रंगरसिया को सर्वश्रेष्ठ संगीत देने की कोशिश की
साक्षात्कार- श्रीमती केशर सोनकर
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छत्तीसगढ़ के मशहूर पार्श्व गायक एवं संगीतकार सुनील सोनी आज किसी परिचय के मोहताज नहीं है. हर घर घर ने उनके गाने सुने जाते हैं, गुनगुनाये जाते हैं. उनकी आवाज में गजब का जादू हैं.जब वे गातें हैं तो लोग अपना दर्द भूल जातें है।उनकी ख्वाहिश भी अपने लिए नहीं है. वे कहते हैं छालीवुड फिल्म इंडस्ट्री को काफी आगे बढ़ते हुए देखना चाहते हैं.यही उनकी ख्वाहिश है.सुनील बताते हैं की उन्होंने निर्माता अशोक तिवारी की फिल्म रंगरसिया को सर्वश्रेष्ठ संगीत देने की कोशिश की है जबकि फिल्म भूलन में डिफरेंट गाने गाये और संगीत दिए, यही फिल्म है जिसमे उन्हें बहुत ही मेहनत करनी पडी है.सुनील सोनी ने संगीत की शिक्षा अपने पहले गुरु जागेश्वर प्रसाद देवांगन , के एल सहगल के हारमोनियम वादक से ली है.अब तक 5000 से अधिक गानों को अपनी आवाज दे चुके श्री सोनी सात बार छालीवुड के सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक का अवार्ड हासिल कर चुके हैं. 6 साल की उम्र से अपना कॅरियर शुरू करने वाले इस महान गायक को कभी किसी बात पर अहम नहीं हुआ. जितंने अच्छे गायक है उतने ही अच्छे संगीतकार है और उतने ही सभ्य मिलनसार भी हैं.वे चाहतें हैं कि हर एहसास अपनी गायकी मे डालें और अपने सुनने वालों को सुकुन का एहसास कराये। संगीत उन्हें अपने पापा के मार्गदर्शन से मिला है। सुनील सोनी संगीत के हर अंदाज़ को जीना चाहता है और कुछ नया करना चाहता है।
सुनील को मात्र 6 साल की उम्र में 1984 में पहली बार मंच मिला। गाने की शुरुआत उन्होंने एल्बम से की.2010 तक एलबमों का दौर चला और वे करीब एल्बम के लिए 3000 से अधिक गानों को अपनी आवाजें दी.सन 2000 से फिल्मों का अध्याय शुरू हुआ और अब तक उन्होंने करीब 2000 गाने फिल्मों के लिये गाये।वे बतातें हैं कि गानॉन को आवाज देना बहुत ही चुनौतीपूर्ण काम होता है.उनके कई विधा होती है.वही संगीत से सजाना और भी कठिन होता है.आज भी मै एक विद्यार्थी की तरह संगीत सीखता रहता हूँ.रंगरसिया फिल्म में मैंने सर्वश्रेष्ठसँगीत देने की कोशिश की है क्योकि निर्माता अशोक तिवारी और निर्देशक पुष्पेंद्र सिंह ने मुझे पूरी आजादी दी थी जिसके चलते बेहतर बना सका.तिवारी जी ने बहुत ही सुंदरा गीत लिखे हैं जिसे संगीत देने में मुझे बहुत आनंद आया.
चीनी नहीं जापानी नहीं, बात मान ले पाकिस्तानी! इस गीत को संगीत से सजाने में अलग तरह की मेहनत की. सुनील को संगीत की प्रेरणा गुरु अरनब चटर्जी से मिली। वे कहतें हैं कि अपनी संस्कृति और भाषा को आगे बढ़ाने का सशक्त माध्यम है सिनेमा । हम भी फिल्मो के माध्यम से लगातार अपनी भाषा की तरक्की के लिए ही काम करते है। हम चाहते है कि हमारी भाषा खूब आगे बढ़े। मै चाहता हूँ कि मेरी आवाज को सुन कर लोग अपना दर्द भूल जायेँ. मैने संगीत को महसूस करना सीखा है. मैं चाहता हूँ कि वही एहसास मैं अपनी गायकी मे डाल पाऊँ और अपने सुनने वालों को सुकुन का एहसास करा सकूँ.
