बुधवार, 5 सितंबर 2018

हर किरदार में जान फूंकता कलाकार.= डॉ अजय सहाय

       डॉ सहाय एक ऐसे समर्पित व प्रतिभा वान कलाकार है जिन्हें प्रोड्यूसर व डायरेक्टर स्क्रिप्ट सौंपकर भूल जाते है। रोल चाहे छोटा हो या बड़ा उसे वो यादगार बना देते हैं। डीडी किसान नैशनल चैनल के लिए उनके द्वारा बनाये गये धारावाहिक ने राष्ट्रीय पहचान दिलाई। 2015 में निर्मित यह धारावाहिक शौचालय की समस्या पर   आधारित था।विदित हो कि एक अंतराल के बाद आई हिंदी फीचर फिल्म टॉयलेट एक प्रेमकथा की विषयवस्तु भी यही थी। उनका यह सीरियल  राष्ट्रीय व विभिन्न राज्यों की टीवी चैनल्स द्वारा बारम्बार प्रसारित हुआ। अजय सहाय ने पटकथा लेखन व निर्देशन के क्षेत्र में भी अपनी तूती बजा दी है। जनवरी 2018 में विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा रायपुर में आयोजित शार्ट फि़ल्म फेस्टिवल में उनकी फिल्म "कैसे बताऊ"  को सर्वश्रेष्ठ फि़ल्म का खिताब मिला। हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के कर कमलों द्वारा उनके एक लाख रुपए का पुरस्कार दिया गया। साथ ही बेटी बचाओ विषय पर उनके द्वारा बनाई गई दूसरी शार्ट फि़ल्म नन्ही परी में श्रेष्ठ अभिनय के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। इसी फि़ल्म की बाल कलाकार बेबी यास्मीन को सर्वश्रेष्ठ बाल कलाकार का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। विदित हो कि इस फेस्टिवल में 55 देशों से लगभग 500 शॉर्ट फिल्मों ने अपनी फि़ल्मे प्रस्तुत की थी।सिर्फ 30 फिल्मों को पब्लिक स्क्रीनिंग के लिए रखा गया था जिसमे अजय सहाय की तीसरी फि़ल्म ज़ख्म को भी चयनित किया गया था। यू तो डॉ अजय सहाय हर क्षेत्र में सैकड़ों क्षेत्रीय, राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार हासिल कर चुके हैं लेकिन उन्होंने एक ही वर्ष में दादा साहेब फाल्के एकेडेमी अवार्ड व दादा साहेब फाल्के फाउंडेशन अवार्ड जैसे दो पुरस्कार प्राप्त कर के एक कीर्तिमान स्थापित किया है। उनकी लगभग एक दर्जन फि़ल्मे प्रदर्शन हेतु तैयार है।
ऐसे हैं डॉ सहाय
       नायक ,खलनायक ,लेखक ,निर्देशक साहित्यकार, कवि, रंगकर्मी, पटकथा जैसे अनेक कला किसी एक व्यक्ति में हो ऐसे बिरले ही होते है और यह सब कला है डॉ अजय मोहन सहाय में। छत्तीसगढ़ी फिल्मो का वे एक आधार स्तम्भ है। उन्होंने एक नहीं कई भाषाओं की फिल्मो में अभिनय कर सबके सामने एक चुनौती पेश की है। पांच भाषाओं में अभिनय करना भी एक रिकार्ड है। जितने अच्छे वे मधुमेह व् हृदयरोग विशेषज्ञ है उतने ही बेहतर कलाकार है। डॉ सहाय को कला विरासत में मिली है। माँ से कला मिली है तो पिता से शिक्षा। छालीवुड में डॉ सहाय एक ऐसे नायक खलनायक लेखक ,निर्देशक है जिन्होंने फिल्म उद्योग पर हर भूमिका में एकछत्र राज कर रहे हैं और अपने अभिनय का लोहा मनवाया है। उनके स्वाभाविक अभिनय और प्रतिभा की पराकाष्ठा ही थी कि लोगों के बीच वे काफी लोकप्रिय हैं। 

फोटोग्राफी के शौक ने डीओपी बनाया - संतोष सोनू

छालीवुड के जाने माने डीओपी संतोष सोनू का कहना है कि फोटोग्राफी के शौक ने मुझे डीओपी बनाया। पुरे छत्तीसगढ़ में मै अकेला कैमरामेन हूँ जिन्होंने डीओपी की पढ़ाई की है. जो लाइट को कैप्चर कर सके वही असली फोटोग्राफर होता है और इसे वही कर सकता है जिसे फोटोग्राफी का सम्पूर्ण ज्ञान हो।  संतोष सोनू वह पगोटोग्राफर है जिन्होंने मुम्बई से लेकर छत्तीसगढ़, झारखंड में बड़ी बड़ी कंपनियों में डीओपी का काम सम्हाल चुके हैं.निम्बस,  सीरीज, बालाजी टेली फिल्म्स  का लोहा मनवा चुके हैं. दस साल पहले वे रायपुर आये और यहां रम गए. उन्होंने 52 फिल्मे शूट की है जिनमे दो फिल्मे राजा भैया एक आवारा और प्रेम के बांधना अभी आने वाली है. दोनों ही फिल्मे अनुज शर्मा अभिनीत है. संतोष सोनू को बचपन से ही फोटोग्राफी का शौक था. इसी शौक के चलते उन्होंने डीओपी की पढ़ाई की. उनका कहना है कि कैमरा तो कई भी चला सकता है 360 एंगल देख सकता है लेकिन जो 361 वां एंगल देख सके वही असली कैमरामेन है.लिखने को तो यहां सभी डीओपी लिखतें हैं लेकिन मेरा दावा है यहां एक भी कैमरामेन ऐसा नहीं है जो डीओपी का कोर्स किया हो.उनका मानना है कि छालीवुड की स म्भावनाये बेहतर है। आने वाले समय में यहां की फिल्मे बॉलीवुड की तरह ही चलेंगी।यहां फिलहाल दर्शकों की कमी है। लोगो में अपनी भाषा के प्रति वो रूचि नहीं है जो होनी चाहिए और जो दर्शक है उनकी रुझान हिन्दी फिल्मो की ऑर है। क्योकि यहां की फिल्मो में बहुत सारी कमियां दिखती है ज्ञान की कमी है। दूसरी ओर लोगो को छत्तीसगढ़ी फिल्मो के बारे में बताया जाना चाहिए। संतोष का कहना है कि सरकार छालीवुड की मदद करे। टाकीज बनवाए, नियम बनाये। छत्तीसगढ़ी फिल्मो को सब्सिडी दें ताकि कलाकारों को भी अच्छी मेहनताना मिल सके। अपने ख्वाहिश के बारे में उनका कहना है कि छालीवुड में कुछ करके दिखाना चाहता हूँ। अब लगातार फिल्मो में ही काम करते रहने की तमन्ना है। मै चाहता हूँ कि लोग मुझे बेस्ट कैमरामेन के रूप में जानें।

स्टार कलाकारों से सजी है फिल्म " आई लव यू "

