाश अवस्थी की मेहनत और लगन देखकर मुझे भी बहुत कुछ सीखने को मिला। काम ही सर्वोपरि है यह प्रकाश जी सबको सीखा दिया। दिन भर थके होने के बावजूद प्रकाश अवस्थी सबसे पहले उठते थे और सबको उठाते थे. सबका ख्याल उन्होंने एक मुखिया की तरह रखा, ये सबसे बड़ी बात थी. यही कारण है की सबने इस फिल्म में मन लगाकर काम किया और फिल्म अच्छी बनी.प्रकाश अवस्थी का निर्देशन इसलिए बेहतर है कि जब तक किसी शॉट से वे संतुष्ट नहीं हो जाते थे शूट करते थे. अभिनेता तो वो बेस्ट है ही ,निर्देशक भी बेस्ट हैं. बतौर सुनील तिवारी बचपन से ही एक्टिंग में उनकी रुचि रही है। स्कूलों में ड्रामा, नौटंकी देखकर इस क्षेत्र में कदम बढ़ाया ऑर्डर आज वे सफल एक्टर है. एक प्रश्न के उत्तर में वे कहते हैं कि छत्तीसगढ़ी फिल्मो में मौलिकता और छत्तीसगढ़ी संस्कृति की कमी झलकती है। यही नहीं कलाकारों का चयन भी पात्रों के अनुसार नहीं होता इसलिए फिल्मो को दरसहाक़ नकारते हैं.दूसरी ओर छत्तीसगढ़ी सिनेमा में शौकिया तौर पर फिल्म बनाने वाले लोग बड़ी संख्या में आ रहे है। जिससे भी फिल्म का स्तर गिरा है. कई भाषाओं में क्षेत्रीय फिल्म निर्माण से छत्तीसगढ़ी फिल्मों की आउट सोर्सिंग हुई है भोजपुरी, और उडिय़ा से नया बाजार मिला है इसी तरह और भी तरीके ईजाद करने से इंडस्ट्रीज के सभी लोगों का भला होगा। यहां कलाकारों की कतई कमी नहीं है। छत्तीसगढ़ फिल्मों को थियेटरों की कमी से जूझना पड़ रहा है अगर सरकार सहूलियत दे और कारपोरेट सेक्टर प्रदेश में सौ-डेढ़ सौ नए सिनेमाघर बना दे तो छत्तीसगढ़ी फिल्मों का रंग ही बदल जायेगा। उद्योगों की तरह रियायती दर में जमीन और उस पर कामर्शियल काम्प्लेक्स के निर्माण की अनुमति से नहीं कंपनियां सिनेमाघरों के निर्माण के लिए आकर्षित हो सकती है। छालीवुड की क्या सम्भावनाये दिखती है? के उत्तर है कि बेहतर है। आने वाले समय में यहां की फिल्मे बॉलीवुड की तरह ही चलेंगी।यहां फिलहाल दर्शकों की कमी है। लोगो में अपनी भाषा के प्रति वो रूचि नहीं है जो होनी चाहिए और जो दर्शक है उनकी रुझान हिन्दी फिल्मो की ओर है। सुनील तिवारी की तमन्ना है कि मेहनत और लगन से छालीवुड में कुछ करके दिखायें। हर कला उन्हें पसंद है। चाहे नायक हो या फिर और पात्र। समय के साथ साथ सब अच्छा है। वे हर भूमिका को पसंद करते हैं।
छत्तीसगढ़ फिल्मों के अच्छे दिन भी आएंगे
आने वाला समय छॉलीवुड के लिए बेहतर होगा, इससे इंकार नहीं किया जा सकता। राज्य में इन दिनों अच्छी अच्छी फि़ल्में बन रही है.एकाध फिल्मो को छोड़ दें तो छत्तीसगढ़ फिल्म इंडस्ट्री का भविष्य अच्छा है. कुछ ऐसे लोगों का फिल्म इंडस्ट्री में प्रवेश हो चुका है जिसका फिल्मो से दूर दूर तक नाता नहीं है वे शौकिया तौर पर फिल्म में आ रहे है.जिसके चलते कभी कभी फिल्म इंडस्ट्री को नुकसान उठाना पड़ता है. सच बात कहो तो ऐसे लोग पत्रकारों पर अनर्गल आरोप लगाने से भी नहीं चूकते। खैर बुरे दिन आते है तो अच्छे दिन भी आते हैं. 2018 में राजू दिलवाला एक बेहतरीन फिल्म आई जो इस इंडस्ट्री के लिए आक्सीजन का काम किया। इसके ठीक पहले जो फिल्म आई वह छालीवुड को नुकसान देने वाली थी इस साल कई अच्छी फिल्मे आने वाली है जिसमे प्रेम के बंधना, दबंग दरोगा, बंधन प्रीत के, तोर मोर यारी, फेमिली नंबर वन, आई लव यूं, सारी लव यूं (शूटिंग जारी), प्रमुख है.ये फिल्मे बॉलीवुड को टक्कर देती नजर आएगी।गीत-संगीत की दृष्टि से छत्तीसगढ़ी फिल्में हिन्दी फिल्मों को बहुत कुछ प्रदान कर सकती है। दिल्ली-6 और पीपली लाइव के छत्तीसगढ़ी गानों ने देश को आकर्षित किया। छत्तीसगढ़ी फिल्म का सर्वश्रेष्ठ अभी आना बाकी है।
दरअसल छत्तीसगढ़ी सिनेमा परिवर्तन के दौर में है। इसमें तेजी से बदलाव हो रहे है। अब यहां के निर्माता- निर्देशकों को यह अहसास हो रहा है कि हिन्दी फिल्मों की तरह यहां गांव में क्रूर जमींदार और ठाकुर नहीं होते। शांतिप्रिय छत्तीसगढ़ में प्रेम का बड़ा महत्व है और यहां लोगों के बीच मेलजोल भी बहुत है। इसलिए छत्तीसगढ़ फिल्मों की कथावस्तु भी अब बदल रही है और लोग फार्मूलों से हटकर फिल्में बना रहे है। सिंधु घाटी की सभ्यता के अनुरुप हम रहते नहीं है लेकिन चाहते हैं कि उस सभ्यता के अनुरूप फिल्म बनाए। दरअसल कुछ लोगों को आदत ही होती है मीन मेख निकालने की और आलोचना करने में उन्हें सुख मिलता है भले ही व तार्किक और समयानुकूल ना हो। आज गांव-गांव में मोबाइल व कम्प्यूटर का चलन है और लोगों के रहन-सहन में आधुनिकता झलकती हो वहां फिल्मों में पुरातनपंथी की हिमायत करना कहां तक उचित हो सकता है। छॉलीवुड में बहुत सी असफल हो जाती है इसका सबसे बड़ा कारण छत्तीसगढ़ी फिल्में दर्शकों के दिलों तक नहीं पहुंच पा रही है। उन्हें अपनेपन का अहसास नहीं करवा पा रही है। यहां के लोगों की बात उनका जीवन उनकी समस्या उनके तौर-तरीके फिल्म में हो तो बात कुछ बने। निश्चित ही समय बदल रहा है सोच परिवर्तित हो रही है तो फिल्मी ढर्रा भी बदलेगा। छत्तीसगढ़ी फिल्मों में गीत-संगीत गुणवत्ता परक होनी चाहिए नकल नहीं हो तो बेहतर होगा। परंपराओं के नाम पर इतिहास ढोना बुद्घिमानी नहीं होती अत: बदलाव हो लेकिन सकारात्मक और मौलिक तरीके से.
- श्रीमती केशर सोनकर
सदस्यता लें
संदेश (Atom)