रविवार, 21 मई 2017

यूँ ही आ गयी एक्टिंग में, डांस मेरा शौक है

मेरी आशिकी तुमसे ही की नायिका राधिका मैदान से ख़ास चर्चा 

- अरुण कुमार बंछोर
"मेरी आशिकी तुमसे ही की " नायिका राधिका मैदान कहती है कि एक्टिंग में तो मैं यूँ ही आ गयी। मेरा शौक तो डांस है और मैं डांसर ही बनाना चाहती थी। इसके लिए मैंने काफी तैयारी भी की थी। एक प्रश्न के उत्तर में राधिका हंसती हुई कहती है कि एकता कपूर के सीरियल में तो कई कई शादी होना तो सामान्य बात हैं, हो सकता है इतनी मुझे भी करनी पड़े। टीवी धारावाहिक की नायिका राधिका मैदान अपने निजी प्रवास पर रायपुर आई तो हमने उनसे कई पहलूओं पर बेवाक बात की।
0 आपको एक्टिंग का शौक कैसे हुआ?
00 एक्टिंग में तो मैं यूँ ही आ गयी। मैं एक्टिंग में नहीं आना चाहती थीं। पर अब धारावाहिक में काम करना अच्छा लग रहा है।
0 फिर किस क्षेत्र में कॅरियर बनाना चाह रही थी?
00 डांसिंग में ! डांस मेरा शौक भी है और पसंदीदा चाह भी। डांस की ट्रेनिंग लेने यूएस जाने का प्लान भी कर ली थी। लेकिन जाने से पहले सीरियल मिल गई , तो नहीं जा पाई।
0 कभी-कभी एक्टिंग में आपको आलोचना भी सहनी पड़ती होगी ?
00 हाँ जरूर ! जो जितना सफल होते है उतने ही उनके ज्यादा दुश्मन होते है।
0 आपको सीरियल कैसे मिला ?
00 आर्टिस्ट सलेक्शन क्रू के कुछ मेंबर्स ने फेसबुक पर मेरा फोटो देखा और सीरियल के ऑडिशन के लिए बुलाया।फिर मैंने आडिशन दिया। किरदार के चेहरे पर जो मासूमियत चाहिए थी, वह सलेक्शन टीम को मेरे चेहरे में नजर आई और मुझे रोल दे दिया गया।
0 आपने झलक दिखला जा में भी हिस्सा लिया था?
00 बहुत अच्छा अनुभव रहा। मुझे काफी कुछ सीखने को मिला। जल्दी बाहर होने का भी मुझे ज्यादा दुख नहीं हुआ। आगे और कोशिश करूंगी।
0  इस क्षेत्र  में कभी निराशा हुई है ?
00 कभी नहीं! मैं कभी निराश नहीं होती।
0  और कभी ऐसा क्षण हो आया हो जब आप बहुत ज्यादा उत्साहित हुई हो?
00 हमेशा उत्साहित रहती हूँ। क्योकि मेरे परिवार मेरे साथ है।
0 आपको इसके लिए परिवार से कितना सहयोग मिलता है?
00 पूरा सहयोग मिलता है। एक लड़की होने के बाद भी मेरे माता-पिता ने मुझे कभी बंधन में नहीं रखा। यहां भी खूब मेहनत कर रही हूं। कभी-कभी तो पापा कहते हैं, ज्यादा शूटिंग करती हो, इतना काम करने की क्या जरूरत है। अगर अभी भी लगता है, तो वापस आ जाओ। मैं कॉलेज लाइफ मिस करती हूं, लेकिन मुझे कॅरियर बनाना है तो सब ठीक है।
0 ऐसा आपका कोई सपना जो आप पूरा होते हुए देखना चाहती हों?
00 अब और कोई तमन्ना नहीं है बस एक्टिंग में ही आगे जाना चाहती हूँ। पहले सोचती थी डांसिंग स्टार बनूंगी पर मौका मिला तो एक्टिंग में आ गई।अब इसी को कॅरियर बनाउंगी।

मंगलवार, 16 मई 2017

लोग मुझे बेस्ट खलनायक के रूप में ही पहचाने : अरविन्द

छत्तीसगढ़ी फिल्मो को प्राइमरी स्कूल के सिलेबस में शामिल किया जाना चाहिए

छत्तीसगढ़ी फिल्मो के चर्चित नाम है अरविन्द गुप्ता,जिन्होंने 25 से अधिक फिल्मो में अपने अभिनय से
निर्माता निर्देशकों का दिल जीत लिया है। उनका कहना है कि लोग मुझे बेस्ट खलनायक के रूप में ही पहचाने। छत्तीसगढ़ी फिल्मो को प्राइमरी स्कूल के सिलेबस में शामिल किया जाना चाहिए। अरविन्द कहतें हैं कि छत्तीसगढ़ी फिल्मो का भविष्य काफी
अच्छा है। दबंग देहाती में शानदार भूमिका निभाने वाले अरविन्द कहते हैं कि सरकार को भी छालीवुड की ओर ध्यान देना चाहिए जिससे कलाकारों का भला हो सके।दैनिक सन स्टार ने उनसे हर पहलुओं पर बात की।
0 आपको एक्टिंग का शौक कब से है ?
00 मुझे एक्टिंग का शौक बचपन से ही रहा है। स्कूल में नाटकों में भाग लिया करता था फिर थियेटर ज्वाइन किया। जब जब टीवी देखता था तब तब मुझे लगता था कि मुझे भी कुछ बनना चाहिए ।
0 छालीवुड की क्या सम्भावनाये है?
00 बेहतर है। आने वाले समय में यहां की फिल्मे बॉलीवुड की तरह ही चलेंगी।यहां फिलहाल दर्शकों की कमी है। लोगो में अपनी भाषा के प्रति वो रूचि नहीं है जो होनी चाहिए और जो दर्शक है उनकी रुझान हिन्दी फिल्मो की ऑर है।
0 तो छालीवुड की फिल्मे दर्शकों को क्यों नहीं खीच पा रही है?
00 क्योकि यहां की फिल्मो में बहुत सारी कमियां दिखती है। दूसरी और लोगो को छत्तीसगढ़ी फिल्मो के बारे में बताया जाना चाहिए। प्राइमरी स्कूल के सिलेबस में शामिल किया जाना चाहिए।
0 फिर मौका कैसे मिला और आपके प्रेरणाश्रोत कौन है ?
00 मेरा कोई रोल मॉडल नहीं है। मैंने कई फिल्मे कर ली है। थियेटर करने के बाद लोगो ने मेरा अभिनय देखा और फिल्मो में मौका दिया।
0 कभी आपने सोचा था की फिल्मो को ही अपना कॅरियर बनाएंगे ?
00 हाँ ! शुरू से ही मै एक्टिंग को कॅरियर बनाने की सोचकर चला था। अब इसी लाईन पर काम करता रहूंगा। लगातार काम करूंगा।