सुनील मानिकपुरी के रूप में छालीवुड को मिला नया खलनायक
         फिल्म कम बजट की हो और उसमे सारे स्टार कलाकार हो ऐसा कम ही होता है , लेकिन यह बिलकुल सच है. छालीवुड के लोकप्रिय कलाकार मोहन सुंदरानी की फिल्म फिल्म " आई लव यू " में कुछ ऐसा ही है. निर्माता लखी सुंदरानी है जिन्होंने कई हिट फि़ल्में छालीवुड को दी है.निर्देशक उत्तम तिवारी ने लोरिक चन्दा, मितान 420, मया के चि_ी, सरपंच, रिकार्ड ब्रेक राजा छत्तीसगढिय़ा जैसे फिल्मों का निर्देशन किया है.फिल्म " आई लव यू " के छायाकार है तोरण राजपूत जिनकी गिनती श्रेष्ठ छायाकारों में होती है.छालीवुड के सर्वश्रेष्ठ कोरियोग्राफर निशांत उपाध्याय ने इस फिल्म में भी नृत्य निर्देशन की जिम्मेदारी निभाई है.अब कलाकारों की बात करें तो बीए फर्स्ट ईयर की सुपर हिट जोड़ी मन कुरैशी और मुस्कान साहू एक बार फिर साथ नजर आएंगे। सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का अवार्ड जीत चुकी अनिकृति चौहान भी इस फिल्म में नायिका की भूमिका में है. इनके अलावा छत्तीसगढ़ के स्टार कलाकार प्रदीप शर्मा, आशीष शेंद्रे ,उपासना वैष्णव, उर्वशी साहू,पुष्पेंद्र सिंह, संगीता निषाद, निशा चौबे, मनीषा वर्मा जैसे कलाकारों से फिल्म सजी हुई है. ये सारे कलाकार श्रेष्ठ हैं. छत्तीसगढ़ के अच्छे गायकों में शुमार सुनील मानिकपुरी जिनके गाने हमर पारा तुंहर पारा ने देश भर में इन्हे नई पहचान दी है. एक करोड़ लोगो ने ये गाने यूं ट्यूब पर लाइक किये हैं.चुरकी मुरकी के नाम से प्रसिद्द उपासना वैष्णव और उर्वशी साहू की कॉमेडी दर्शकों का भरपूर मनोरंजन करेगी और उसका साथ देंगे मशहूर कॉमेडियन हेमलाल। श्री मोहन सुंदरानी ने इस फिल्म में अपनी पोती सानवी सुंदरानी को मौका दिया है.जो दर्शकों को पसंद आएगा। फिल्म " आई लव यू " की खासियत यह है कि बहुत कम बजट में बहुत अच्छी स्टारकास्ट फिल्म बनी है.फिल्म की पूरी शूटिंग कांकेर की हसीनवादियों में हुई है. फिल्म ग्रामीण परिवेश से ओतप्रोत है.जंगली जानवरों के साये में फिल्म की शूटिंग की गयी है.अब इस फिल्म का दर्शक बेसब्री से इन्तजार कर रहे हैं. खबर के मुताबिक़ यह फिल्म जुलाई के अंत में या फिर अगस्त के प्रथम सप्ताह में रिलीज होगी।
छत्तीसगढ के भीष्म पितामह
         छत्तीसगढ़ी फिल्मों के भीष्म पितामह एवं गुलशन कुमार के नाम से मशहूर मोहनचंद सुंदरानी आज किसी परिचय के मोहताज नहीं है। छत्तीसगढ़ के कलाकारों को खोज-खोजकर तराशना और आगे बढ़ाना उनके जीवन का मकसद है। वे कहते हैं कि छोटे-छोटे कलाकारों को आगे बढ़ाने में उन्हें एक सुखद अनुभूति का एहसास होता है। आज भी वे गांव-गांव, गली-गली में कलाकारों की तलाश में भटकते रहते हैं। उन्हें मंच देते है उनका उत्साह बढ़ाते है। इसी कड़ी में मोहन सुंदरानी ने 2006, 10 अगस्त से 2008 दिसम्बर तक लगभग 6000 गांवों से अधिक गांवों में लोक कलाकार रथयात्रा का आयोजन कर भ्रमण किया। सुंदरानी हमेशा गरीब व जरुरत मंद लोक कलाकारों की समय-समय पर आर्थिक मदद करने में भी कभी संकोच नहीं करते।

कॉमेडी किंग 'हेमलाल कौशल ' की झलक है सबसे अलग

दर्शकों को हंसाते रहेंगे नाट्यकला के बेस्ट एक्टर 
छालीवुड के कॉमेडी किंग हेमलाल कौशल  परिचय के मोहताज नहीं है फिर भी उनकी तमन्ना कॉमेडी में और नाम कमाने की है. हेमलाल फिल्मो और रंगमंच के जरिये दर्शकों को हंसाने में कामयाब रहे हैं. उनकी दृढ़ इच्छा इसी तरह लोगों को हंसाते रहने की है.उन्हें सतीश जैन की फिल्म टूरा रिक्शावाला में पहचान मिली उसके बाद
हेमलाल कौशल ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और निरंतर आगे बढ़ते गए.वे जितने अच्छे कॉमेडियन है उतने ही अच्छे मिलनसार इंसान भी है.आई लव यू फिल्म देखते समय उनसे मुलाक़ात हुई तो उन्होंने बड़े गर्मजोशी से पूछा भैया कैसे लगा मेरा काम. उनसे मिलकर बहुत खुशी हुई क्योकि उन्हें मैं कॉमेडी करते हुए देखा था.हेमलाल को छालीवुड में विशेष प्रकार से हास्य अभिनय में महारत हासिल है.उनकी इसी खासियत ने उन्हें स्टेज शो करने का मौका दिया। हेमलाल ने छोटी बड़ी फिल्म मिलाकर करीब सौ से अधिक फिल्मो में अभिनय किया है.पर उन्हें टुरा रिक्शा वाला फि़ल्म से पहचान मिली। उन्होंने अपनी कला यात्रा की शुरुवात स्कूल जीवन से ही कर लिया था. शिवकुमार दीपक उनके गुरु है और कमलनरायन सिन्हा  प्रेरणा स्रोत रहे हैं.सोनहा बिहान नामक छत्तीसगढ़ी संस्था से से उन्होंने इस  क्षेत्र में कदम रखा जिसके संचालक दाउ महासिंघ चन्द्राकर जी थे. हेमलाल सरकार से बेहद निराश है उन्हें अब छालीवुड को मदद की जऱा भी सरकार से आस नहीं है.वे कहते हैं कि जहाँ उम्मीद न हो वहाँ क्या उम्मीद कर सकते हैं. उन्होंने एक मुलाक़ात में बताया कि मैं अभी हिन्दी रंगमंच भी काम कर रहा हूँ। मुझे शिमला में मुंशी प्रेमचंद की कहानी शवा सेर गेहू नामक नाटक में बेस्ट एक्टर का अवार्ड भी मिला है और मैं लगातार लोकमंच हिन्दिरंग मंच,  छत्तीसगढ़ी फि़ल्म और भोजपुरी फि़ल्म कर रहा हूँ.मैं अभी श्रीमती कविता वासनिक अनुराग धारा के स्टेज में कार्यक्रम दे रहा हूँ. कॉमेडी में कुछ बड़ा करना चाहता हूँ.