साक्षात्कार- श्रीमती केशर सोनकर
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छत्तीसगढ़ के मशहूर पार्श्व गायक एवं संगीतकार सुनील सोनी आज किसी परिचय के मोहताज नहीं है. हर घर घर ने उनके गाने सुने जाते हैं, गुनगुनाये जाते हैं. उनकी आवाज में गजब का जादू हैं.जब वे गातें हैं तो लोग अपना दर्द भूल जातें है।उनकी ख्वाहिश भी अपने लिए नहीं है. वे कहते हैं छालीवुड फिल्म इंडस्ट्री को काफी आगे बढ़ते हुए देखना चाहते हैं.यही उनकी ख्वाहिश है.सुनील बताते हैं की उन्होंने निर्माता अशोक तिवारी की फिल्म रंगरसिया को सर्वश्रेष्ठ संगीत देने की कोशिश की है जबकि फिल्म भूलन में डिफरेंट गाने गाये और संगीत दिए, यही फिल्म है जिसमे उन्हें बहुत ही मेहनत करनी पडी है.सुनील सोनी ने संगीत की शिक्षा अपने पहले गुरु जागेश्वर प्रसाद देवांगन , के एल सहगल के हारमोनियम वादक से ली है.अब तक 5000 से अधिक गानों को अपनी आवाज दे चुके श्री सोनी सात बार छालीवुड के सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक का अवार्ड हासिल कर चुके हैं. 6 साल की उम्र से अपना कॅरियर शुरू करने वाले इस महान गायक को कभी किसी बात पर अहम नहीं हुआ. जितंने अच्छे गायक है उतने ही अच्छे संगीतकार है और उतने ही सभ्य मिलनसार भी हैं.वे चाहतें हैं कि हर एहसास अपनी गायकी मे डालें और अपने सुनने वालों को सुकुन का एहसास कराये। संगीत उन्हें अपने पापा के मार्गदर्शन से मिला है। सुनील सोनी संगीत के हर अंदाज़ को जीना चाहता है और कुछ नया करना चाहता है।
सुनील को मात्र 6 साल की उम्र में 1984 में पहली बार मंच मिला। गाने की शुरुआत उन्होंने एल्बम से की.2010 तक एलबमों का दौर चला और वे करीब एल्बम के लिए 3000 से अधिक गानों को अपनी आवाजें दी.सन 2000 से फिल्मों का अध्याय शुरू हुआ और अब तक उन्होंने करीब 2000 गाने फिल्मों के लिये गाये।वे बतातें हैं कि गानॉन को आवाज देना बहुत ही चुनौतीपूर्ण काम होता है.उनके कई विधा होती है.वही संगीत से सजाना और भी कठिन होता है.आज भी मै एक विद्यार्थी की तरह संगीत सीखता रहता हूँ.रंगरसिया फिल्म में मैंने सर्वश्रेष्ठसँगीत देने की कोशिश की है क्योकि निर्माता अशोक तिवारी और निर्देशक पुष्पेंद्र सिंह ने मुझे पूरी आजादी दी थी जिसके चलते बेहतर बना सका.तिवारी जी ने बहुत ही सुंदरा गीत लिखे हैं जिसे संगीत देने में मुझे बहुत आनंद आया.
चीनी नहीं जापानी नहीं, बात मान ले पाकिस्तानी! इस गीत को संगीत से सजाने में अलग तरह की मेहनत की. सुनील को संगीत की प्रेरणा गुरु अरनब चटर्जी से मिली। वे कहतें हैं कि अपनी संस्कृति और भाषा को आगे बढ़ाने का सशक्त माध्यम है सिनेमा । हम भी फिल्मो के माध्यम से लगातार अपनी भाषा की तरक्की के लिए ही काम करते है। हम चाहते है कि हमारी भाषा खूब आगे बढ़े। मै चाहता हूँ कि मेरी आवाज को सुन कर लोग अपना दर्द भूल जायेँ. मैने संगीत को महसूस करना सीखा है. मैं चाहता हूँ कि वही एहसास मैं अपनी गायकी मे डाल पाऊँ और अपने सुनने वालों को सुकुन का एहसास करा सकूँ.