सोमवार, 15 मई 2017

छत्तीसगढ़ी फिल्मो में मौलिकता और संस्कृति की कमी झलकती है

 पात्र के अनुसार कलाकारों का चयन हो - विनय अम्बष्ड 

छत्तीसगढ़ी फिल्मो के खलनायक के रूप में तेजी से उभरे अम्बिकापुर के विनय अम्बष्ड का कहना है कि छत्तीसगढ़ी फिल्मो में मौलिकता और छत्तीसगढ़ी संस्कृति की कमी झलकती है। यही नहीं कलाकारों का चयन
भी पात्रों के अनुसार होना चाहिए। विनय अम्बष्ड ने थियेटर से अपने कॅरियर की शुरुआत की थी और आज छत्तीसगढ़ी फिल्मों का एक जाना पहचाना नाम बन गया है। उन्होंने बॉलीवुड की दो फिल्मे कर छत्तीसगढ़ का नाम रौशन किया है। अब वे लगातार फिल्मे ही करते रहना चाहते हैं। दैनिक सन स्टार ने उनसे हर पहलुओं पर बात की।
0 आपको एक्टिंग का शौक कब से है ?
00 मुझे एक्टिंग का शौक बचपन से ही रहा है। जब मै पांच साल का था तब पहली फिल्म देखा था ,तब से कुछ अलग करने की सोच ली थी। मन में लगन हो तो सब संभव है। मैंने थियेटर ज्वाइन किया और आज इस मुकाम पर हूँ।
0 छालीवुड की क्या सम्भावनाये दिखती है?
00 बेहतर है। आने वाले समय में यहां की फिल्मे बॉलीवुड की तरह ही चलेंगी।यहां फिलहाल दर्शकों की कमी है। लोगो में अपनी भाषा के प्रति वो रूचि नहीं है जो होनी चाहिए और जो दर्शक है उनकी रुझान हिन्दी फिल्मो की ऑर है।
0 तो छालीवुड की फिल्मे दर्शकों को क्यों नहीं खीच पा रही है?
00 क्योकि यहां की फिल्मो में अपनी संस्कृति और मौलिकता की कमी झलकती है। कलाकारों का चयन भी पात्रों के अनुसार नहीं होता क्योकि निर्माता सबसे पहले फाइनेंसर की तलाश में होता है। जो पैसा लगाता है वो कलाकार बन जाता है।
0 फिर मौका कैसे मिला और आपके प्रेरणाश्रोत कौन है ?
00 एक्टिंग मैंने खुद से सीखा है। मेरा कोई रोल मॉडल नहीं है। मै थियेटर से आया हूँ। मेरी पहली फिल्म एक हॉरर फिल्म है। सही मायने में मेरी पहली फिल्म सरपंच है जो बड़े परदे पर सफल रही है। पंकज कपूर मेरे आदर्श हैं। फिल्म राजा छत्तीसगढिय़ा ने मुझे छत्तीसगढ़ में अभिनेता के तौर पर पहचान दी है और अभी मेरे पास धर्मेन्द्र चौबे की करवट तथा बही तोर सुरता मा जैसे फिल्मे हैं।
0 कभी आपने सोचा था की फिल्मो को ही अपना कॅरियर बनाएंगे ?
00 हाँ ! शुरू से ही मै एक्टिंग को कॅरियर बनाने की सोचकर चला था। इसी लाईन पर काम करता रहूंगा। लगातार काम करूंगा।
0  छालीवुड फिल्मो में आपको कैसी भूमिका पसंद है या आप कैसे रोल चाहेंगे।
00  मैं हर तरह की भूमिका निभाना चाहूंगा ताकि मुझे सभी प्रकार का अनुभव हो। छोटे बड़े सभी रोल मुझे पसंद है। मैं किसी भी भाषा की फिल्म हो जरूर करूंगा।
0 सरकार से आपको क्या अपेक्षाएं हैं?
00 सरकार छालीवुड की मदद करे। टाकीज बनवाए, नियम बनाये , टाकिजों में छत्तीसगढ़ी फिल्म दिखाना अनिवार्य करे। छत्तीसगढ़ी फिल्मो को सब्सिडी दें ताकि कलाकारों को भी अच्छी मेहनताना मिल सके।
0 आप फिल्मो में भूमिका को लेकर कैसा महसूस करते हैं ?
00 जब मैं कोई भूमिका निभाता हूँ तो पहले गंभीरता से मनन करता हूँ। उसमे पूरी तरह से डूब जाता हूँ।
0 रिल और रियल लाइफ में क्या अंतर है?
00 रिल और रियल लाइफ में बहुत अंतर है। रील लाइफ काल्पनिक होता है और रियल लाइफ में सच्चाई होती है।
0 आपका कोई सपना है जो आप पूरा होते देखना चाहती हैं?
00 छालीवुड में कुछ करके दिखाना चाहता हूँ। अब लगातार फिल्मो में ही काम करते रहने की तमन्ना है।

छालीवुड परदे के बुरे इंसान

छालीवुड परदे पर ये कलाकार बुरे इंसान के किरदार में जरूर नजर आतें हैं पर वास्तविक जिंदगी में
उतने ही मिलनसार और अच्छे इंसान होते हैं। खलनायक का पात्र किसी भी फिल्म का मुख्य हिस्सा होता है। खलनायकों के साथ एक विडंबना यह भी होती है, वो अपना काम कितने भी अच्छे से कर जाएं, कभी प्यार नहीं पाते। फिर भी खलनायक बनने की लालसा सबमे होती है। बॉलीवुड में बड़े बड़े नायक भी खलनायक की भूमिका निभा चुके है। आइये हम आपको मिलवाते है छालीवुड के खलनायकों से।
 - अरुण कुमार बंछोर

डॉ अजय सहाय - मशहूर मधुमेह व् हृदयरोग विशेषज्ञ होने के साथ साथ छालीवुड के बेस्ट खलनायक भी है। इन्होने अब तक कई दर्जन फिल्मे की है। हिन्दी और भोजपुरी फिल्मो में भी वे अपनी कला का जादू बिखेर
चुके है। आज डॉ अजय सहाय निर्माताओं की पहली पसंद है। वे छोटे बड़े सभी नायकों के साथ काम कर चुके हैं। सन 2014 में वे बेस्ट खलनायक का खिताब हासिल कर चुके है। इसके पहले उन्हें कई अवार्ड मिल चुके हैं।

मनमोहन ठाकुर -  छालीवुड में गिरधारी पांडे के नाम से मशहूर सबसे बड़े खलनायक मनमोहन ठाकुर किसी परिचय का मोहताज नहीं है। वे अब तक 80 से ज्यादा फिल्मो में अपने
अभिनय का जादू दिखा चुके हैं। मनमोहन सबसे चर्चित खलनायक हैं। उनकी कला के सब कायल है। हालांकि अब वे नायक की भूमिका में आने लगे है पर उनकी पहचान एक खलनायक के रूप में ही है। कई चार्चित फिल्मों में उनकी तूती बोलती रही है।