राजू पांडे को हर भूमिका पसंद है

छालीवुड को ही अपनी जिंदगी मानते हैं 
छत्तीसगढ़ के कलाकार राजू पांडे अब छालीवुड को ही अपनी जिंदगी मानते हैं। आठ फिल्मो में अपनी किस्मत आजमा चुके राजू को माटी मोर मितान फिल्म में ब्रेक मिला उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुडकऱ नहीं देखा और आगे बढ़ते गए। राजू पांडे को अपनी नई फिल्म रंगोबती से बहुत उम्मीद है। वे कहते हैं कि प्रचार प्रसार और विज्ञापन में कमी फिल्म नहीं चलने का सबसे बड़ा कारण है। थियेटर भी एक कारण हो सकता है। गाँव गाँव तक हम अपनी फिल्म नहीं पंहुचा पा रहे हैं। बेहतर प्रचार पसार हो और प्रदेश के सभी टाकीजों में फिल्म लग जाए तो लागत एक हप्ते में निकल आएगी। सरकार मदद नहीं करती और डिस्ट्रीब्यूशन भी सही नहीं है। जब तक टेक्नीकल क्षेत्र में एक्सपर्ट लोग नहीं होंगे तब तक ऐसी ही कमजोर फिल्मे बनती रहेंगी। यहां जिसे जो नहीं आता वही करते हैं । गायक निर्देशक बन जाता है। कोई भी फाइट मास्टर बन जाता है। आप अंदाज लगा ले कैसी फिल्मे बनेंगी। छालीवुड की संभावनाएं अच्छी है पर फिल्मे अच्छी नहीं बन रही है। राजू को एक्टिंग का शौक बचपन से ही रहा है। स्कूल में नाटकों में भाग लिया करते थे फिर नाटकों में किया। जब जब टीवी देखता था तब तब उसे लगता था कि मुझे भी कुछ बनना चाहिए । आने वाले समय में यहां की फिल्मे बॉलीवुड की तरह ही चलेंगी।यहां फिलहाल दर्शकों की कमी है। लोगो में अपनी भाषा के प्रति वो रूचि नहीं है जो होनी चाहिए । थियेटरों  की कमी को सरकार पूरा करे।छालीवुड की फिल्मे दर्शकों को क्यों नहीं खीच पा रही है? के जवाब में राजू का कहना है कि यहां की फिल्मो में बहुत सारी कमियां होती है। फिल्मो में वो गुणवत्ता नहीं होती जो यहां के लोगो को चाहिए। प्रोड्यूसरों को इस और ध्यान देने की जरुरत है।राजू का कोइ रोल मॉडल नहीं है। नाटकों में भाग लेने के बाद लोगो ने उनका अभिनय देखा और फिल्मो में मौका दिया।  हैं कि शुरू से ही मै एक्टिंग को साइड कॅरियर बनाने की सोचकर चला हूँ। अब इसी लाईन पर काम करता रहूंगा। उन्हें हर तरह की भूमिका पसंद है लेकिन निगेटिव रोल ज्यादा पसंद है।उनका कहना कि सरकार छालीवुड की मदद करे। टाकीज बनवाए, नियम बनाये। छत्तीसगढ़ी फिल्मो को सब्सिडी दें ताकि कलाकारों को भी अच्छी मेहनताना मिल सके।

डेढ़ होशियार जल्द ही सिनिमेघरों में

शिक्षा व्यवस्था पर आधारित कॉमेडी फि़ल्म
राजू दिलवाला की सफलता के बाद प्रकाश अवस्थी कृत फि़ल्म डेढ़ होशियार जल्द ही नज़दीकी सिनिमेघरों में रिलीज होगी। फि़ल्म की शूटिंग कवर्धा, रायपुर जैसी जगहों पर किया गया है। शिक्षा व्यवस्था पर आधारित ये फि़ल्म कॉमेडी, रोमांस, ड्रामा और सामाजिक, शैक्षिक संदेश लिए हुए है। फि़ल्म के कुछ गानों की शूटिंग जारी है। फि़ल्म में छालीवुड के कई कलाकार नजऱ आएंगे। प्रकाश अवस्थी के साथ नैनी तिवारी, पूरन, उपासना वैष्णव, प्रदीप शर्मा, देव यादव, राजेश जैसे कई कलाकार नजऱ आएंगे। शिक्षा व्यवस्था पर आधारित इस फि़ल्म में हर प्रकार का टेस्ट पब्लिक को मिलने वाला है। पहले भी प्रकाश अवस्थी ने कई सफ़ल फि़ल्मे छालीवुड को दी हैं। आगे भी निरंतर अच्छी फिल्में बनाने की कोशिश प्रकाश अवस्थी लगातार कर रहें हैं। डेढ़ होशियार के बाद और एक नई फिल्म की प्लांनिंग प्रकाश अवस्थी नें कर ली है। डेढ़ होशियार से फि़ल्म के सभी कलाकारों को काफ़ी उम्मीद है फि़ल्म जरूर लोगों को जरूर पसंद आएगी।आईये हम नायक और नायिका के बारे में थोड़ा बता दें. नायक प्रकाश अवस्थी श्रेय जी की फिल्म चिंगारी के जरिये फिल्मो में आये थे। उन्होंने उनका काम कई फिल्मो में देखा था उन्होंने ऑफर दिया और प्रकाश काम शुरू कर दिया । उन्होंने चिंगारी की शूटिंग ख़त्म ही किया था तभी केडी ने उन्हें टिपटॉप लैला अंगूठा छाप छैला के लिए ऑफर दिया। इस तरह भोजपुरी फिल्मो में एंट्री हुई। मया, टूरा रिक्शा वाला, टूरा अनाड़ी तभो खिलाड़ी,दू लफाडू जैसी सुपर हिट फिल्मों में हीरो से सुपर स्टार बने प्रकाश अवस्थी इन दिनों पहली छत्तीसगढ़ी फिल्म डेढ़ होशियार का निर्माण कर रिलीज की तैयारी में जुटे है। वे इस फिल्म के निर्देशक भी हैं। छत्तीसगढ़ी के अलावा बंगला फिल्म,भोजपुरी और हिन्दी फिल्म अग्निशिक्षा में कार्य किया हैं। नैनी तिवारी एक उभरती सितारा है किसी एक इंसान में बहुत सारे गुण हो ऐसे बिरले लोग ही मिलते हैं। जी हाँ यही गुण है नंदिनी तिवारी नैनी में। वे एक शिक्षिका होने के साथ साथ कवयित्री, लेखिका, एक्ट्रेस, एंकर और डांस कोरियोग्राफर भी है। नैनी की तमन्ना फिल्मो में धूम मचाने की है।

