- अरुण बंछोर
छत्तीसगढ़ी फि ल्मों की माली हालत जो भी हो, परंतु कलाकार की बड़ी प्रशंसक संख्या इनकी बड़ी ताकत है। गाँवों में इनके चाहने वालों की लम्बी चौड़ी फौज होती है. शहर के लोग भले ही ना जाने पर गाँव के लोग अपने कलाकारों को जानते हैं पहचानते है. गाँवों में टाकीज नहीं होने के कारण ग्रामीण छत्तीसगढ़ी फिल्म जरूर नहीं देख पाते पर उनकी पसंदीदा कलाकार छत्तीसगढ़ के ही होते हैं. अनुज शर्मा, मोहन सुंदरानी, मोना सेन, प्रकाश अवस्थी ऐसे कलाकार है जिन्हे गाँव- गाँव में जाना जाते हैं. जब यही कलाकार हैं गाँवों में जाते हैं तो भीड़ उमड़ पड़ती है. मैंने मोहन सुंदरानी के साथ कई गावों का दौरा किया। लोग उनके साथ फोटो खिचवाने के लिए टूट पड़ते हैं. अनुज शर्मा का कार्यक्रम हमने देखा, उनकी एक झलक पाने लोग बेकाबू हो जाते हैं. यही हाल मोना सेन का भी है. यही उनकी लोकप्रियता का सबूत है यही उनके लिए सच्ची तोहफा है. मुझे अच्छे से याद है जब बीरगांव में फिल्म रंगरसिया के एक गाने की शूटिंग हो रही थी. अनुज शर्मा को देखने लोग रात भर बैठे रहे. रात 3 बजे जब शूटिंग ख़त्म हुई तब लोग अपने अपने घर गए , ये उनकी लोकप्रियता है. चुनाव के दौरान जब यही कलाकार गाँवों में जाते हैं तो लोग उन्हें देखने सुनने दौड़ पड़ते हैं. इनकी मेहनत भी किसी से कम नहीं होती है.शूटिंग में इन्हे काफी पसीना बहाना पड़ता है.
हम गावों में जाते हैं और लोग हमें देखने उमड़ पड़ते हैं तब लगता है कि छत्तीसगढ़ी फिल्में अपने आपमें एक धरोहर हैं। सरकार ने भी कोशिश की है, कि इन्हें अच्छे मौके मिलें और स्थानीय कलाकार भी फु लटाइमर अपना करियर यहां दे सकें। हमारी कोशिश है नित नए प्रयोग करें। हाल ही में हमने राजा छत्तीसगढिय़ा फिल्म को हॉलीवुड स्टाइल में पेश किया है। हमारे लिए अच्छे दिन ये हैं कि आज हम प्रदेश के बड़े दायरे तक पहुंचते हैं। बलरामपुर के एक छोटे से गांव की बात हो या राजनांदगांव के। इन फिल्मों की रीच है। अब राजा छत्तीसगढिय़ा की सीक्वल 2 दिसंबर को रिलीज किया गया है। आप यकीन मानिए इसे प्रदेश के सारे के सारे सिंगल स्क्रींस मिले हैं।
- अनुज शर्मा, अभिनेता, छत्तीसगढ़ी फिल्म
संगीत पक्ष इन फिल्मों को जबरदस्त है। साथ ही डांसिंग को लेकर भी दर्शक अब मांग करने लगे हैं। प्रयोगों से लबरेज कोरियोग्राफी की डिमांड है। छत्तीसगढ़ी फिल्मों में एक तरह से हर तरह का तड़का लगा होता है। कोरियोग्राफी के भी पेशेवर स्थानीय स्तर पर ही मिलने लगे हैं। फाइटिंग के लिए भी निर्भरता खत्म हो रही है। चूंकि 4 करोड़ दर्शकों की बड़ी संख्या वाला यह सशक्त सिनेमा है।
- निशांत उपाध्याय, कोरियोग्राफर एवं कलाकार
छालीवुड जि़ंदा है. हमारा असली तोहफा वही है जो जनता से प्यार मिलता है.उनकी तालियां हमारा उत्साह बढ़ाता है. सही मायने में गांवों में ही बसता है छत्तीसगढ़ी फिल्मों का संसार।
- मोना सेन
परिपक्वता तो पर्याप्त है। संसाधनों की कमी है, लेकिन इससे न तो निर्माण पर असर पड़ता है और न ही कहीं भी प्रस्तुतिकरण पर। अगर पूर्वाग्रह छोड़ दें तो यकीनी तौर पर फर्क करना मुश्किल होगा कि कौन सी फिल्म बॉलीवुड की है और कौन सी छत्तीसगढ़ी।