धर्मेन्द्र चौबे - जाने माने खलनायक धर्मेन्द्र चौबे अब फिल्मो की मांग है। उन्होंने करीब 25 फिल्मे की है और छालीवुड मे अपनी पहचान बना चुके हैं। हाल ही में रिकार्ड कमाई करने वाली फिल्म राजा छत्तीसगढिय़ा में
धर्मेन्द्र चौबे मुख्य खलनायक की भूमिका में है। इस फिल्म ने एक करोड़ को पार किया था। इतना ही नहीं धर्मेन्द्र चौबे फिल्मो में बुरे इंसान जरूर है पर असल जिंदगी में वे जिंदादिल इंसान और मिलनसार हैं।

काशी नायक - छालीवुड के खलनायकों में काशी नायक का नाम ना ले तो कहानी अधूरी लगेगी। मया 2 फिल्म अभी थियेटरों में धूम मचा रही मचा रही है जिसमे खलनायक काशी
नायक ने अमिट छाप छोड़ी है । काशी के कला में दम है। रोबदार आवाज , कुटिल मुस्कान ही उनके अच्छे विलेन होने का सबूत है। काशी ने फिल्म दबंग देहाती में भी मुख्य विलेन का किरदार निभाया है।

पुष्पेन्द्र सिंह - पांच भाषाओं में फिल्म करने वाले पुष्पेन्द्र सिंह बिरले इंसान है। छत्तीसगढ़ी फिल्मो में खलनायक के रूप में यह एक जाना पहचाना नाम है। अब तक 50 छत्तीसगढ़ी फिल्म , 4 भोजपुरी 1 मराठी 2 बुन्देखंडी 3 हिन्दी और 1 उडीयां फिल्म में अपनी भूमिका से सबको प्रभावित किया है।
यही नहीं पुष्पेन्द्र सिंह  को कई कलाओं में महारत हासिल है। इन्होने अब बॉलीवुड की ओर रूख कर लिया है फिर भी छालीवुड के लिए वे हमेशा ही उपलब्द्ध रहेंगे ।

विनय अम्बष्ड - एक जानदार खलनायक है जिन्होंने कई फिल्मो में विलेन के किरदार में लोगो का दिल जीता है। सरपंच ,राजा छत्तीसगढिय़ा इनकी मुख्य फिल्म है। थियेटर से छालीवुड में कदम रखने वाले विनय अम्बष्ड ने फिल्मो में अपनी कला से सबका दिल जीता है। एक खलनायक के रूप में इनकी पहचान बन गयी है। विनय जी को खलनायकी बहुत पसंद है।

प्रदीप शर्मा - छालीवुड के सीनियर कलाकार प्रदीप शर्मा ने कई फिल्मो में खलनायक की भूमिका में जान डाल दी है। भिलाई थियेटर से फिल्मो में आये
श्री शर्मा ने छत्तीसगढ़ी फिल्मो के अलावा हिंदी ,उडिय़ा,और साउथ की फिल्मो में भी काम किया है। अभी हाल ही में वे हिलण्डी फिल्म आशिक आवारा करके वापस छत्तीसगढ़ लौटे है। विलेन के साथ साथ वे तमाम हीरो हीरोइन के पिता की भूमिका में नजर आ चुके हैं।

बलराज पाठक -मयारू भौजी में आपने तीखे ओर कड़क इंसान को देखा होगा। वे कोई और नहीं बलराज
पाठक ही है। पाठक जी ने कई छालीवुड की फिल्मों में खलनायक का किरदार निभाकर लोगो के दिलों में अपनी जगह बनाई है। उन्हें खलनायकी ही पसंद है। वे कहते हैं की विलेन ही फिल्म का में किरदार होता है। विलेन ना हो तो फिल्म बेजान होत है।

विजय मेहरा - छत्तीसगढ़ फिल्म मितवा के दाऊ जी यानी विजय मेहरा आज छालीवुड के जाना पहचाना नाम है। खलनायक के रूप में उन्होंने छालीवुड में अपनी अमिट छाप छोड़ी है। फिल्म मया दे दे मयारू में
निगेटिव किरदार निभाने वाले विजय मेहरा फिल्म मितवा में ऐसी खलनायकी की जिससे लोगो में नायक की नहीं बल्कि खलनायक की ज्यादा चर्चा हुई।

एजाज वारसी - छालीवुड का एक अहम किरदार है एजाज वारसी जिन्होंने कई कलाओं में महारत हासिल की है। वे एक खलनायक के साथ साथ एक निर्देशक और एक एक्टर भी है। वे हिन्दी छत्तीसगढ़ी भोजपुरी और पंजाबी फिल्म में खलनायक का किरदार निभा चुके है। एजाज वारसी के नाम 70 -80 भी ज्यादा फिल्मे है। उनका माने तो खलनायक ही  मुख्य किरदार है।

उपासना वैष्णव - छालीवुड के सबसे सीनियर महिला कलाकार उपासना वैष्णव को आप छत्तीसगढ़ी फिल्मो में दयालू माँ के अलावा क्रूर महिला के रूप में भी देखे होंगे। कई फिल्मो में वे
खलनायिका का रोल निभा चुके हैं। गुरावट , मया जैसी फिल्मो में निगेटिव रोल करने वाली उपासना वैष्णव ने अब तक, करीब 90 फिल्मे कर चुकी है। उपासना फिल्मो में जितनी क्रूर नजर आती है वास्तविक जिंदगी में उतनी ही मिलनसार और अच्छी महिला है।

श्वेता शर्मा - छालीवुड में माँ बहन की भूमिका में नजर आने वाली श्वेता शर्मा कई फिल्मों में खलनायिका की
भूमिका अदा कर चुकी है। हाल ही में बनी फिल्म दबंग देहाती में भी वे खलनायिका के रूप में लोगो को डराती नजर आएंगी। श्वेता भी वास्तविक जिंदगी में बहुत ही मिलनसार महिला है जो बुरे वक्त में लोगो के साथ खड़ी नजर आती है।

उर्वशी साहू - छालीवुड की सबसे तीखी नजर आने वाली महिला उर्वशी साहू छात्तीसगढ़ी फिल्मो की एक अच्छी खलनायिका है। माँ बहन भाभी की भूमिका में जान डालने वाली उर्वशी खलनायिका की भूमिका में
ज्यादा प्रभावी होती हैं। 50 से अधिक फिल्मे कर चुकी उर्वशी साहू को भी निगेटिव रोल ही पसंद है। उनकी आने वाली फिल्म दबंग देहाती है जिसमे वे नायक करण खान की मा की भूमिका में है।

मनोजदीप - छालीवुड के बेस्ट कोरियोग्राफर मनोज दीप मौका मिलने पर सभी प्रकार के किरदार निभा लेते
है। उन्होंने कई फिल्मों में विलेन की भूमिका निभा चुके है।मया 2 में भी उनकी भूमिका निगेटिव है और इस भूमिका में उन्होंने जान डाल दी है। मनोजदीप जितने अच्छे विलेन है उतने ही अच्छे कलाकार और कोरियोग्राफर है। निगेटिव किरदार में बुरे इंसान कहलाने वाले मनोज वास्तविक जिंदगी में एक जिंदादिल इंसान है।