बिलास राउत की कला दिखती है "आई लव यूं " में

फिल्म की सफलता में जितनी भूमिका कलाकारों की होती है उतनी ही भूमिका उन लोगों की होती है जो परदे के
पीछे काम करते हैं.उन्ही में से एक हैं बिलास राउत। जिनमे कई कला कूट कूट कर भरा हुआ है. वे एक अच्छे मेकअप मेन है तो एक कॉस्ट्यूम डिजाइनर भी है.इतना ही नहीं बिलास राउत उतने ही अच्छे कोरियोग्राफर भी है.अभी हालिया रिलीज फिल्म आई लव यूं में बिलास राउत की कला दिखती है. फिल्म की सफलता में उनका भी उतना ही योगदान है.जितना निर्माता निर्देशक से लेकर कलाकारों का है. बिलास राउत इस फिल्म में कॉस्ट्यूम डिजाइनर का काम किया है. एक एक कलाकार का कॉस्ट्यूम खुद से तैयार करवाया है. फिल्म में सारे कलाकारों का ड्रेस शानदार है. अभिनेत्री अनिकृति चौहान के कॉस्ट्यूम ने दर्शकों को आकर्षित किया है.उस ड्रेस में अनिकृति की व्यक्तित्व में निखार आया है. बिलास राउत बतातें है कि उन्होंने निर्माता से साफ़ कह दिया था कि कॉस्ट्यूम के मामले में कोइ समझौता नहीं करूंगा। निर्माता ने उनकी बात मानी और आज फिल्म में कॉस्ट्यूम इस साल की अब तक की सभी फिल्मो से बेहतर है.फिल्म में मेकअपमैन भी बिलास राउत ही थे. शानदार मेकअप ने फिल्म कलाकारों के चेहरों को ग्लैमरस बनाया है। अन्नी फिल्म में अपने खास मेकअप के चलते काफी सुन्दर और आकर्षक लग रही हैं। यूं तो हम सबको मालूम है फिल्मी दुनिया में एक्टर्स की शक्ल सूरत को खास और बेहतरीन बनाने के लिए मेकअप का जमकर यूज़ होता है। लेकिन इस फिल्म में बिलास राउत ने शानदार , सहज और सरल मेकअप किया है.इसके अलावा बिलास राउत इस फिल्म में दो गानों में कोरियोग्राफर का दायित्व भी निभाया है.कुल मिलाकर बिलास राउत बहुप्रतिभा के धनि कलाकार है.

फिर एक फिल्म की तैयारी में जुटे अभिषेक मूवी प्रोडक्शन हाउस


भोजपुरी और छत्तीसगढ़ी फिल्म तहलका मोर नाव के बना चुके अभिषेक मूवी प्रोडक्शन हाउस फिर एक फिल्म बनाने की तैयारी में जुटे हैं. इस बार भी दोनों ही भाषा में फिल्म बनांयेंगे। यह फिल्म अक्टूबर माह में
बनेगी। साथ ही इस प्रोडक्शन हाउस कुछ एल्बम भी बनाने की तैयारी में है. अभिषेक मूवी प्रोडक्शन हाउस के संचालक श्री अमरनाथ पाठक काफी मेहनती और जूनून के पक्के हैं.वे एक बेहतरीन कलाकार भी हैं.उनके स्टूडियो में कई बड़े फिल्मो के काम हुए हैं.जहां सभी तरह की सुविधाएं हैं. गाने की रिकार्डिंग, शूटिंग, एडिटिंग, डबिंग सब कुछ बड़ी आसानी से किये जा सकते हैं.अभी इस स्टूडियो में और बड़ी बड़ी फिल्मो का काम होने वाले हैं जिसमे भोजपुरी फिल्म एक शमा दो परवाने भी शामिल हैं। वर्तमान में सारी लव यू का काम भी उनके ही स्टूडियो में चल रहा है.इसके पहले श्री पाठक ने भोजपुरी और छत्तीसगढ़ी फिल्म तहलका मोर नाव के बनाई थी जिसमे मुम्बई की प्रीति सिंह मुख्य भूमिका में थी. खुद अमरनाथ पाठक ने पुलिस इन्स्पेक्टर की भूमिका निभाई थी.निर्माता अभिषेक पाठक थे। जाने-माने निर्देशक मिथिलेश अविनाश ने इस फिल्म का निर्देशन किया था। इस फिल्म में 8 गानेथे और सभी गाने बेहद कर्णप्रिय है जिसमे संगीत सूरज महानंद ने दिए थे।

निर्देशन में महारत हासिल है धर्मेंद्र चौबे को

जाने माने खलनायक अभिनेता , निर्देशक धर्मेन्द्र चौबे अब फिल्मो की मांग है। उन्होंने करीब 25 फिल्मे की है और छालीवुड मे अपनी पहचान बना चुके हैं। रिकार्ड कमाई करने वाली फिल्म राजा छत्तीसगढिय़ा में धर्मेन्द्र चौबे मुख्य खलनायक की भूमिका में है। इतना ही नहीं धर्मेन्द्र चौबे फिल्मो में बुरे इंसान जरूर है पर असल
जिंदगी में वे जिंदादिल इंसान और मिलनसार हैं।उन्होंने बही तोर सुरता म के बाद बंधन पीरित के का बेहतर निर्देशन किया है. यह फिल्म दो हीरो की कहानी है.जिसमे धर्मेंद्र ने कड़ी मेहनत की है.या हम ये कहे की इस फिल्म से उनके तकदीर जुडी है तो कोइ बड़ी बात नहीं होगी। फिल्म "बंधन पीरित के" को बेहतर से बेहतर बनाने की कोशिश की है. इसमें कोई शक नहीं कि धर्मेंद्र चौबे छालीवुड के सबसे सफल निर्देशकों में शामिल हैं। जिनकी हर फिल्म की सफलता की गारंटी होती है। साथ ही इनके कहानी कहने का अंदाज इतना जुदा है.कि फिल्म दर्शकों के दिल में घर कर जाती है। धर्मेंद्र बताते हैं कि  "बंधन पीरित के" में सभी कलाकारों ने काफी मेहनत की है.मुरली आचारी, पूनम मिश्रा, रियाज खान माहिरा ये ऐसे कलाकार हैं जिन्होंने फिल्म को अपना पूरा योगदान दिया है.सभी कलाकारों का आभारी हूँ. धर्मेंद्र खुद कई फिल्मो में अभिनय किया है.वे जितने अच्छे डायरेक्टर हैं उतने ही अच्छे कलाकार भी हैं.