- अशरफ, फिल्म कलाकार
फि ल्में पैसा वसूल स्टाइल पर अभी नहीं आई हैं। हम लोग ऐसी फिल्में बनाना चाहते हैं जो दर्शक के मन में स्थान बनाएं। सिर्फ पैसा लगाकर पैसा निकाल लेना तो आम बात है। छत्तीसगढ़ी सिनेमा आने वाले दिनों में पर्याप्त रूप से समृद्ध होगा।
- अशोक ठाकुर, फिल्म निर्माता, प्रेम के बंधना
कैमरा फिल्म की जान होता है। अभिनय, निर्देशन, आलेख, संपादन, संगीत, गीत, वादन तमाम फिल्मी शाखाएं अपनी तरह से महत्वपूर्ण हैं, लेकिन कैमरे का काम चुनौतीपूर्ण है। चूंकि रिटेक्स, लोकेशंस और सिचुएशन के हिसाब से शूटिंग में घंटों खड़े रहना। जब तक संतुष्ट नहीं होना तब तक कि शॉट डिमांड के अनुरूप नहीं आया कठिन है। फिल्म किसी भी बजट की हो, मेहनत बराबर लगती है।
- राजकुमार, कैमरामैन
क्षेत्रीय फिल्मों में काम करना अपने आपमें बड़ा मेहनती है। आपको बहुत क्रिएटिव होना चाहिए। दर्शक के अनुरूप अभिनय देना, संगीत, नृत्य की प्रधानता इन फिल्मों की बैकबॉन होती है। हमें खुशी होती है कि छत्तीसगढ़ में हम औसतन 30 से 35 फिल्में सालाना बना रहे हैं।
-लवली अहमद, अभिनेत्री
हम सब एंजॉय करते हैं। इतना वक्त हो गया कि अभिनय में अब रम गए हैं। अच्छा लगता है जब दूरदराज गांवों तक में हमारे अभिनय के कद्रदान मिलते हैं। संकट तो है, पर वैसा नहीं जैसा राज्य बनने से पहले था। अब देखिए इन 16 सालों में प्रदेश में जहां सालभर में एक फिल्म भी नहीं बन पा रही थी, वहीं अब औसतन 30 से 35 फिल्में बन रही हैं। अगर व्यावसायिक संभावनाएं कम होती तो यह कैसे संभव होता।
- चंद्रकला, कलाकार
छत्तीसगढ़ी का प्रभाव हमारे 27 जिलों की 3 करोड़ जनता में तो है ही, साथ ही मध्यप्रदेश के छत्तीसगढ़ से जुड़े जिलों में भी खासा है। एक तरह से हम मोटामोटी देखें तो 4 करोड़ दर्शक वर्ग के साथ एक मैच्योर सिनेमा की ताकत रखते हैं। आने वाला दौर है, जिसमें छत्तीसगढ़ी फिल्मों में जोखिम वाले प्रयोग भी होने लगेंगे। चूंकि बजटिंग एक बड़ा मसला है, ऐसे में जोखिम वाले प्रयोग करना मुमकिन नहीं। इसके अलावा इन फिल्मों को अंडरएस्टिमेट करने की एक वर्ग विशेष की आदत भी कई बार घातक है, लेकिन उन्हें भी जवाब मिल रहा है।
-शिवनरेश केशरवानी, फिल्म निर्देशक
हम लोग तो थिएटर के लोग हैं। छत्तीसगढ़ी फिल्में हमे प्रतिभा निखारने का तो मौका देती ही हैं साथ ही एक प्लेटफॉर्म भी हैं जहां हम लगातार कुछ न कुछ नया करने के लिए तत्पर रहते हैं। थिएटर स्तर की गंभीरता फिलहाल तो बॉलीवुड में संभव नहीं है तब क्षेत्रीय सिनेमा से उम्मीद बेमानी होगी। बहरहाल, हम सब मिलकर एंजॉय करते हुए इन फिल्मों में कुछ न कुछ नया करने की कोशिश करते हैं।
- अनिल शर्मा, कलाकार
रिमोट लोकेशंस में शूट के सिलसिले में दूर रहना पड़ता है। पर जैसे ही हम कैमरे के सामने होते हैं तो यकीन मानिए कि खुशी होती है। लंबी शूटिंग की सारी थकान कहीं खो जाती है।
- धर्मेंद्र चौबे, कलाकार
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