संतोष सारथी -छालीवुड में संतोष सारथी एक ऐसा नाम है जिन्होंने नायक के साथ साथ खलनायक के रूप में अच्छी खासी लोकप्रियता हासिल की है । संतोष सारथी ने 4 फिल्मो में खलनायक की भूमिका निभाई है। वे
छालीवुड के सबसे जल्द लोकप्रिय होने वाले पहले कलाकार है। उनकी कला का लोहा छोटे बड़े सभी मानते है।

" चमके रे बिंदिया " से चमकी अल्का चंद्राकार

सरकार कलाकारों के लिए आगे आएं 

छत्तीसगढ़ की मशहूर पार्श्वगायिका अलका परगनिहा (चंद्राकर) आज किसी परिचय का मोहताज नहीं है। वे छत्तीसगढ़ी लोकगीतों , लोककला की आदर्श है।उनकी आवाज में गजब की जादू है। जब वे गाती हैं तो लोग अपना दर्द भूल जातें है। वे कहती हैं कि अपने पिता जी को सुनकर संगीत को महसूस करना सीखा है. वे
चाहती हैं कि वही एहसास अपनी गायकी मे डालें और अपने सुनने वालों को सुकुन का एहसास कराये। संगीत उन्हें अपनी परिवार से विरासत में मिली है। छालीवुड की बेस्ट सिंगर का एवार्ड कई बार हासिल कर चुकी अल्का चंद्राकार संगीत के हर अंदाज़ को जीना चाहती है और कुछ नया करना चाहती है।उनकी खुद की एल्बम " चमके रे बिंदिया " ने ना केवल प्रदेश और भाषा को नई दिशा दी बल्कि उनकी जीवन में भी नई चमक ला दी। यहीं से उन्हें ऊंचाईयां मिली और आज वे एक मशहूर गायिका है।वे अपने पिताजी के लोककला मंच फुलवारी को लेकर आगे बढ़ रही हैं। उनका मानना है कि छत्तीसगढ़ी फिल्मो में तकनीक की कमी होती है और सरकार भी लोककला के प्रति रूचि नहीं दिखा रही है। यही कारण है कि छत्तीसगढ़ी फ़िल्में दर्शकों को नहीं रिझा पा रही है। 100 से अधिक एल्बम औरफिल्मों मे अपनी आवाज का जादू बिखेर चुकी अल्का चंद्राकार से हमने हर पहलुओं पे बेबाक बात की है।
० आपको गाने का शौक कैसे हुई?
०० मेरे पिताजी श्री माधव चन्द्राकर  गायक हैं कला मुझे विरासत में उन्ही से मिली है। उन्होने मुझे बचपन से ही सिखाना शुरू कर दिया था।
० किसी ने आपको प्रोत्साहित किया या फिर मर्जी से गाने लगी?
०० मेरे पिताजी ही मेरे पहले गुरू हैं और मेरे प्रेरणाश्रोत भी।
०सरकार से आपको क्या अपेक्षाएं हैं?
०० सरकार छालीवुड की मदद करे। टाकीज बनवाए, नियम बनाये। छत्तीसगढ़ी फिल्मो को सब्सिडी दें ताकि कलाकारों को भी अच्छी मेहनताना मिल सके।
० छालीवुड की फिल्मे दर्शकों को क्यों नहीं खीच पा रही है?
०० क्योकि यहां की फिल्मो में बहुत सारी कमियां होती है। फिल्मो में वो गुणवत्ता नहीं होती जो यहां के लोगो को चाहिए।तकनीक की कमी ने छत्तीसगढ़ी दर्शकों को दूर कर रखा है।प्रोड्यूसरों को इस और ध्यान देने की जरुरत है।
० छत्तीसगढ़ी भाषा और संस्कृति को आगे बढ़ाने की दिशा में फिल्म का योगदान कितना है?
०० अपनी संस्कृति और भाषा को आगे बढ़ाने का सशक्त माध्यम है सिनेमा । हम भी फिल्मो के माध्यम से लगातार अपनी भाषा की तरक्की के लिए ही काम करते है।हम चाहते है कि हमारी भाषा खूब आगे बढ़े।
० आपकी कोई तमन्ना है जिसे लेकर आप आगे बढ़ रही है
००  मैं छत्तीसगढ़ी लोकगीत जो आज अपना स्थान नहीं प्राप्त कर पाई है।उसे राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित और पहचान दिलाना चाहती हूँ।मैं और मेरे पति श्री अमित परगनिहा ने छत्तीसगढ़ी लोक कला , लोकगीत और लोक नृत्य के विकास और उसमें लोगो को पारंगत करने के उद्देश्य से एक महाविद्यालय खोलने की तैयारी में है।जिससे हमारी लोक कला और लोकगीतों में भी पारंगत लोग आ सके और दूसरे प्रदेशों के लोक कलाकारों के बराबर आ सके।
० आपने गायकी का क्षेत्र ही क्यों चुना ?
०० गायन मेरे पिता से बचपन से प्राप्त हुआ।और ईश्वर के आशीर्वाद से मेरे ससुराल से भी पूरा सपोर्ट रहा।मेरे पति श्री अमित परगनिहा दिल्ली यूनिवर्सिटी से  एमबीए है।उनका कला या गायन से लगाव की वजह से वो मेरी पूरी तरह सेसपोर्ट रहता है।
० आप छत्तीसगढ़ से है तो क्या हिन्दी या भोजपुरी फिल्मो के लिए भी गाना गायेंगी?
०० भोजपुरी ।हां मैंने मराठी , उड़िया में गाने गाए है।भोजपुरी के लिए भी तैयार हूँ।
० आपका आदर्श कौन है , जिसे आप फॉलो करती है ?
०० लता मंगेशकर जी ।
० भविष्य की क्या योजनाएं हैं?
०० अभी हम आदिवासी संस्कृति, लोकगायिकी, का कलेक्शन करने जा रहे हैं , ताकि हम प्रदेशवासियों को जनजातीय परिवेश और संस्कृति से परिचित करा सकें।