खलनायिकी करना चाहती है सरला सेन

  छत्तीसगढ़ी फिल्मो की दयालु भौजी और माँ सरला सेन की तमन्ना खलनायकी करने की है, वो भी एकदम खूंखार। सात साल की छोटी सी पारी में 30 - 35 फिल्मे करने वाली सरला सेन एक बेहतरीन अदाकारा है. उन्हें अपने काम के प्रति जूनून है। उनका कहना है कि मन में लगन हो तो कोइ भी काम असंभव नहीं होता। कोशिश करने वाले कभी असफल नहीं होते।  उनका सपना निगेटिव रोल करने की है. सरला की इस माह तीन फिल्मे तोर मोर यारी , बंधन प्रीत के और हमर फेमिली नंबर वन प्रदर्शित होने जा रही है. यह उनकी खुशकिस्मती है कि लगातार परदे पर दिखाई देंगी। तीनों ही फिल्मो में सरला माँ की भूमिका में है.सरला की नजर में बंधन प्रीत के एक ऐसी फिल्म है जो दर्शकों का खूब मनोरंजन करेगी। इस फिल्म में वे नायक रियाज खान की माँ की भूमिका में है.यह एक पारिवारिक फिल्म है जिसमे सब कुछ है रोमांस, एक्शन, मारधाड़, इमोशनल आदि. तोर मोर यारी दो परिवारों की कहानी है. जिसंमें वे पुष्पेंद्र सिंह की पत्नी रहती है.तीसरी फिल्म हमर फेमिली नंबर वन है यह भी एक पारिवारिक और कॉमेडी से भरपूर फिल्म है.सरला कहती है कि ये तीनों ही फिल्म मेरे लिए बहुत ही अहम् है. जिसमे दर्शक मुझे पसंद करेंगे ऐसी उम्मीद हैं.मैंने अपने स्तर पर बहुत ही मेहनत की है.

   मुझे जो भूमिका मिलती है उसके साथ न्याय करने की भरपूर कोशिश करती हूँ. शूटिंग से पहले अच्छी तरह से स्क्रिप्ट पढ़ती हूँ फिर पूरी तैयारी के साथ कैमरे के सामने जाती हूँ. छालीवुड की सम्भावनाओं के बारे में उनका कहना है कि जब तक टेक्नीकल क्षेत्र में एक्सपर्ट लोग नहीं होंगे तब तक ऐसी ही कमजोर फिल्मे बनती रहेंगी। यहां जिसे जो नहीं आता वही करते हैं । गायक निर्देशक बन जाता है। कोई भी फाइट मास्टर बन जाता है। कोई प्लानिंग नहीं होती जो पैसा नहीं लेते वही कलाकार यहाँ चलते है। तो आप अंदाज लगा ले कैसी फिल्मे बनेंगी। यहां फिल्मे कमजोर बन रही है । फिल्मे नहीं चल पाती इसकी वजह भी हैं और वो सब जानते हैं कि पिछड़े हुए राज्य में टॉकीजों का विकास नहीं होना। छत्तीसगढ़ में मिनी सिनेमाघर दो सौ दर्शकों की क्षमता वाली टॉकिजों की बड़ी आवश्यकता है जहां छत्तीगसढ़ी फिल्मों के दर्शक आसानी से पहुंच सके। प्रचार प्रसार की कमी है। छत्तीसगढ़ी फिल्मे अच्छा व्यवसाय क्यों नहीं कर पाती ? इसके जवाब में सरला कहती है कि प्रचार प्रसार और विज्ञापन में कमी फिल्म नहीं चलने का सबसे बड़ा कारण है। थियेटर भी एक कारण हो सकता है। गाँव गाँव तक हम अपनी फिल्म नहीं पंहुचा पा रहे हैं। बेहतर प्रचार पसार हो और प्रदेश के सभी टाकीजों में फिल्म लग जाए तो लागत एक हप्ते में निकल आएगी। सरकार मदद नहीं करती और डिस्ट्रीब्यूशन भी सही नहीं है। वे कहती है कि मुझे आज तक पसंद का रोल नहीं मिला। खूंखार करेक्टर चाहिए ,पता नहीं कभी मिल पायेगा या नही।खलनायिका का रोल करना चाहती हूँ.

छत्तीसगढ़ की माटी भा गयी प्रियंका को

यहां के लोगों का प्यार चाहती है
- श्रीमती केशर सोनकर
भोपाल से छत्तीगढ़ी फिल्म करने रायपुर आई अभिनेत्री प्रियंका परमार को छत्तीसगढ़ की माटी इतनी भा गयी कि अब वह यही बसने की सोच रही है. तीन छत्तीसगढ़ी फिल्म में अपने अभिनय का जलवा दिखा चुकी प्रियंका को बस छत्तीसगढ़ की जनता का प्यार और सम्मान चाहिए। उन्हें बॉलीवुड में जाना कटी भी पसंद नहीं  है.उनकी तमन्ना छालीवुड की सुपर स्टार बनने की है।
 वे एक मंजे हुए कलाकार है.दो फिल्मे उन्होंने कारन खान के साथ की है और तीसरी फिल्म अभी प्रेम यादव के साथ संगी रे है. फिल्म च्च्संगी रे च्च् से प्रियंका परमार को काफी उम्मीद है. उनका कहना है कि छत्तीसगढ़ी फिल्म करने का आनंद ही कुछ अलग है.यहां बहुत प्यार और सहयोग मिलता है.इसलिए मैंने छत्तीसगढ़ को प्राथमिकता दी है. संगी रे फिल्म करके मुझे अच्छा लगा. यह एक पारिवारिक फिल्म है.इस फिल्म की सम्भावनाये बेहतर दिखती है उम्मीद है कि और बॉलीवुड की तरह ही चलेंगी। इसमें सब कुछ है। आप देखिये आपको पुराने दिन याद आ जाएंगे। कैमरे के सामने आने से पहले मै अपने किरदार को लेकर बहुत मेहनत करती हूँ.जिससे करेक्टर को समझने का मौका मिले और अपनी भूमिका आसान हो जाए। निर्देशक श्रीकांत सोनी और नायक प्रेम कुमार यादव का काफी सहयोग मिला। फिल्म की सफलता पर प्रेम के साथ मै संगी रे 2 में काम करना चाहूंगी। संगी रे जो फिल्म बनी है वह परिवार के साथ बैठकर देखने योग्य
फिल्म है.प्रियंका कहती है कि एक्टिंग मैंने खुद से सीखा है। मेरा कोई रोल मॉडल नहीं है। मेरे माता -पिता ही मेरे प्रेरणास्रोत है। मेरे लगन को देखकर उन्होंने मुझे फिल्म करने के लिए प्रोत्साहित किया। उनके ही कारण मैं फिल्म में अच्छे से रोल कर पा रही हूँ।  मैं हर तरह की भूमिका निभाना चाहूंगी जो फिल्म प्रधान हो। ताकि मुझे सभी प्रकार का अनुभव हो। छोटे बड़े सभी रोल मुझे पसंद है। प्रियंका परमार का कहना है कि रिल और रियल लाइफ में बहुत अंतर है। रील लाइफ काल्पनिक होता है और रियल लाइफ में सच्चाई होती है। एक प्रश्न के उत्तर में उनका कहना है कि अब मै एक्टिंग को कॅरियर बनाने की सोचकर चल रही हूँ। इसी लाईन पर काम करती रहूंगी, पीछे नहीं हटूंगी। उनकी ख्वाहिश बड़ी है और वे एक दिन जरूर कामयाब होगी।  वे कहती है कि छालीवुड में कुछ करके दिखाना चाहती हूँ। अपनी मेहनत से एक अच्छी एक्ट्रेस बनना चाहती हूँ।

सिंगर से एक्टर बने कृष्णा साहू

सुंदर मोर छत्तीसगढ़ में दिखेगा जलवा 
सिंगिंग से छत्तीसगढ़ी फिल्मो में एक्टर बने  कृष्णा साहू का जलवा फिल्म सुंदर मोर छत्तीसगढ़ में दिखेगा। कृष्णा ने इस फिल्म में कॉमेडियन बनकर लोगों को हसाने की कोशिश की है. अब कितना लोगों का मनोरंजन कर पाएगें  ये तो दर्शक ही बताएँगे। उन्हें इस फिल्म से बहुत ही उम्मीद हैं. वे कहते हैं कि सुंदर मोर छत्तीसगढ़ को दर्शकों के लायक बनाने के लिए हमने बहुत ही मेहनत की है. गाने का मुझे शौक था लेकिन अब एक्टिंग में किस्मत आजमाने मैंने यह फिल्म की है. अब इस क्षेत्र में ही आगे बढूंगा। अब वे लगातार फिल्मे ही करते रहना चाहते हैं। दैनिक राष्ट्रीय हिंदी मेल ने उनसे हर पहलुओं पर बात की।
 
0 आपको एक्टिंग का शौक कब से है ?
00 मुझे एक्टिंग का शौक बचपन से ही रहा है। जब मै छोटा था तब से कुछ अलग करने की सोच ली थी। मन में लगन हो तो सब संभव है।
0 छालीवुड की क्या सम्भावनाये दिखती है?
00 बेहतर है। आने वाले समय में यहां की फिल्मे बॉलीवुड की तरह ही चलेंगी।यहां फिलहाल दर्शकों की कमी है। लोगो में अपनी भाषा के प्रति वो रूचि नहीं है जो होनी चाहिए और जो दर्शक है उनकी रुझान हिन्दी फिल्मो की ऑर है।
0 तो छालीवुड की फिल्मे दर्शकों को क्यों नहीं खीच पा रही है?
00 क्योकि यहां की फिल्मो में अपनी संस्कृति और मौलिकता की कमी झलकती है। कलाकारों का चयन भी पात्रों के अनुसार नहीं होता।
0 फिर मौका कैसे मिला और आपके प्रेरणाश्रोत कौन है ?
00 एक्टिंग मैंने खुद से सीखा है। मेरा कोई रोल मॉडल नहीं है। गाने से कॅरियर से शुरुवात की है और मेरी पहली फिल्म सुंदर मोर छत्तीसगढ़ है जो बड़े परदे पर आने वाली है। भुवनेश साहू ने मुझे इस फिल्म के लिए ऑफर दिया और आज मै आपके सामने हूँ।
0 कभी आपने सोचा था की फिल्मो को ही अपना कॅरियर बनाएंगे ?
00 हाँ ! शुरू से ही मै एक्टिंग को कॅरियर बनाने की सोचकर चला था। पर गायन के क्षेत्र में चला गया था। इसी लाईन पर काम करता रहूंगा। लगातार काम करूंगा।
0  छालीवुड फिल्मो में आपको कैसी भूमिका पसंद है या आप कैसे रोल चाहेंगे।
00  मैं हर तरह की भूमिका निभाना चाहूंगा ताकि मुझे सभी प्रकार का अनुभव हो। छोटे बड़े सभी रोल मुझे पसंद है। मैं किसी भी भाषा की फिल्म हो जरूर करूंगा।
0 आपका कोई सपना है जो आप पूरा होते देखना चाहती हैं?
00 छालीवुड में कुछ करके दिखाना चाहता हूँ। अब लगातार फिल्मो में ही काम करते रहने की तमन्ना है।

रंगोबती में फिर नजर आएंगी अनुज- लेजली जोड़ी

छत्तीसगढ़ी फिल्म रंगरसिया की सुपरहिट जोड़ी अनुज शर्मा और लेजली त्रिपाठी की जोड़ी एक बार फिर फिल्म रोगोवती में नजर आएंगी। निर्माता अशोक तिवारी ने इस जोड़ी को लेकर अपनी फिल्म की तैयारी भी शुरू कर दी है.बेस्ट फिल्म रंगरसिया के डायरेक्टर पुष्पेंद्र सिंह ही इस फिल्म के भी डायरेक्टर होंगे। निर्माता अशोक तिवारी और निर्देशक पुष्पेंद्र सिंह की माने तो 90 फीसदी कलाकार इस फिल्म में नए होंगे। अभी तक निर्माता ने
अपनी पुरानी टीम के तीन लोगों निर्देशक पुष्पेंद्र सिंह, नायक अनुज शर्मा और नायिका लेजली त्रिपाठी को रिपीट करने का निर्णय लिया है.अन्य कलाकारों की कास्टिंग डायरेक्टर पुष्पेंद्र सिंह करेंगे। 
रंगरसिया फिल्म की सफलता से निर्माता दोनों ही उत्साहित हैं.इस फिल्म से बेहतर नतीजे मिले है जिससे छत्तीसगढ़ फिल्म इंडस्ट्री को आक्सीजन भी मिला। अनुज शर्मा एक ऐसे नायक हैं जिनके नाम से भी लोग फिल्म को देखने जाते हैं.पुष्पेंद्र सिंह का काम इस फिल्म में देखने को मिला था. अब निर्माता ने इसे फिर से भुनाने के लिए अपनी नई फिल्म रोगोवती ने इन्हे आजमाने का फैसला किया है.अनुज शर्मा की 10 फिल्मो ने एक मिलियन से भी अधिक व्यूज का कीर्तिमान स्थापित किया है.वहीं बॉलीवुड अभिनेत्री लेजली त्रिपाठी ने कभी असफलता नहीं देखी है या हम यह कह सकतें कि सफलता का ही नाम है लेजली त्रिपाठी है.उनकी भोजपुरी फिल्म निरउहा हिन्दुस्तानी 2 ने रिकार्ड बनाया था.एक अभिनेत्री के अलावा लेजली महानदी सुरक्ष्य योजना के लिए युवा राजदूत,  विश्वभर में बच्चों को शिक्षित करने के सशक्तीकरण के लिए एकसां गुरुकुल का चेहरा, सेवा फाउंडेशन की कर्ताधर्ता, अनंत साहित्य पत्रिका,  लिंग संवेदनशीलता टी-शर्ट्स, आशा किरण और संयुक्त राज्य अमेरिका में स्थित दुनिया के मुद्दों और क्रिया केंद्रों के लिए भारतीय युवा राजदूत हैं।एशियाई कॉलेज ऑफ जर्नलिज़म, चेन्नई से पत्रकारिता  डिग्री लेने वाली लेजली अभिनय में महारत है.