दीवाना छत्तीसगढिय़ा में दिखा भारती धुरी का जलवा


छालीवुड में सिंगर से फिल्मो में कदम रखने वाली भारती धुरी की तमन्ना एक अच्छी अदाकारा बनने की है। वे छालीवुड में सभी प्रकार की भूमिका निभाना चाहती है ताकि उन्हें हर प्रकार अनुभव हो जाए। वे कहती है कि छत्तीसगढ़ी फिल्मो में गुणवत्ता हो तो जरूर थियेटरों में चलेगी। भारती कहती है कि सरकार छालीवुड की मदद करे। टाकीज बनवाए, नियम बनाये। छत्तीसगढ़ी फिल्मो को सब्सिडी दें ताकि कलाकारों को भी अच्छी मेहनताना मिल सके।अभी हाल ही में प्रदर्शित फिल्म दीवाना छत्तीसगढिय़ा में भारती धुरी का जलवा देखने को मिल रहा है। भारती जितनी अच्छी कलाकार है उतनी ही सुन्दर भी है।  बिलासपुर की रहने वाली भारती धुरी कहती है कि मुझे एक्टिंग का शौक बचपन से ही रहा है। गाने गाते गाते एक्टिंग करने लगी। पहले एल्बम की फिर मुझे असली संगवारी में काम करने का मौका मिला और आज आपके सामने हूँ। वे कहती है कि आने वाले समय में यहां की फिल्मे बॉलीवुड की तरह ही चलेंगी।यहां फिलहाल दर्शकों की कमी है। लोगो में अपनी भाषा के प्रति वो रूचि नहीं है जो होनी चाहिए । थियेटरों  की कमी को सरकार पूरा करे। उनका कहना है कि यहां की फिल्मो में बहुत सारी कमियां होती है। फिल्मो में वो गुणवत्ता नहीं होती जो यहां के लोगो को चाहिए। प्रोड्यूसरों को इस और ध्यान देने की जरुरत है। भारती धुरी कहती है कि मैं हर तरह की भूमिका निभाना चाहूंगी। क्योकिं छालीवुड में कुछ करके दिखाना चाहती हूँ। लोग मुझे एक अच्छी अभिनेत्री के रूप में जाने पहचाने बस यही तमन्ना है। भारती को अपने परिवार से वि सहयोग नहीं मिला है जो एक लडक़ी को मिलना चाहिए। अब कला ही उनकी जिंदगी है और जीवन यापन का साधन भी। उनके पति भी एक अच्छे कलाकार हैं। 

2016 में बनी ताबड़तोड़ 25 छत्तीसगढ़ी फिल्मे

10 फिल्मे रिलीज हुई, कुछ फिल्मे अभी भी अधूरी

- अरुण बंछोर 
छालीवुड की सम्भावनाये बेहतर है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता। कहा जाता है की छत्तीसगढ़ी फिल्मे अपनी लागत नहीं निकाल सकती। इसके बावजूद निर्माता निर्देशकों का रुझान फिल्मो की ओर बढ़ता ही जा रहा है यह छालीवुड के लिए एक अच्छा संकेत है। 2016 में बनी ताबड़तोड़ 25 छत्तीसगढ़ी फिल्मे बनी है हालांकि अभी कुछ फिल्मे अधूरी है पर इतने ही फिल्मो की शूटिंग शुरू हुई । इस साल 10 फिल्मे रिलीज हुई जिसमे से दो फिल्मे मया के मंदिर और किरिया पुरानी थी। किरिया फिल्म 5 साल पहले बनकर तैयार थी लेकिन उसे इस साल डीवीडी में लाया गया। अभिनेताओं में अनुज शर्मा आगे रहे जिन्होंने बतौर हीरो तीन फिल्मे की अभिनेत्रियों में अनिकृति चौहान ने नायिका के रूप में सबसे ज्यादा चार फिल्मे की है। वैसे अहाना फ्रांसिस ने 6 फिल्मे की है लेकिन हीरोइन के रूप में उनकी एक ही फिल्म है। चरित्र अभिनेत्रियों में उपासना वैष्णव ने साल 2016 में 14 फिल्मे की है जिसमें छत्तीसगढ़ी फिल्मे उनकी 11 है \ दूसरे नंबर पर श्वेता शर्मा है जिन्होंने 13 फिल्मे की है जिसमे उनकी भी 11 छत्तीसगढ़ी फिल्मे है। चरित्र अभिनेताओं में प्रदीप शर्मा ने सबसे अधिक 15 फिल्मे की है लेकिन छत्तीसगढ़ी फिल्मो की बात करें तो वे डॉ अजय सहाय से पिछड़ते नजर आ रहे है। अजय सहाय ने 14 फिल्मे की है जिसमे उनकी छत्तीसगढ़ी फिल्मे 10 है जबकि प्रदीप शर्मा के 15 फिल्मो में उनकी छत्तीसगढ़ी फिल्मे 6 ही हैं।
2016 में बनने वाली फिल्मे 
1 दबंग देहाती, 2. चक्कर गुरूजी के, 3. दांव, 4. प्रेम सुमन, 5. मोगरा, 6. दीवाना छत्तीसगढिय़ा, 7. धरतीपुत , 8.बही तोर सुरता म, 9. तहलका मोर नाव के,10 .राजा छत्तीसगढिय़ा 2 , 11. तोर मोर यारी, 12. आशिक छत्तीसगढिय़ा, 13. प्रेम के बंधना, 14 नाग और नागिन, 15 बेलबेलही टूरी , 16 मोर मया ला राखे रहिबे, 17 भूलन द मेज, 18 सजना साथ निभाबे, 19 अंधियार, 20 त्रिवेणी, 21 रंगरसिया, 22. टूरी रम पम पम , 23 गुरु घासीदास बाबा, 24 कोइला, 25 बेर्रा।

नायक (टॉप 3)
1. अनुज शर्मा - 3
2 .चंद्रशेखर चकोर - 2
3 .राजू त्रिपाठी - 2
नायिका (टॉप 3)
1. अनिकृति चौहान - 5
2 .अंजना दास - 4
3 .तान्या तिवारी  - 3
चरित्र अभिनेता (टॉप 3)
1.डॉ अजय सहाय - 16 (छत्तीसगढ़ी-10, अन्य भाषा- 6)
2 .प्रदीप शर्मा  - 16 (छत्तीसगढ़ी-6 , अन्य भाषा- 10)
3 .सलीम अंसारी - 14 (छत्तीसगढ़ी-7 , अन्य भाषा- 7)
चरित्र अभिनेत्री (टॉप 3)
1. उपासना वैष्णव - 14 (छत्तीसगढ़ी-11 , अन्य भाषा- 3)
2 .श्वेता शर्मा - 13 (छत्तीसगढ़ी-11, अन्य भाषा- 2)
3 .पुष्पांजली शर्मा - 12 (छत्तीसगढ़ी-9 , अन्य भाषा- 3)

सफलता का ही नाम है लेजली त्रिपाठी

रंगरसिया मेरी सबसे बेहतर फिल्म

बॉलीवुड अभिनेत्री लेजली त्रिपाठी आज किसी परिचय का मोहताज नहीं है. उन्होंने कभी असफलता नहीं देखी है या हम यह कह सकतें कि सफलता का ही नाम है लेजली त्रिपाठी है. उनकी भोजपुरी फिल्म निरउहा हिन्दुस्तानी 2 आज बिहार में रिलीज हुई है. वे कहती है की रंगरसिया मेरी सबसे बेहतर फिल्म है. यह उनकी पहली छत्तीसगढ़ी फिल्म है जो जल्द ही रिलीज होने जा रही है. लेजली आरस्या  ज्वेलरी की ब्रांड एम्बेसेडर है. एक अभिनेत्री के अलावा लेजली महानदी सुरक्ष्य योजना के लिए युवा राजदूत,  विश्वभर में बच्चों को शिक्षित करने के सशक्तीकरण के लिए एकसां गुरुकुल का चेहरा, सेवा फाउंडेशन की कर्ताधर्ता, अनंत साहित्य पत्रिका,  लिंग संवेदनशीलता टी-शर्ट्स, आशा किरण और संयुक्त राज्य अमेरिका में स्थित दुनिया के मुद्दों और क्रिया केंद्रों के लिए भारतीय युवा राजदूत हैं।एशियाई कॉलेज ऑफ जर्नलिज़म, चेन्नई से पत्रकारिता  डिग्री लेने वाली लेजली आज तक , हेडलाइंस टुडे के साथ शाहरुख खान, रितिक रोशन, शाहिद कपूर का साक्षात्कार करने वाले लोगों की टीम में शामिल रही है. वे पुस्तक "एज़ आई एम ए गर्ल" के लेखक एवं पॉसीई इंडिया इंटरनेशनल के संपादक भी हैं। फिल्म महिला में रूह मलिक के रूप में भूमिका के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार , 8 गवर्नर पुरस्कार और राज्य राजीव गांधी समन, मजेदार फियरलेस महिला पुरस्कार, कला, सार्वजनिक सेवा, सिनेमा और संस्कृति और सक्रियता में योगदान के लिए यूथ आइकन पुरस्कार से भी उन्हें नवाजा जा चुका है.
लेजली कहती है कि रंग रसिया एक उम्दा और बेहतरीन फिल्म है। हर पार्ट अच्छे है चाहे वह गीत हो या संगीत, कॉमेडी हो या रोमांस, एक्शन फाइट सब कुछ है. कुल मिलाकर रंगरसिया एक सम्पूर्ण पारिवारिक फिल्म है जो दर्शकों को खूब भाएगी। इस छत्तीसगढ़ी फिल्म में काम करने का अनुभव काफी अच्छा रहा. छत्तीसगढ़ के लोग काफी मिलनसार हैं. निर्देशन तो बहुत ही बेहतर रहा है. पुष्पेंद्र जी ने कलाकारों से बेहतर काम लिया। इस फिल्म के नायक अनुज शर्मा के होने के कारण और उस फिल्म का कद काफी उंचा हो गया है।यह एक ऐसी फिल्म है जो दर्शकों का खूब मनोरंजन करेगी, क्योकि इस फिल्म में वो सब कुछ है जो दर्शक पसंद करते है। लेजली कहती है कि इस फिल्म में कामेडी भी है तो एक्शन भी है। गीत अच्छे हैं तो संगीत भी कर्णप्रिय हैं। अनुज छत्तीसगढ़ के सबसे लोकप्रिय नायक है जिसे सभी वर्ग ए लोग फिल्मो में देखना चाहते हैं। उनकी लोकप्रियता का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है जब कवर्धा में शूटिंग चल रही थी तब लोग उन्हें आकर घेर लेते थे। आटोग्राफ और साथ में फोटो खिचाने के आग्रह से उनकी शूटिंग में बाधा पंहुच रही थी। वहां और भी बहुत से कलाकार थे लेकिन लोगो को सिर्फ अनुज शर्मा की एक झलक चाहिए होता था। ये छत्तीसगढ़ी फिल्मो के लिए एक अच्छा संकेत है

कि लोग अपने कलाकारों को जानते हैं पहचानते हैं।छालीवुड फिल्मो के भविष्य पर उनका कहना है कि आने वाला समय बेहतर है। यहां की फिल्मे बॉलीवुड की तरह ही चलेंगी।यहां फिलहाल दर्शकों की कमी है। लोगो में अपनी भाषा के प्रति वो रूचि नहीं है जो होनी चाहिए और जो दर्शक है उनकी रुझान हिन्दी फिल्मो की ऑर है। वे बताती है कि उन्हें एक्टिंग का शौक बचपन से ही रहा है। उन्होंने खुद से एक्टिंग सीखा है। उनका कोई रोल मॉडल भी नहीं है।