संघर्ष ने बनाया प्रेम यादव को अभिनेता



चार फिल्मों के निर्माता और हीरो हैं 
मन में दृढ़ इच्छा और लगन हो तो कोई भी काम असम्भव नहीं होता। जो मन में ठान ले उसे पूरा करके ही रहता है। यह कर दिखाया है प्रेम कुमार यादव ने। प्रेम गीतकार बनने मुंगेली से मुम्बई गए थे लेकिन वहां उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा.जीवनयापन के लिए उन्हें नौकरी भी करनी पडी. जब उन्हें कोइ रास्ता नहीं सुझा तो वे फिल्म निर्माता बन गए,साथ ही अभिनेता भी.प्रेम यादव चार फिल्मे बना चुके हैं और सभी फिल्मों में वे ही हीरो हैं.लेखन में प्रेम की अच्छी पकड़ है. उनकी करीब 400 कवितायें अखबारों में प्रकाशित हो चुकी है. उन्होंने अभी हांल ही में छत्तीसगढ़ी फिल्म संगी रे की शूटिंग पूरी की है. इसके पहले उन्होंने दो भोजपुरी फिल्म गाँव आ जा रे परदेशी ,बलमा हरजाई रे और एक हिंदी फिल्म ब्लैक बनाई थी.
प्रेम कुमार यादव की गीतकार से फिल्म निर्माता और अभिनेता बनने की कहानी भी रोचक है. उनका असली नाम भागीरथ यादव है लेकिन फिल्मों के लिए उन्होंने अपना नाम बदलकर प्रेम कुमार यादव कर लिया।फिल्मो में काम करने प्रेम छत्तीसगढ़ के मुंगेली से मुम्बई पहुंचे। पर उन्हें फिल्मो में काम नहीं मिला। मुम्बई में टिके रहने के लिए प्रेम ने एक कोरियर सर्विस में नौकरी कर ली.काफी संघर्ष के बाद उन्होंने खुद ही फिल्म बनाने की सोची और जुट गए फिल्म निर्माण में.सबसे पहले उन्होंने भोजपुरी फिल्म गाँव आ जा रे परदेशी बनाई जिसमे संगीतकार थे रविंद्र जैन और आवाजें दी थी साधना सरगम, श्रेया घोषाल और वाडेकर थे. फिर 2007 में एक और भोजपुरी फिल्म बनाई बलमा हरजाई रे. एक प्रश्न के उत्तर में प्रेम यादव कहते हैं कि छत्तीसगढ़ी फिल्मे नहीं चलती इसलिए भोजपुरी फिल्मे बनाई।अब छत्तीसगढ़ी फिल्म संगी रे बनाकर किश्मत आजमा रहा हूँ. संगी रे एक रोमांटिक और शिक्षाप्रद फिल्म हैं. यह कहानी और आगे बढ़ेगी। अक्टूबर में संगी रे 2 बनाने जा रहा हूँ जो इस फिल्म के आगे की कहानी होगी।

लोग मुझे बेस्ट एक्टर के रूप में ही पहचाने - महावीर

छत्तीसगढ़ी फिल्मो को बढ़ावा देना जरूरी 
छत्तीसगढ़ी फिल्मो में नया नाम है महावीर सिंह चौहान,जिन्होंने कुछ ही फिल्मो में अपने अभिनय से निर्माता निर्देशकों का दिल जीत लिया है। उनका कहना है कि लोग मुझे बेस्ट एकत्र के रूप में ही पहचाने। वे कहतें हैं कि छत्तीसगढ़ी फिल्मो का भविष्य काफी अच्छा है। छत्तीसगढ़ी फिल्मों में शानदार भूमिका निभाने वाले महावीर कहते हैं कि सरकार को भी छालीवुड की ओर ध्यान देना चाहिए जिससे कलाकारों का भला हो सके।उन्हें एक्टिंग का शौक बचपन से ही रहा है। स्कूल में नाटकों में भाग लिया करता था फिर फिल्मो में आये । उनका कहना है कि जब जब टीवी देखता था तब तब मुझे लगता था कि मुझे भी कुछ बनना चाहिए । छालीवुड की सम्भावनाओ पर महावीर कहतें हैं कि आने वाले समय में यहां की फिल्मे बॉलीवुड की तरह ही चलेंगी।यहां फिलहाल दर्शकों की कमी है। लोगो में अपनी भाषा के प्रति वो रूचि नहीं है जो होनी चाहिए और जो दर्शक है उनकी रुझान हिन्दी फिल्मो की ऑर है।
छालीवुड की फिल्मे दर्शकों को क्यों नहीं खीच पा रही है इसका कारण है कि यहां की फिल्मो में बहुत सारी कमियां दिखती है। दूसरी ओर लोगो को छत्तीसगढ़ी फिल्मो के बारे में बताया जाना चाहिए। महावीर का कोई रोल मॉडल नहीं है। उन्होंने कई फिल्मे कर ली है। ड्रामा करने के बाद लोगो ने उनका अभिनय देखा और फिल्मो में मौका दिया। कभी आपने सोचा था की फिल्मो को ही अपना कॅरियर बनाएंगे ? इस प्रश्न का जवाब था नहीं। शुरू से ही मै एक्टिंग को कॅरियर बनाने की नहीं सोचा था। अब फिल्मो में आ गया हूँ तो इसी लाईन पर काम करता रहूंगा। मैं हर तरह की भूमिका निभाना चाहूंगा , लेकिन निगेटिव रोल पसंद है। सरकार से उन्हें अपेक्षाएं हैं. वे कहते है कि सरकार छालीवुड की मदद करे। टाकीज बनवाए, नियम बनाये। छत्तीसगढ़ी फिल्मो को सब्सिडी दें ताकि कलाकारों को भी अच्छी मेहनताना मिल सके। महावीर का कहना है कि छालीवुड में कुछ करके दिखाना चाहता हूँ। अब लगातार फिल्मो में ही काम करते रहने की तमन्ना है। मै चाहता हूँ कि लोग मुझे बेस्ट एक्टर के रूप में लोग जानें।

निर्देशन में महारत हासिल है धर्मेंद्र चौबे को

जाने माने खलनायक अभिनेता , निर्देशक धर्मेन्द्र चौबे अब फिल्मो की मांग है। उन्होंने करीब 25 फिल्मे की है और छालीवुड मे अपनी पहचान बना चुके हैं। रिकार्ड कमाई करने वाली फिल्म राजा छत्तीसगढिय़ा में धर्मेन्द्र चौबे मुख्य खलनायक की भूमिका में है। इतना ही नहीं धर्मेन्द्र चौबे फिल्मो में बुरे इंसान जरूर है पर असल
जिंदगी में वे जिंदादिल इंसान और मिलनसार हैं।उन्होंने बही तोर सुरता म के बाद बंधन पीरित के का बेहतर निर्देशन किया है. यह फिल्म दो हीरो की कहानी है.जिसमे धर्मेंद्र ने कड़ी मेहनत की है.या हम ये कहे की इस फिल्म से उनके तकदीर जुडी है तो कोइ बड़ी बात नहीं होगी। फिल्म "बंधन पीरित के" को बेहतर से बेहतर बनाने की कोशिश की है. इसमें कोई शक नहीं कि धर्मेंद्र चौबे छालीवुड के सबसे सफल निर्देशकों में शामिल हैं। जिनकी हर फिल्म की सफलता की गारंटी होती है। साथ ही इनके कहानी कहने का अंदाज इतना जुदा है.कि फिल्म दर्शकों के दिल में घर कर जाती है। धर्मेंद्र बताते हैं कि  "बंधन पीरित के" में सभी कलाकारों ने काफी मेहनत की है.मुरली आचारी, पूनम मिश्रा, रियाज खान माहिरा ये ऐसे कलाकार हैं जिन्होंने फिल्म को अपना पूरा योगदान दिया है.सभी कलाकारों का आभारी हूँ. धर्मेंद्र खुद कई फिल्मो में अभिनय किया है.वे जितने अच्छे डायरेक्टर हैं उतने ही अच्छे कलाकार भी हैं.