कब आएंगे अच्छे दिन

अरुण कुमार बंछोर 
छत्तीसगढ़ी भाषा की फि़ल्मों को इस साल 52  बरस होने जा रहा हैं, लेकिन आधी सदी पुराना छत्तीसगढ़ का फि़ल्म उद्योग अब भी पहचान के के लिए तरस  रहा है.। नया राज्य बनने के बाद से 198 फि़ल्में छत्तीसगढ़ी भाषा में बनी हैं.यह और बात है कि दजऱ्न भर फि़ल्मों को छोड़ अधिकांश फिल्में अपनी लागत भी नहीं निकाल पाई है। पहली छत्तीसगढ़ी फि़ल्म 1965 में बनी थी-‘कही देबे संदेश’. इस फि़ल्म के गाने बेहद लोकप्रिय हुए थे, जिन्हें मोहम्मद रफ़ी, महेंद्र कपूर और मन्ना डे जैसे गायकों ने आवाज़ दी थी.लेकिन, फि़ल्म प्रदर्शन से पहले ही जात-पात की राजनीति करने वालों के निशाने पर आ गई और रायपुर के बजाए फि़ल्म का प्रदर्शन दुर्ग के तरुण टॉकीज़ में करना पड़ा था। बाद में फि़ल्म को सहकारिता को प्रोत्साहित करने वाली बताकर मनोरंजन कर में छूट भी दी गई.
इसके बाद निर्माता विजय कुमार पांडेय ने 1971 में ‘घर द्वार’ नाम से फि़ल्म बनाई. फि़ल्म के निर्देशक थे निर्जन तिवारी. फि़ल्म तत्कालीन मध्यप्रदेश के अलावा पड़ोसी राज्यों में भी रिलीज़ की गई. फि़ल्म के बारे में दावा किया जाता है कि यह फि़ल्म अच्छी चली. लेकिन ‘कही देबे संदेश’ और ‘घर द्वार’ के ‘चलने’ में मुनाफ़ा शामिल नहीं था, यही कारण है कि लगभग 30 साल तक किसी ने फिर छत्तीसगढ़ी फि़ल्म बनाने के बारे में सोचा भी नहीं.तीसरी छत्तीसगढ़ी फि़ल्म कोई तीस साल बाद वर्ष 2000 में ‘मोर छंइहा भुंइया’ नाम से बनी. छत्तीसगढ़ राज्य बनने वाला था और भाषाई प्रेम ज़ोर पर था. छत्तीसगढिय़ा अस्मिता की ताल ठोंकने वाले समय में परदे पर आई सतीश जैन की इस फि़ल्म ने इतिहास रचा. नया राज्य बनने से ठीक पहले आई इस फि़ल्म को देखने के लिए लोग सिनेमाघरों में टूट पड़े. यह सिलसिला अगले 2-3 बरसों तक बना रहा.इसके बाद छत्तीसगढ़ी में फि़ल्म बनाने का सिलसिला तो जारी रहा, लेकिन फि़ल्मों की सफलता का नहीं.‘मया देदे मया लेले’, ‘झन भूलो मां बाप ला’ और ‘मया’ जैसी कुछ फिल्मों को छोड़ दिया जाए तो इस पूरे दौर में छत्तीसगढ़ी फि़ल्में बनती रहीं और मुंह के बल गिरती रहीं।
छॉलीवुड के नाम से पुकारे जाने वाली छत्तीसगढ़ी भाषा की फि़ल्मों के सबसे लोकप्रिय हीरो अनुज शर्मा की राय है कि छत्तीसगढ़ी की फि़ल्मों का अपना कोई स्वतंत्र बाज़ार नहीं है और इन्हें हिंदी फि़ल्मों से मुक़ाबला करना होता है. अनुज कहते हैं, मोर छइहा भुइंया फि़ल्म मोहब्बतें और मिशन कश्मीर जैसी फि़ल्मों के साथ रिलीज हुई थी. लगभग 20 लाख रुपये की लागत से बनी इस फि़ल्म ने इतिहास रचा था. हमारी फि़ल्मों का बजट तो हिंदी सिनेमा के जूते-चप्पल के बजट के बराबर होता है. फिर भी हम बेहतर करने की कोशिश कर रहे हैं. छत्तीसगढ़ में कॉमेडी फि़ल्में भी बन रही हैं और हॉरर भी, यहां तक कि वयस्क फि़ल्में भी. डबल रोल वाली फि़ल्में और थ्रीडी फि़ल्में तो हैं ही.हालांकि, अधिकांश फि़ल्मों की कहानी गांव केंद्रित होती है और अधिक हुआ तो गांव से शहर आए नायक की कहानी फि़ल्मों का आधार होती है.यही कारण है कि कई निर्माता-निर्देशक तो अपनी फि़ल्मों की शूटिंग अपने आसपास के गांव में ही करते हैं।
कभी-कभार आप रायपुर शहर के किसी चौक-चौराहे पर फि़ल्म की शूटिंग देख सकते हैं, लेकिन निर्माता-निर्देशक पड़ोसी राज्य ओडिशा को शूटिंग और संपादन के लिहाज से बेहतर मानते हैं। इसी तरह, अधिकांश फि़ल्मकारों की कोशिश होती है कि गीतकार-संगीतकार स्थानीय हों, लेकिन गायक या गायिका कोई बॉलीवुड से जुड़ा नाम हो. लेकिन इन फि़ल्मी गानों में भाषा भर छत्तीसगढिय़ा होती है, संगीत और ताम-झाम मुंबइया फि़ल्मों जैसा ही होता है.फि़ल्मों का बजट 15-20 लाख रुपये से लेकर एक करोड़ तक होता है और फि़ल्म में कलाकारों को अधिकतम 3 से 5 लाख रुपये मिलते हैं.फि़ल्म में स्थानीय कलाकार ही मुख्य भूमिका निभाते हैं, लेकिन हीरोइनों के लिए छत्तीसगढिय़ा फि़ल्मकारों को कई बार भोजपुरी, उडिय़ा या मुंबई की कम बजट वाली हीरोइनों का मुंह देखना पड़ता है.छत्तीसगढ़ी फिल्मों में मुंबइया लटके-झटके और नकल के रास्ते सफलता तलाशने की भी लगातार कोशिश हो रही है.कई बार तो हिंदी समेत दूसरी भाषा की फि़ल्मों को सीधे-सीधे छत्तीसगढ़ी में डब किया जा रहा है या उनकी हास्यास्पद कि़स्म की रीमेक बन रही हैं.दिलचस्प यह है कि छत्तीसगढ़ी में डब की जाने वाली फि़ल्मों में मिथुन चक्रवर्ती की फि़ल्में पहले नंबर पर हैं.छत्तीसगढ़ में रहते हुए सुप्रसिद्ध लेखिका अमृता प्रीतम की लिखी ‘गांजे की कली’ कहानी पर योगेंद्र चौबे ने कलात्मक फि़ल्म बनाई, जिसकी दुनिया भर में प्रशंसा हुई.इस फि़ल्म के निर्माता अशोक चंद्राकर कहते हैं, हमने मान लिया है कि छत्तीसगढ़ी फि़ल्म का मतलब है ऐसी फि़ल्म, जिसकी भाषा छत्तीसगढ़ी हो और वह लो बजट वाली हो. छत्तीसगढ़ी की फि़ल्म में यहां लाइफ स्टाइल, संस्कृति होनी चाहिए. जो आमतौर पर यहां की फि़ल्मों में दिखाई नहीं देती. बस्तर के इलाके में अविनाश प्रसाद जैसे लोगों ने हल्बी भाषा में ‘मोचो मया’ जैसी फि़ल्में बनाईं और नाम भी कमाया. ज़ाहिर है, हल्बी की फि़ल्म थी, इसलिए दर्शक भी केवल बस्तर के ही मिले. लेकिन अविनाश इससे निराश नहीं हैं। 

उभरती अदाकारा अंजना दास

बिन बिहाव गवना में दोहरी भूमिका में दिखेंगी 
छॉलीवुड की उभरती अदाकारा अंजना दास होम प्रोडक्शन की फिल्म बिन बिहाव गवना में दोहरी भूमिका में नजर आएंगी । यह फिल्म अगले महीने फरवरी में रिलीज होने जा रही है। इस फिल्म की डायरेक्टर उनकी मम्मी ही है। अंजना कहती है की यह फिल्म बहुत ही अच्छी बनी है और मुझे इस फिल्म से बहुत ज्यादा उम्मीदें है। यह दो बहनों की कहानी है और दोनों बहनों की भूमिका में अंजना दास ही नजर आएंगी। अंजना ने इस फिल्म के लिए बहित ही मेहनत की है। उनके मम्मी पापा ने बेटी को लेकर बिन बिहाव गौना बनाई है जो एक पारिवारिक फिल्म है जिसमे अंजना की भूमिका भी प्रभावशाली है।