छत्तीसगढ़ी फिल्मो में संस्कृति की कमी दिखती है

पात्र के अनुसार कलाकारों का चयन हो - अन्नू शर्मा 

छत्तीसगढ़ी फिल्मो के खलनायक के रूप में उभरे कवर्धा के अन्नू शर्मा का कहना है कि छत्तीसगढ़ी फिल्मो में मौलिकता और छत्तीसगढ़ी संस्कृति की कमी झलकती है। यही नहीं कलाकारों का चयन भी पात्रों के अनुसार होना चाहिए। अन्नू शर्मा ने फिल्म रंगरसिया से अपने कॅरियर की शुरुआत की है और आज छत्तीसगढ़ी फिल्मों का एक अंग बन गया है। अब वे लगातार फिल्मे ही करते रहना चाहते हैं।उनका कहना है कि मुझे एक्टिंग का शौक बचपन से ही रहा है। मन में लगन हो तो सब संभव है। छत्तीसगढ़ी फिल्मो का भविष्य बेहतर है। आने वाले समय में यहां की फिल्मे बॉलीवुड की तरह ही चलेंगी।यहां फिलहाल दर्शकों की कमी है। लोगो में अपनी भाषा के प्रति वो रूचि नहीं है जो होनी चाहिए और जो दर्शक है उनकी रुझान हिन्दी फिल्मो की ऑर है।एक्टिंग मैंने खुद से सीखा है। मेरा कोई रोल मॉडल नहीं है। मेरी पहली फिल्म रंगरसिया है। अन्नू शर्मा कहते हैं कि मैं हर तरह की भूमिका निभाना चाहूंगा ताकि मुझे सभी प्रकार का अनुभव हो। छोटे बड़े सभी रोल मुझे पसंद है। मैं किसी भी भाषा की फिल्म हो जरूर करूंगा।एक प्रश्ह्न के उत्तर में वे कहते हैं कि जब मैं कोई भूमिका निभाता हूँ तो पहले गंभीरता से मनन करता हूँ। उसमे पूरी तरह से डूब जाता हूँ। वे कहते हैं की छालीवुड में कुछ करके दिखाना चाहता हूँ। अब लगातार फिल्मो में ही काम करते रहने की तमन्ना है।

अच्छे दिन के आसार - सम्पादकीय

भारतीय सिनेमा की शताब्दी पर छत्तीसगढ़ी फिल्में कहां और किस दिशा मे है इस पर चिंतन किया जाना जरूरी हो गया है। इसमें कोई दो राय नहीं कि छत्तीसगढ़ी फिल्म इंडस्ट्रीज अब अच्छी स्थिति में पहुँच गयी है हालांकि अब भी उसे ढेर सारी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है। प्रदर्शन के लिए गिने चुने करीब 36 सेंटर ही है लेकिन निर्माण करने वालों का हौसला कम नहीं हो रहा है। छोटे से बाजार में बड़ी उम्मीदों के साथ जुड़े छत्तीसगढ़ी फिल्म के कलाकारों की हिम्मत की सराहना की जानी चाहिए की अपनी भाषा, अपनी संस्कृति की सौंधी सुगंध को सहेजने के लिए उनका साहस कम नहीं हुआ है। आलोचक भले ही मुंह बनाएं की छत्तीसगढ़ी फिल्मों में मुंबईयां मसालों की छौंक से जायका बिगड़ रहा है लेकिन इसके इतर छत्तीसगढ़ी भाषा का तड़का और अपने बीच के लोगों के अपनेपन ने रंजन को कम नहीं होने दिया है। ठीक ठीक आंकलन तो नहीं है लेकिन अंदाजा है कि छत्तीसगढ़ी फिल्में भी सौ की संख्या के करीब है। हिन्दी फिल्मों के शताब्दी वर्ष में छत्तीगढ़ी फिल्मों का सैकड़ा होने की उपलब्धि से हम सब छत्तीसगढिय़ा गर्व का अनुभव तो कर ही सकते है।
छत्तीसगढ़ी फिल्म निर्माण प्रारंभ सन् 1964 में ब्लैक एण्ड व्हाइट फिल्म 'कहि देबे संदेश से मनु नायक ने किया जिसका प्रदर्शन 14 अपै्रल 1965 को दुर्ग भाटापारा में हुआ। तब से लेकर फिल्मो का निर्माण निरंतर जारी है.उतार चढ़ाव के बीच 2016 में राजा छत्तीसगढिय़ा ने छालीवुड को आक्सीजन देने का काम किया था उसके बाद कई ऐसी फिल्मे आई जो इंडस्ट्री को फिर काफी पीछे ले गयी. इस साल 2018 में आई फिल्म आई लव यूं ने एक बार फिर छालीवुड को उबारा। इससे लगता है की अब फिल्म इंडस्ट्री के अच्छे दिन आने वाले हैं.इसमें कोइ दो राय नहीं की बजट भले ही कम हो और फिल्म अच्छी बने तो दर्शकों को टाकीज तक पहुँचने से कोइ नहीं रोक पायेगा। स्वतंत्र रूप से छत्तीसगढ़ी सिनेमा की शुरुआत भले ही 1965 में हुई हो लेकिन सन् 1953 में निर्मित हिन्दी नदिया के पार में संवाद छत्तीसगढ़ी पुट लिए हुए थे और इसकी वजह थे इसके कलाकार किशोर साहू जो छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव के निवासी थे। टेक्नोलॉजी के विस्तार से सन् 1985 में वीडियो होम सिस्टम के कैमरे से पहली वीडियो फिल्म 'जय मां बम्लेश्वरी का निर्माण सुंदरानी बंधुओं ने कर छत्तीसगढ़ी वीडियों फिल्म निर्माण की नयी विधा का प्रारंभ किया। इस फिल्म का निर्देशन मशहूर नाटककार जलील रिजवी ने किया। इस फिल्म ने भी उस समय वीडियो थियेटरों में लंबी लाइनें लगवा दी थी और अपने समय में कमाई का रिकार्ड भी बनाया। छत्तीसगढ़ी सिनेमा को पुर्नजीवित करने और इसे उद्योग में तब्दील करने का श्रेय सतीश जैन को है जिन्होंने छत्तीसगढ़ी की पहली रंगीन फिल्म मोर छइयां भुइयां का निर्माण सन् 2000 में किया। सहीं मायनों में कहा जाए तो छत्तीसगढ़ी फिल्मों का दौर यहीं से शुरू हुआ जो पिछले 18 वर्षो से जारी है. हालांकि सन् 2004 से 2017 तक यह पांच साल हिचकोले खाता रहा लेकिन अब अच्छे दिन आने के आसार हैं.