अंजना की एक ही तमन्ना है कि वे फिल्मों में अपनी अदाकारी से नाम कमाकर अपनी माता पिता का सपना पूरी कर सके. उनमे खूबियों का खजाना है। वे एक अच्छी कलाकार है ।  उन्हें अपने काम के प्रति जूनून है। उनका कहना है कि वे छालीवुड की फिल्मों में छा जाना चाहती हैं । उनका सपना छालीवुड के साथ बंगाली फिल्मों की स्टार बनने की है।  छत्तीसगढ़ी फिल्मों के साथ साथ अंजना अभी हिन्दी और भोजपुरी फिल्मों में भी अपनी कला का लोहा मनवा रही हैं। उन्होंने पांच फिल्में और 150 से ज्यादा एल्बम किया है।
अंजना को एक्टिंग का शौक नहीं था, पर मम्मी डॉ काजुल् दास की जिद्द और मेहनत ने उसे छालीवुड की एक अच्छी अदाकारा बना दी है7 मम्मी -पापा ही अंजना के लिए सब कुछ है यही कारण है कि अब अंजना के लिए एक्टिंग शौक नहीं , पागलपन बन गया है। वे कहती है कि़ शौक तो ख़त्म हो जाता है पर पागंलपन हमेशा बना रहता है। ये मेरा जूनून है जो कभी ख़त्म नहीं होगा। अब यही उनका करियर है।
अंजना छालीवुड की फिल्मों के साथ साथ बंगाली फिल्मों में भी छा जाना चाहती है। उनका सपना बंगाली की  सुपरस्टार बनने ने की ही है। लोग मुझे बंगाली फिल्मों कीश्रेष्ठ स्टार के रूप में जाने यही उनकी ख्वाहिश है7 अंजना की अभी दो फिल्में बंध गईल पिरितिया के डोर (भोजपुरी) और मोगरा (छत्तीसगढ़ी) निर्माणाधीन है7 अंजना की फिल्मों में एंट्री भी दिलचस्प है7 मनोजदीप के एक एल्बम में उनकी एक्टिंग से प्रभावित होकर फिल्म असली संगवारी के डायरेक्टर ने उन्हें अपने फिल्म में ले लिया7 अंजना की माने तो यहां फिल्मे कमजोर बन रही है और  की नकल होती है। फिल्मे नहीं चल पाती इसकी वजह भी हैं और वो सब जानते हैं कि पिछड़े हुए राज्य में टॉकीजों का विकास नहीं होना। छत्तीसगढ़ में मिनी सिनेमाघर दो सौ दर्शकों की क्षमता वाली टॉकिजों की बड़ी आवश्यकता है जहां छत्तीगसढ़ी फिल्मों के दर्शक आसानी से पहुंच सके। पात्र के हिसाब से कलाकारों का चयन नहीं होता। कुछ लोग इस इंडस्ट्री को खराब कर रहे हैं , वे ऐसे लोग है जो काम लागत में कुछ भी फिल्में बना लेते हैं। 

फिल्म विकास निगम को लेकर राजनीति शुरू

छालीवुड स्टारडम का सम्पादकीय 
छत्तीसगढ़ फिल्म विकास निगम की घोषणा के 6 माह बाद भी जब कई पहल सरकार की ओर से नहीं हुई तब एक बार फिर छालीवुड के कलाकार मुखर हो गए हैं और फिर से संघर्ष करने की योजना पर काम कर रहे हैं। इसके साथ ही राजनीति भी शुरू हो गई है। यहां एक दो नहीं कई गुट है जो अपनी गोटी बैठाने की फिराक में है। मुख्यमंत्री को घोषणा से पहले शायद यह पता नहीं रहा होगा कि छालीवुड में इतनी मारामारी भी है। एक ओर संघर्ष के लिए बैठको का दौर शुरू हो गया है वही कुछ कलाकार इसे गलत कदम बता रहे हैं। एक कलाकार ने तो मुझे फोन करके यहां तक कह दिया कि सीएम पर यह गलत प्रहार है। एक बड़े कलाकार ने तो बाकायदा मुख्यमंत्री को पत्र लिखाकर फिल्म विकास निगम नहीं बनाने का अनुरोध तक किया है। छालीवुड में कई ऐसी भी हस्तियां है, जिन्होंने इस इंडस्ट्री को अपना सबकुछ दे दिया है। ऐसे लोग चुप बैठकर नजारा देख रहे है, पर दावेदारी नहीं जता रहे है। फिल्म विकास निगम के सही दावेदार यही लोग है, जैसे- श्री संतोष जैन, मोहन सुंदरानी, प्रेम चंद्राकर, सतीष जैन, अनुज शर्मा। निगम के लिए दावेदारी ऐसे लोग जता रहे है। जिन्होंने छालीवुड को कुछ भी नहीं दिया है। ऐसे लोगों की काबिलियत सबको पता है। फिल्मों में काम कर लेने से कोई योग्य नहीं हो जाता। सबसे मजेदार बात तो यह है कि निगम-मंडल का पद राजनीतिक होता है। सत्तारूढ़ दल के मुखिया पार्टी के निष्ठावान नेताओं को यह दायित्व सौंपता है। जो फिल्म विकास निगम मेें भी यही होगा। निगम की अभी सिर्फ घोषणा हुई है, गठन नहीं। इसके अस्तित्व में आते-आते चुनावी वर्ष आ जाएगा और चुनावी वर्ष में निगम-मंडल भंग कर दिए जाते है। खैर जो भी हो सरकार की ओर से पहल सकारात्मक है। इसे छालीवुड के लोग उत्साह से स्वीकारें। ताजुब तो तब हुआ जब एक ऐसे कलाकार ने सोशल मीडिया के जरिए निगम अध्यक्ष के लिए दावेदारी जता दी, जो काबिल तो कहीं से भी नहीं है। हां, पूरे समय विवादों में जरूर रहा है। योग्य लोग खामोश है। सीएम की इस घोषणा से ये जरूर साफ हो गया कि कौन लालची है ओर कौन सही में योग्य है।
छत्तीसगढ़ फिल्म विकास निगम आखिर कब तक बनेगी, यह प्रश्न सभी कलाकारों के मन में है क्योकिं संस्कृति विभाग में निगम का तो बोर्ड लगा दिया गया है पर बजट में इसका कोई प्रावधान नहीं किया गया है। सरकार वर्षों से सिर्फ कलाकारों को दिलासा देती आ रही है। निगम का मसौदा कई साल पहले ही वरिष्ठ आईपीएस श्री राजीव श्रीवास्तव ने तैयार कर सरकार को दे दिया था, लेकिन आज तक वह आगे नहीं बढ़ पाया। सचिव संस्कृति विभाग आरसी सिन्हा  दिनों पहले ही कहा था कि छत्तीसगढ़ फिल्म विकास निगम के गठन की दिशा में तेजी से कार्य किया जा रहा है। अन्य राज्य के फिल्म विकास निगम के नियमों का अध्ययन किया जा रहा है। इनमें से जो बेहतर और छत्तीसगढ़ के लिए उपयोगी हैं, उन्हें इसमें शामिल किया जाएगा। चलो मान लेते है कि निगम बनाने की दिशा में सरकार ने कदम बढ़ा दी है, पर जब सरकार ने बजट ही नहीं दिया है तो आगे काम कैसे होगा। छत्तीसगढ़ के कलाकार लंबे अरसे से फिल्म विकास निगम के गठन की मांग कर रहे हैं। उन्होंने कई बार धरना-प्रदर्शन तक किया। 18 सितंबर 2013 धरना-प्रदर्शन कर कलाकारों ने मुख्यमंत्री को इस संबंध में ज्ञापन भी सौंपा था। यही नहीं, विधानसभा चुनाव में राज्य की दोनों प्रमुख पार्टियों ने अपने घोषणापत्र में भी फिल्म विकास निगम के गठन की घोषणा की थी।पर लगता है यह टाँय टाँय फिस्स ही होगा।